भाषण

प्रधान मंत्री द्वारा कोलकाता में दिए भाषण की लिखित प्रतिलिपी

श्री डेविड कैमरून ने ब्रिटेन तथा भारत के बीच के मजबूत रिश्तों तथा भविष्य में साथ मिलकर कार्य करने की संभावनाओं के बारे में बात की।

यह 2010 to 2015 Conservative and Liberal Democrat coalition government के तहत प्रकाशित किया गया था
The Rt Hon David Cameron

प्रधानमंत्री

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

स्पीकर

श्री कैमरून यहां भारतीय प्रबंध संस्थान, कोलकाता में भारत के कुछ प्रतिभाशाली लोगों के साथ चर्चा करने वाले हैं। छात्रों, फैकल्टी सदस्य, स्टाफ की ओर से हम आपका इस महान संस्थान में उनका हार्दिक स्वागत करते हैं।

प्रधानमंत्री

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। हार्दिक स्वागत के लिए शुक्रिया! मैं आज यहां अपना अधिक से अधिक समय आपके प्रश्नों का उत्तर देने में इस्तेमाल करूंगा। पर सबसे पहले मैं आप सभी को यह बता देना चाहता हूं कि कोलकाता आकर मुझे बड़े खुशी हुई है। मेरे लिए यहां आना सचमुच एक बड़ी बात है।

मैं आज यहां हूं इसका कारण यह है कि मैं ब्रिटेन और भारत के बीच के रिश्तों को लेकर काफी भावुक हूं। मैं साढ़े तीन सालों से प्रधानमंत्री रहा हूं और मैं अबतक तीन बार भारत की यात्रा कर चुका हूं। मैंने बेल्जियम को छोड़कर भारत की यात्रा किसी अन्य देशों की तुलना में सर्वाधिक बार की है। और जहां तक बेल्जियम की बात है तो जाहिर है वहां मैं युरोपीय यूनियन की बैठकों में भाग लेने जाता हूं। पर मेरी भावना इस रिश्ते से जुड़ी है।

मुझे लगता है हमारे बीच बहुत सारी चीज एक जैसी है। निश्चित रूप से कोलकाता में हम अतीत के कुछ रिश्तों के बारे में, भाषाई रिश्तों और सांस्कृतिक रिश्तों पर विचार करेंगे। पर मैं ज्यादातर भविष्य के बारे में विचार करूंगा। हम दोनों लोकतांत्रिक देश हैं। आप दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं; वहीं हम दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्रों में एक है। हम दोनों आतंकवाद और उग्रवाद जैसी कई चुनौतियां का सामना करते हैं और हमें साथ मिलकर उन चुनौतियों से निपटना चाहिए। हम दोनों ही देश इस आधुनिक और वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी सफलता का मार्ग तलाशना चाहते हैं। स्पष्ट रूप से हमारी अर्थव्यवस्थाएं विकास के अलग-अलग चरण में हैं,पर हमारे बीच कुछ चीजें समान हैं। हम दोनों ही देशों के पास प्रचुर प्राकृतिक संसाधन नहीं हैं। हम जो चाहते हैं वह सर्वोत्तम बनाते हैं, तो वह केवल अपने दिमाग, अपनी प्रतिभा और अपने लोगों की बदौलत। इसलिए मुझे उम्मीद है कि हम साथ मिलकर काम कर सकते हैं और एक-दूसरे का पसंदीदा साथी बन सकते हैं।

और जब मैं ब्रिटेन-भारत के संबंधों पर नजर डालता हूं तो भारत में गहन ब्रिटिश निवेश और ब्रिटेन में गहन भारतीय निवेश देखता हूं। आप अभी ब्रिटेन में सभी युरोपीय देशों को मिलाकर उससे कहीं अधिक निवेश कर रहे हैं। ब्रिटेन की हाल में मिली एक सबसे बड़ी सफलता है- कुछ बेहतरीन ब्रिटिश डिजाइनों तथा विनिर्माण और भारतीय पूंजी व कुछ उत्कृष्ट भारतीय रणनीतिगत सोच और प्रबंधन पर आधारित जैगुआर लैंड रोवर। इसलिए मैं इन इस संबंधों और भविष्य में इसका क्या स्वरूप होगा इसे लेकर भावुक हूं।

और मुझे खासतौर से कोलकाता आने की खुशी है। मुझे लगता है कि मैं सही स्थान पर, सही वक्त और सही लोगों के बीच आया हूं। सही स्थान इसलिए कि यह संस्थान दुनिया के बेहतरीन संस्थानों में एक है। यह भविष्य की कुछ बेहतरीन प्रतिभाओं को प्रशिक्षित करने जा रहा है और यह मौका प्राप्त करना बड़ी बात है। यह अच्छा वक्त केवल इसलिए नहीं है कि लिट्ल मास्टर (सचिन तेंदुलकर) अपने आख़िरी आखिरे टेस्ट में बल्लेबाजी का जौहर दिखाएंगे और इसे अनुभव करना बहुत बढ़िया है।

निःसन्देह इंग्लिश टीम के सपोर्टर के रूप में मुझे राहत अनुभव हो रहा है कि वे अब नहीं खेलेंगे। पर यह सही वक्त भी है: कुछ महत्वपूर्ण सालगिरह भी हैं। और निश्चित रूप से एक सालगिरह आज है- प्रसिद्ध कवि टैगोर को नोबेल पुरस्कार मिले आज 100 साल हो गए।

और मैं सही लोगों के साथ हूं, क्योंकि आप अपने भविष्य की प्रतिभा, दिमागों तथा विलक्षणता की जरूरतों के लिहाज से प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे इस देश के भविष्य का निर्माण होगा। और कोलकाता ने अतीत में कुछ महान और उत्कृष्ट प्रतिभाओं को जन्म दिया है। अब हम हिग्स बोसोन कण की चर्चा करते हैं: जो कि भौतिक वैज्ञानिक श्री बोस के कारण है। मुझे भरोसा है कि हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि राजनीति और अर्थव्यवस्था का साथ मिलकर काम करना कितना अहम है। यही तो अमर्त्यसेन ने भी हमें सिखाया है, जो कि किसी दूसरे से कहीं अधिक हम जानते हैं।

जाहिर है आपके यहां भौतिक विज्ञान है, कविता है, इस शहर में कई प्रतिभाओं ने जन्म लिया। इसलिए इसके साथ ही स्वागत करने के लिए आप सभी को धन्यवाद। आइए अब सीधा प्रश्नों पर चलते हैं और उम्मीद करें कि कुछ असरदार उत्तर भी मिलेंगे। वहां एक माइक्रोफोन है। आप जो चाहें प्रश्न पूछ सकते हैं। सबसे पहले कौन आना चाहेंगे?

प्रश्न

हेलो! गुड मॉर्निंग श्रीमान प्रधानमंत्री। जैसा कि हम सभी जानते हैं कोलकाता अतीत में ब्रिटिश व्यापार का एक बड़ा केंद्र रहा है और एक लंबे समय के बाद हम ब्रिटिश प्रधानमंत्री की यात्रा देख रहे हैं। आपको क्या लगता है भारत-ब्रिटेन के व्यापार संबंधों को मजबूत करने में कोलकाता कैसे एक अहम भूमिका निभा सकता है?

प्रधानमंत्री

धन्यवाद! कोलकाता आने वाले तीसरे प्रधानमंत्री के रूप में मुझे गर्व अनुभव हो रहा है। मुझे लगता है कोलकाता आने वाले पहले प्रधानमंत्री थे कंजर्वेटिव पार्टी के जॉन मेजर। भारत में इतने अवसर हैं कि राजनेता पहले मुम्बई और दिल्ली आते हैं और तब घर के लिए वापस होते हैं। और मुझे लगता है यहां कितने अवसर मौजूद हैं, इसपर चर्चा करना अहम होगा।

मैं जाकर आपकी मुख्य मंत्री से मिलने वाला हूं। उनके साथ अपनी पहली मुलाकात को लेकर मैं काफी रोमांच अनुभव कर रहा हूं। मुझे लगता है कि यहां कई अवसर विद्यमान हैं। आपका शहर फैलता जा रहा है और यहां बुनियादी ढांचे और सिटी और टाउन प्लानिंग की काफी जरूरत है, जिसमें हम ब्रिटेन के लोग माहिर हैं। जाहिर है नदियों और जलमार्गों की सफाई कैसे की जाए इसपर काफी काम किए जा रहे हैं। हमें भी ब्रिटेन में टेम्स और अन्य नदियों के साथ यही करना पड़ा था। मुझे लगता है हमारे विश्वविद्यालयों के बीच एक खास रिश्ता है। आपके यहां विश्वविद्यालयी शिक्षा और इस तरह के संस्थानों की गहन परंपरा रही है। हमें अपने ऑक्सफोर्ड तथा कैम्ब्रिज के साथ अन्य नवोदित विश्वविद्यालयों को लेकर काफी गर्व है। उनमें से कई भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग करने के लिए तैयार हैं।

मेरा एक विचार यह है: मुझे लगता है हमें खुलेपन से फायदा पहुंचता है। सरकारों के लिए रक्षात्मक अवरोध से छुटकारा पाना, अर्थव्यवस्था को खोलना, टैरिफ कम कर पाना हमेशा ही कठिन रहा है, क्योंकि इससे देश में राजनैतिक चुनौतियां पैदा हो जाती हैं। पर ऐसा करना हमारे हित में है। मैंने आपको उदाहरण दिया कि कहां हमने भारतीय पूंजी में प्रवेश किया और हमें इसका लाभ मिल रहा है। मुझे उम्मीद है भारत आगे भी ऐसा खुलापन बनाए रखेगा, ताकि विश्वविद्यालयों में, बुनियादी ढांचों में, बीमा सेक्टर में तथा कई तरह के अन्य क्षेत्रों में जो कोलकाता में मोजूद हैं, निवेश करना आसान हो जाएगा। इसलिए हमें काम जारी रखने के लिए स्थिर खुलेपन की जरूरत है।

पर निश्चित रूप से इसके प्रति प्रतिबद्धता है। ब्रिटिश इसको लेकर काफी उत्साही हैं। अगला प्रश्न। पीछे बैठे श्रीमान आप।

प्रश्न

मंदी से आरंभ करें तो केनेशियन अर्थव्यवस्था में एक शिफ्ट हुआ। इसके बाद श्रीमती थैचर और रोनाल्ड रीगन ने इसे एक दिशा दी- एक मुक्त बाजार की ओर बढ़ाया। अब इस मोड़ पर जहां वर्ष 2008 में हम आर्थिक मंदी के शिकार हुए और इसके लिए नियमन की कमी को जिम्मेदार माना गया है और दूसरी ओर युरोप में स्वतंत्र ऋण संकट उत्पन्न हुआ। तो अर्थव्यवथा को किस दिशा में ले जाना चाहिए?

प्रधानमंत्री

बहुत अच्छा। हमें किस दिशा में जाना चाहिए? मेरा विचार एकदम साफ है। मैं खुले बाजार में, उद्यम में और मुक्त उद्यम प्रणाली में भरोसा रखता हूं। मुझे लगता है कि धन के सृजन का यह सबसे अच्छा तरीका है और फिर आपके पास सार्वजनिक सेवाओं को वित्त प्रदान करने, गरीबी तथा असमानता जैसी समस्याओं से निपटने की क्षमता है। पर आपको मुक्त उद्यम वाली खुली अर्थव्यवस्था की जरूरत है। और मुझे लगता है कि यह बहस कभी पूरी तरह से जीत हासिल नहीं कर पाई: आपको इसके लिए हर पीढ़ी में बार-बार लड़ाई करनी होती है। मुझे लगता है मार्ग्रेट थैचर तथा रोनाल्ड रीगन ने इस बहस को आगे बढ़ाने का काफी प्रयास किया और इसे काफी हद तक स्वीकृति मिली। पर इसे पूरी तरह से जीत कभी हासिल नहीं हुई और इसलिए आपको इसके लिए प्रयासरत रहना होगा।

मुझे लगता है कि वर्ष 2008 से 2010 की वैश्विक समस्याओं ने हमें दो अहम चीजें सिखाईं। इनमें से एक था वित्तीय सेवाओं के बारे में विनियमन। यानी किसी बाजार अर्थव्यवस्था में आपको वित्तीय सेवाओं को सही तरह से नियंत्रित करने की जरूरत होती है। बैंक ऐसे ही अहम संगठन होते हैं कि आप उन्हें बाधित नहीं कर सकते, क्योंकि यदि आप ऐसा करते हैं तो उसके साथ ही वे अपने साथ अर्थव्यवस्था में भी गिरावट लाएंगे। इसलिए उन्हें अच्छी तरह से नियंत्रित करने की जरूरत होती है। आपको अपने देश में एक जिम्मेदार संगठन तैयार करना होगा जिसके ऊपर बैंक के नियंत्रण की एक सुस्पष्ट जिम्मेदारी हो। ओर हमारे मामले में तो यह अब बैंक ऑफ इंग्लैंड है। इस सरकार ने इसे बिल्कुल साफ कर दिया है।

मुझे लगता है कि इसने जो दूसरी सीख हमें दी वह है- समय-समय पर अर्थव्यवस्था में समस्याएं और कठिनाइयां आती रहती हैं। वे हमेशा आपके नियंत्रण में नहीं होतीं। कोई भी राजनेता जो आपको कहता है कि उसने ट्रेड साइकिल को खत्म कर दिया है– यानी अब कोई उछाल या मंदी नहीं है, तो वह बेकार की बातें कर रहा है। कई सारी घटनाएं और कठिनाइयां हैं जो अर्थव्यवथा में पैदा होती रहती हैं और आपको उनकी पहचान करनी होगी। इसलिए दूसरा सबक काफी सरल है, जिसे हम सभी अपने दैनिक जीवन में देखते हैं, यानी जब सूरज चमकता है तो आपको अपनी छत्ती लगानी पड़ती है। वक्त जब अच्छा होता है, आपको सरप्लस का लक्ष्य रखना चाहिए, आपको अपने कर्जे के स्तर को कम करना चाहिए, ताकि मुश्किल वक्त आने पर आपके पास लोगों की और अपनी अर्थव्यवस्था की मदद करने की क्षमता हो। और मुझे लगता है कि वर्ष 2008-2010 की मंदी से हमें वास्तव में यही सीखने को मिला। और यही कारण है कि ब्रिटेन में हमारी सरकार इस बड़े नुकसान से अब भी मुकाबला कर रही है। हमने इसके एक तिहाई हिस्से को सुधार लिया है, पर हमें इसे पूरी तरह से सुधारना होगा। और अच्छे वक्त में जब अर्थव्यवथा ऊपर की ओर जाती रहती है, हमें सरप्लस का लक्ष्य रखना चाहिए।

इसलिए मुझे लगता है कि बाजार अर्थव्यवस्था के लिए बहस सही चीज है। मेरा मानना है हमें इससे मुकाबला करने की जरूरत है और हमें यह समझने की जरूरत है कि इसके लिए वित्तीय सेवाओं की सही और संवेदनशील नियंत्रण की आवश्यकता है। आपके प्रश्न का मेरा यही उत्तर है। पर मुझे भरोसा है कि आपके अर्थव्यवस्था के प्रोफेसरों के पास कई सारे अन्य विचार तथा प्रस्ताव होंगे।

प्रश्न

गुड ईवनिंग श्रीमान प्रधानमंत्री। मेरा प्रश्न है: इस तत्थ्य के मद्देनजर कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आप ब्रिटिश इतिहास में पहले बड़े पार्लियामेंट हैं, क्या इससे आपकी नीति निर्माण की प्रक्रिया बाधित हुई? ईयू की सदस्यता पर जनमत संग्रह तथा सीरिया के खिलाफ सैन्य कार्यवाही के लिहाज से गठबंधन वाली सरकार में कैसा अनुभव रहा? और साथ ही क्या आपको लगता है कि ब्रिटिश राजनीति में आज के बाद यह एक स्थिर परंपरा बन जाएगी?

प्रधानमंत्री

बिल्कुल सही, अच्छा प्रश्न है। मैं भारत की गठबंधन सरकार से भी कुछ अनुभव लेता हूं। पिछला गठबंधन ब्रिटेन विंस्टन चर्चिल द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध में निर्मित किया गया था, जिनका संपूर्ण युद्ध के दौरान गठबंधन सरकार रही थी। यानी इसमें कंजर्वेटिव और लेबर दोनों पार्टी के लोग शामिल थे। इसलिए हमें गठबंधन का काफी कम अनुभव है।

हमारे पास एक ऐसी निर्वाचन प्रणाली है, जो बिल्कुल निर्णायक नतीजे देती है। पर वर्ष 2010 में मुझे त्रिशंकु पार्लियामेंट का सामना करना पड़ा और मुझे एक अल्पमत सरकार से बेहतर एक गठबंधन सरकार बनाना ज्यादा सही लगा। कुछ हद तक इस संकट के कारण हमें सार्वजनिक खर्चे को कम करने, घाटे को कम करने और दीर्घकालिक फैसले लेने पड़े, और एक गठबंधन वाली सरकार ने मुझे बहुमत और फैसले लेने की क्षमता प्रदान की।

इस प्रकार हमने गठबंधन सरकार को कागगर बनाया। यह एक परिवर्तनकामी सरकार रही: हमने कल्याण के कार्यों में सुधार लाया; हमने शिक्षा में सुधार लाया; हमने उच्च शिक्षा में वित्तीय सहायता में सुधार लाया। उदाहरण के लिए हमने कुछ बड़े दीर्घकालिक कदम उठाए। पर कभी-कभी यह निराशाजनक भी रहा। कई क्षेत्र ऐसे रहे जहां मैं तेजी से आगे बढ़ना चाहता था…मुझे लगता था कि ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के लिए मैं चीजों को तेजी से बदल दूंगा। पर राजनीति में राजनेता का पहला काम होता है देश की सेवा करना। और यदि आप त्रिशंकु पार्लियामेंट की स्थिति में देश की सेवा कर रहे हैं, तो आपके देश की इस संकट की स्थिति में सबसे अच्छी चीज है- इसपर विचार करना कि हम साथ मिलकर कैसे काम करें और सही-गलत के फैसले कैसे लें।

अगला प्रश्न। यहां बैठे श्रीमान आप।

प्रश्न

शुक्रिया! जनमत संग्रह से पूर्व युरोपीय स्तर से ब्रिटिश स्तर पर योग्यताओं को वापस लाने के अवसरों का यथार्थवादी मूल्यांकन आप कैसे करते हैं?

प्रधानमंत्री

ठीक। पहले एक पृष्ठभूमि बताता हूं: ब्रिटेन युरोपीय यूनियन का एक सदस्य है, जो कई देशों का एक समूह है और अब यह पूरब में लिथुआनिया से लेकर पोलैंड तक समूचे युरोप में विस्तार कर रहा है। इस समूह में 28 देश हैं। और ब्रिटेन में भी एक बड़ी बहस जारी है कि सदस्यता हमारे हित में और इस संगठन को हमें कैसे बदलना चाहिए? और मेरा विचार है कि हमें ब्रसेल्स से कुछ शक्तियां ब्रिटेन की ओर लानी चाहिए।

मेरे ऐसा कहने का एक कारण यह है कि युरोपीय यूनियन में अभी दो समूह के देश हैं और आप जैसे अर्थशास्त्रियों के लिए यह काफी दिलचस्प होगा। एक समूह के देशों के पास एकल मुद्रा है- यानी उनकी मुद्रा यूरो है। और यदि आपके पास एकल मुद्रा है, तो यह आपको अगले एकीकरण की ओर ले जाएगा। आपको एक-दूसरे के कर्जों के बारे में देखना होता है और यह सुनिश्चित करना होता है कि आप उसी तरह से अपने बैंकों को नियंत्रित करेंगे। आपको अच्छे हालात और बुरे हालात वाले देशों के बीच अधिक राजकोषीय घाटों का हस्तांतरण करना होगा। एकल मुद्रा से एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा।

ब्रिटेन के पास एकल मुद्रा नहीं है, हम एकल मुद्रा में शामिल नहीं होंगे। हमारी अपनी मुद्रा है- पाउंड। दुनिया के दस शीर्ष अर्थव्यवस्था में एक के रूप में हम अपनी मुद्रा कायम रख सकते हैं। इसलिए मेरे विचार से हमें यह प्रयास करना चाहिए कि युरोप में हम जैसे देशों को भी शामिल किया जाए, जिन्हें कम सख्त प्रणाली पसंद है, कम नियंत्रण और अधिक लोचशीलता पसंद है, पर साथ ही इन यूरोजोन वाले उन देशों के साथ भी सामंजस्य बिठाना चाहते हैं, जिन्हें अधिक सख्त सहयोग की आवश्यकता है।

यह एक राजनैतिक चुनौती है। मेरा मानना है कि हम उस तरह से युरोप में सुधार ला सकते हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि हमें एक अच्छा नतीजा मिलेगा। यदि मैं ब्रिटिश लोगों को यह कहने के लिए- ‘हमने कुछ बदलाव किए, हमने कुछ शक्तियां वापस पाईं’ 2017 के अंत तक प्रधानमंत्री रह पाया, तो मैं जनमत संग्रह करवाऊंगा। यह चीज काफी लोचशील है। यह कारगर है। क्या आप इसमें रहना चाहते हैं या आप इसे छोड़ना चाहते हैं? क्योंकि आखिरकार आप देशों को उनके राजनैतिक इच्छा के विरुद्ध संगठनों के हवाले नहीं छोड़ सकते। आपको सहमति के आधार पर कार्य करना होता है। और मैं एक नए प्रकार के युरोप के लिए सहमति बनाना चाहता हूं, जिसे मुझे लगता है इसका सदस्य रहना ब्रिटेन के हित में होगा।

पर मुझे पूर्ण भरोसा है कि हम ऐसा करेंगे क्योंकि एकल मुद्रा के तर्क का अर्थ उन देशों के लिए है जो ऐसे कदम उठाना चाहते हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि मैं ब्रिटेन के लिए एक अच्छा सौदा तय कर पाऊंगा।

अगला प्रश्न। श्रीमान आप जो यहां बैठे हैं।

प्रश्न

गुड ईवनिंग, श्रीमान प्रधानमंत्री। मेरा प्रश्न है यह है कि एडवर्ड स्नोडेन के खुलासे पर आपकी क्या राय है?

प्रधानमंत्री

ठीक! ब्रिटिश राजनीति का एक नियम है कि हम इंटेलिजेंस तथा सुरक्षा मामलों पर टिप्पणी नहीं करते, पर मुझे लगता है कि यह आपके प्रश्न का एक उबाऊ उत्तर होगा। इसलिए मुझे थोड़ा इसके बारे में बताने दें।

सबसे पहले देशों के लिए इंटेलिंजेस और सुरक्षा को बनाए रखना बिल्कुल वैधानिक प्रक्रिया है। सरकार के रूप में हमारा कार्य, हमारी पहली जिम्मेदारी है- लोगों की सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और अपने देश को सुरक्षित रखना। और मुझे लगता है कि इंटेलिजेंस और सुरक्षा एजेंसियों का होना पूरी तरह से वैधानिक है, जो इसे अंजाम देते हैं।

और जब आप नृशंस हमलों पर विचार करते हैं, जैसा कि आपने मुम्बई में झेला या हमने लंदन तथा युनाइटेड किंगडम के अन्य हिस्सों- जैसे कि मैंचेस्टर में देखा। यदि हम इन हमलों को होने से रोकने के लिए कदम उठा सकते हैं, यदि जिम्मेदार लोगों को गिरफ्तार करने के लिए हम कार्यवाही कर सकते हैं- तब हमें वैसे कदम भी उठाने चाहिए। इसलिए मेरा एकदम स्पष्ट विचार है कि पर्याप्त वित्तीय सहायता, पर्याप्त रूप से संगठित इंटेलिजेंस और सुरक्षा सेवाएं होनी चाहिएं।

ब्रिटेन में हमारे पास इतना अच्छा तरीका है कि यह सुनिश्चित किया जा सकता है उन्हें अच्छी तरह से नियंत्रित किया जा सकता है। ये पार्लियामेंट कमीटी के प्रति जबावदेह हैं, जिसका नाम इंटेलिजेंस एंड सिक्योरिटी कमीटी है, जो उनके कार्यों पर नजर सकती है। वे कानून के तहत कार्य करते हैं, जिसे हमने ब्रिटेन में पास किया है और उनके कामों पर इंटेलिजेंस कमिशनर्स द्वारा नजर रखी जाती है। इसलिए मैं संतुष्ट हूं कि हमारे पास एक काफी अच्छी प्रणाली है जो हमें भरोसा दिलाती है कि ये संगठन सही तरह से काम करे।

जहां तक स्नोडेन के खुलासे की बात है, तो मैं कहूंगा: यह काफी नुकसानदेह होता है, जब आप संगठनों के बारे में सीक्रेट रखने वाली बातों का खुलासा करते हैं। और आप खतरे में पड़ जाते हैं…स्नोडेन जैसे खुलासे से आतंकवादियों को मदद मिलती है और संगठित अपराधों को बढ़ावा मिलता है। क्योंकि उन्हें वे सभी तरीके पता चल जाते हैं जिनके द्वारा उनपर निगरानी या नजर रखी जाती है..और इस प्रकार वे जरूरी कदम उठाने में सक्षम हो जाते हैं।

इसलिए देखिए, जबावदेही के महत्व के प्रति और इन संगठनों को अच्छी तरह से संचालित करने के महत्व के प्रति हमें अपने दिमाग बंद नहीं रखने चाहिए। पर हम सरल न बनें और न सोचें कि हम अचानक ऐसी दुनिया में रहने लगेंगे जहां हमें इंटेलिजेंस और सुरक्षा की कोई आवश्यकता न हो। हमें ऐसा करना पड़ता है और भारत में आप भी इस चीज को शायद उतना ही समझ सकते हैं जितना कोई और।

उसके आगे मुझे टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, पर मुझे लगता है कि मैंने आपको यह संकेत दे दिया है कि मैं इस मुद्दे पर कहां से आ रहा हूं।
ठीक है, अगला प्रश्न। बीच में बैठे श्रीमान आप!

प्रश्न

सर, मेरा प्रश्न अरब स्प्रिंग के बारे में है और गत अगस्त माह में सीरिया में हुए उथल-पुथल के प्रति अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया पर आपकी क्या राय है? और आपको क्या लगता है अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भविष्य में इसपर कैसी प्रतिक्रिया देगा?

प्रधानमंत्री

देखिए,मैं आपको अपनी सीधी राय दूंगा। मुझे लगता है सबसे पहले हमें अरब स्प्रिंग का स्वागत करना चाहिए। जब लोग और देश अधिक आजादी की ओर जाना चाहते हैं, अधिक भागीदारी पाना चाहते हैं, डेमोक्रेट्स की तरह अधिक लोकतंत्र पाना चाहते हैं, चाहे हम भारतीय या ब्रिटिश हों- हमें उसका स्वागत करना चाहिए।
पर हमें कुछ और भी करना चाहिए- जैसे लोकतंत्र को एक यात्रा के रूप में देखना, न कि एक घटना के रूप में। आप लोकतंत्र नहीं बनते हैं क्योंकि आप एक की चुनाव करते हैं। यह लोकतंत्र की ईंट होती है, जो कई बार काफी अहमियत रखती है या चुनावों से भी कहीं ज्यादा- क्या कानूनी समानता है? क्या न्याय तक लोगों की पहुंच है? क्या भ्रष्टाचार से मुक्ति मिली है? क्या संपत्ति के अधिकार हैं? ये चीजें उतनी ही ज्यादा महत्व रखती हैं, जितनी की चुनाव संपन्न कराना।

इसलिए मैं अरब स्प्रिंग का स्वागत करता हूं। दूसरा- इसे एक प्रक्रिया के रूप में देखता हूं। तीन- यह मानता हूं कि इसमें कुछ खामियां भी होंगी। ब्रिटेन में यदि आप हमारा इतिहास पलटेंगे और यह देखेंगे कि ठोस राजतंत्र न होने की स्थिति से एक संपूर्ण लोकतंत्र तक की यात्रा कितनी लंबी रही, तो आप पाएंगे कि इसमें सैकड़ों साल लगे। मुझे लगता है इसे समझना जरूरी है।

इसलिए मुझे लगता है वह सहीरही तरीका है। सीरिया और 21 अगस्त की घटनाएं दुनिया के लिए सचमुच एक भयानक दिन था, क्योंकि एक संघर्ष में नागरिकों के ऊपर रासायनिक हथियार का इस्तेमाल किया गया, जिसने वास्तव में एक भयावह रूप अख्तियार कर लिया। दुनिया में हर दिन कुछ न कुछ भयानक चीज होती रहती है पर हमें उनपर ध्यान देना होता है, जो वास्तव में सबसे जरूरी है। मुझे लगता है प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पूरी दुनिया एक हो गई और उसने माना कि रासायनिक अस्त्रों का प्रयोग जरा भी स्वीकार्य नहीं है। और यहां तक कि द्वितीय विश्व युद्ध की भयानक घटनाओं में भी नियमित युद्ध के दौरान कहीं रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया गया था, जैसा कि हमने प्रथम विश्वयुद्ध में देखा था। इसलिए मुझे लगता है कि यह सचमुच एक भयानक घटना था और दुनिया काफी सख्त कदम उठाए यह उचित था। अपने पार्लियामेंट में जितना सख्त कदम मैं उठाना चाहता था उसमें सफल नहीं हो सका। पर इसके बावजूद मैं यह कहता हूं लोग जो कदम मुझसे उठाने की उम्मीद कर रहे थे और अमेरिकियों ने जो उठाए, उन्हीं का परिणाम अब सीरिया में देखने को मिल रहा है…और वे अब अपने रासायनिक हथियारों को हटा रहे हैं और उन्हें नष्ट कर रहे हैं। इसलिए मुझे लगता है कि रासायनिक हथियारों का समझौता और करार दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो हमारे हित में हैं। और मुझे लगता है कि यही मेरा उत्तर है।

यहां बैठे श्रीमान आप!

प्रश्न

सर, मेरा प्रश्न भारत तथा ब्रिटेन के बीच के व्यापार से जुड़ा है। इसलिए भारत और ब्रिटेन में हम महसूस करते हैं कि वस्तुओं के व्यापार में काफी वृद्धि हुई है, पर समग्र व्यापार में हरेक देश के भागीदारी के लिहाज से इसमें उल्लेखनीय गिरावट आई है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत एक हफ्ते चीन का साथ उतना व्यापार करता है, जितना ब्रिटेन के साथ एक महीने में। इसलिए भारत तथा ब्रिटेन के बीच के व्यापार संबंधों को और मजबूत करने के लिए आप किन प्रमुख क्षेत्रों में सुधर करेंगे?

प्रधानमंत्री

हां, बहुत अच्छा। जाहिर है चीन तथा भारत, ब्रिटेन-भारत की तुलना में भौगोलिक रूप से अधिक निकट हैं, पर आप सही हैं। हमारे यहां से भारत को किया जाने वाला निर्यात 25% बढ़ा है, जो स्वागतयोग्य है। मुझे लगता है कि निवेश प्रभाह भी, जो प्रायः भविष्य के व्यापार प्रवाह का एक संकेत हो सकता है, और यह तथ्य कि भारत ब्रिटेन में और ब्रिटेन भारत में बहुत ज्यादा निवेश कर रहा है, भविष्य में एक बड़े व्यापार प्रवाह को जन्म दे सकता है। पर मुझे लगता है यहां हमें मिलकर कुछ कदम उठाने होंगे। व्यापार समझौता- ईयू-भारत के बीच; युरोपीय यूनियन-भारत मुक्त व्यापार समझौता लंबे समय से अधर में लटका है, और हमें इसपर कुछ प्रगति करनी होगी। उदाहरण के लिए ब्रिटेन का एक लोकप्रिय और सफल उत्पाद, स्कॉच व्हिस्की पर अभी भी 140% से लेकर 150% का शुल्क है।

इसलिए मुझे लगता है यह मानने की जरूरत है कि यह हमारे हित में है, पर हमें बोल्ड बनना होगा। राजनेताओं के बोल्ड बनने की जरूरत है, टेबल पर अधिक प्रस्ताव रखने की जरूरत है। कभी-कभी लोग कहते हैं कि यदि आप किसी समस्या को बड़ा बना देते हैं तो उसका समाधान करना आसान हो जाता है और शायद यह ऐसी ही समस्या है जिसे अधिक पैकेज देने और वास्तव में कुछ जोखिम उठाने का प्रयास कर बड़ा बनाने की जरूरत है। इसलिए यदि हम उन व्यापार बाधाओं से छुटकारा पाते हैं तो मुझे लगता है यह कारगर होगा।

हमें यह भी सोचना चाहिए कि हम जैसे देशों के बीच का व्यापार, जहां धन का एक बड़ा हिस्सा मानव पूंजी में लगा है, अधिक जटिल है। क्योंकि यह न केवल भौतिक वस्तुओं के निर्यात के बारे में नहीं है। यह विश्वविद्यालयों के सहयोग के बारे में है। यह स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में साथ मिलकर काम करने के बारे में हैं। यह सेवाओं, जैसे- बीमा, बैंकिंग तथा आर्किटेक्चर के बारे में है। इन्हें उदार बनाना अधिक कठिन होता है। पर उदाहरण के लिए यदि हम प्रतिबंधों की पारस्परिक मान्यता पर आगे बढ़ सकें- जिसपर हमने इस हफ्ते कुछ प्रगति की है- तो एक बड़ा अंतर देखने को मिलेगा। तो कुछ नतीजे पाना काफी कठिन है, पर इसके बावजूद हमें वे मिलते हैं, वे कहीं अधिक अहम साबित होंगे।

और इसी को ध्यान में रखते हुए, मुझे छात्रों के बारे में एक बात कहने दें, क्योंकि मैं जानता हूं वीजा और ब्रिटिश सरकार द्वारा दिए संदेशों के बारे में हमेशा ही चिंताएं रहीं हैं। आज मैं आपको एक साफ-साफ संदेश देना चाहता हूं। दो बाते हैं। सबसे पहले- ब्रिटेन आने वाले और यहां के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या पर कोई सीमा नहीं लगाई गई है। आपको अंग्रेजी भाषा की एक योग्यता परीक्षा देनी होती है, हमारे विश्वविद्यालय में आपके लिए कोई स्थान खाली होना चाहिए, पर कोई सीमा तय नहीं की गई है। आप जितनी संख्या में आना चाहते हैं आ सकते हैं।

दूसरी बात: यदि आपको कोई ग्रैजुएट नौकरी, यानी ग्रैजुएट स्तर की नौकरी मिल जाती है और जब आप किसी ब्रिटिश विश्वविद्यालय छोड़ेंगे तो वहां ठहरने वाले और कार्य करने वालों की संख्या पर भी कोई सीमा नहीं है। अब मुझे लगता है कि यह एक काफी स्पष्ट पेशकश है। निश्चित रूप से ब्रिटेन को अप्रवासन पर नियंत्रण रखना होता है। और एक अपेक्षाकृत छोटे भौगोलिक देश में, जहां कम जनसंख्या रहती है, हमें इन संख्याओं को प्रबंधित करने की आवश्यकता होती है। पर मुझे लगता है कि छात्रों को दी जाने वाली पेशकश, और यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि भारतीय छात्रों के संदर्भ में यह एकदम साफ और बहुत ही बढ़िया है।
अगला प्रश्न। यहां बैठे श्रीमान आप।

प्रश्न

गुड आफ्टरनून श्रीमान प्रधानमंत्री। भारत में कई सारे एसटीएपी छात्र आ रहे हैं, क्योंकि एशिया वास्तव में महत्वपूर्ण बनता जा रहा है और साथ ही भारत एक विकासशील देश है। और मुझे लगता है कि युरोप एक संग्रहालय बनता जा रहा है। यह अब अधिक प्रतियोगी नहीं रहा, और यही कारण है कि मैं यहां आता हूं। मेरा प्रश्न यह है: आपको क्या लगता है हम युरोप को एक प्रतियोगी स्तर पर कैसे बनाए रख सकते हैं?

प्रधानमंत्री

देखिए, मुझे लगता है आप श्रोताओं में बैठे युरोपीय लोगों के लिए कह रहे हैं। मैं यह गहराई से मानता हूं कि युरोप में यह हो सकता है और मेरे-आपके जैसे युरोपीय देश का भविष्य काफी उज्ज्वल और शानदार है। पर हम उस तरह से आगे नहीं बढ़ सकते जैसे कि आप बढ़ते हैं। हम न केवल भारत और चीन के साथ, बल्कि एक वैश्विक दुनिया के साथ, बल्कि मलेशिया और इंडिनेशिया व सिंगापोर के साथ प्रतियोगिता कर रहे हैं, और निश्चित रूप से हमें चीजों को करने के अपने तरीकों को बदलने की जरूरत है। कम पारिश्रमिक वाली अर्थव्यवस्था के साथ हमें सफलता नहीं मिलने वाली। हमने अपनी शक्तियों को बढ़ाना है। युरोपीय देशों के पास अभी भी कुछ बड़ी शक्तियां है। हम अभी भी काफी आविष्कारी हैं। मुझे लगता है ब्रिटेन दुनिया में प्रति व्यक्ति अधिक पेटेंट लेने वाला देश है। हमारे पास दुनिया के कुछ बेहतरीन विश्वविद्यालय हैं, जो एक क्षमतावान स्रोत हैं। ब्रिटेन तथा बेल्जियम का टाइम जोन दुनिया के मध्य में स्थित है, इसलिए आप एशिया के साथ सुबह में और अमेरिका के साथ दोपहर में व्यापार कर सकते हैं। निश्चित रूप से ब्रिटेन की वैश्विक भाषा है और आप बहुत अच्छी इंग्लिश बोलते हैं इसलिए आप यहां हैं।

पर देखिए, हम यदि अपनी प्रतियोगितात्मकता, अपने आविष्कारी कार्यों, अपनी रचनात्मकता में निवेश करते हैं, तो मुझे लगता है सफलता के लिए हमारे पास हरेक अवसर उपलब्ध होगा, क्योंकि यह जीरो सम जोन नहीं है। भारत के लाभ से ब्रिटेन को हानि नहीं होती। ऐसा नहीं है, चूंकि मुझे पक्का भरोसा है कि आपके अर्थशास्त्र के प्रोफेसरों इस विषय पर- यानी वैश्विक व्यापार के संपूर्ण बिंदुओं पर मुझसे बात करेंगे। यह पाने/खोने की स्थिति नहीं है। यदि आपके पास वास्तव में स्पष्ट नियम हैं, आप शुल्क से छुटकारा पा लेते हैं, आप रक्षात्मकता से मुक्ति पा लेते हैं, तो यह पूर्ण जीत की स्थिति हो सकती है। और युरोप ने आविष्कारी कार्यों, रचनात्मकता, उच्च भुगतान और उच्च मूल्य वाली नौकरियों के लिए अपने सामर्थ्य तक कार्य किया है। इन क्षमताओं तक काम करें और हम सफल हो सकते हैं। और हम जितना जुड़ेंगे और विकाशसील देशों के साथ काम करेंगे, हम उतने ही बेहतर तरीके से इसे करने में सक्षम होंगे।

हालांकि हमारी मौजूदा समस्या है- हम उच्च लागत, उच्च कल्याण और अति-नियंत्रित दुनिया के आदी हो चुके हैं। और हमें यह तथ्य मानना होगा कि हमें अधिक प्रतियोगी बनना होगा। मुझे लगता है हमें एक बड़ी लड़ाई लड़नी है।

इससे मुकाबला करने में यदि अमर्त्य सेन की बात को आधार बनाएं यानी राजनैतिक खुलेपन और आर्थिक खुलेपन एवं सफलता- तो यह युरोपीय देशों में एक सर्वाधिक अहम चीज है। और आपके यहां भारत में लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं। निश्चित रूप से दुनिया भर में ऐसे देशों के उदाहरण भरे पड़े हैं, जो लोकतंत्र नहीं हैं, पर आर्थिक सफलता की राह पर हैं। पर मुझे लगता है हमें विश्वास बनाए रखना चाहिए, क्योंकि जो लोग लोकतंत्र, अधिकारों और कानूनी समानता तथा कानूनी प्रक्रिया तथा पूर्वानुमेयता में भरोसा रखते हैं- तो आखिरकार ऐसी चीजें गहन शक्ति स्रोत साबित होती हैं। इस वैश्विक दुनिया में सबसे बढ़िया संयोजन आपके पास हो सकता है- सुदृढ़, खुला और समावेशिक राजनैतिक संस्थाएं जो सुदृढ़ और खुली अर्थव्यवस्थाओं के साथ चलती हैं। आपके पास वे दो चीजें हैं। भले ही आपके पास तेल और गैस न हो, उनसे एक बड़ी सफलता हासिल हो सकती है, भले ही आपके पास सभी प्राकृतिक संसाधन न हो, आपकी एक सच्ची सफलता गाथा हो सकती है।

मैं यहां दोनों कोरिया का उदाहरण देना चाहूंगा। आप सीमा पर अड़ सकते हैं। इसी तरह से आप दक्षिण कोरिया को देख सकते हैं, जो 1960 में समृद्धि के उसी स्तर पर था जो जाम्बिया का था। आज यह जाम्बिया से 20 गुना अधिक समृद्ध है। आप उत्तर कोरिया को देखें, जहां एक बंद राजनैतिक संस्था है, एक साम्यवादी प्रणाली है- वह भौतिक गरीबी में दुनिया के निर्धनतम देशों के बीच खड़ा है।

इसलिए आप जानते हैं आपके पास देश के रूप में एक विकल्प है और यह आपके खनिज संपदा पर निर्भर नहीं है। आप जिस भूभाग में स्थित है उससे यह स्वतंत्र नहीं है। यह अपनी संस्थाओं पर निर्भर है, आपकी बनाई नीतियों पर निर्भर है, हम जो विकल्प अपनाते हैं उसपर निर्भर है। बहुत समय पहले शेक्सपीयर ने लिखा था। इसे सरल अर्थों में समझते हैं। उन्होंने कहा- “हमारी नियति हमारी शुरुआत में नहीं बल्कि हमने निहित होती है।” वे बिल्कुल सही थे।
अगला प्रश्न श्रीमान।

प्रश्न

श्रीमान प्रधानमंत्री, राजनीति और अर्थशास्त्र से अलग हट कर, दुनिया के छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के सीईओ के रूप में आप हम जैसे प्रबंधन के छात्रों को निजी तथा पेशेवर फ्रंट पर कोई सलाह देना चाहेंगे?

प्रधानमंत्री

ठीक। प्रबंधन पर सुझाव। ठीक, आप तो यही पढ़ाई करने यहां आए हैं। बल्कि सलाह तो आपको मुझे देनी चाहिए। मुझे इसी बात से एक सीख मिली- एक अर्थव्यवस्था का सीईओ होना, बल्कि एक देश का प्रधानमंत्री होना, टीम के लिहाज से अहम होता है। आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री सभी फैसले नहीं लेता। वह हरेक विभाग का संचालन नहीं करता। आप जो सबसे अहम काम करते हैं- वह है एक टीम बनाना..और एक प्रतिभाशाली टीम और एक ऐसी टीम जिसके साथ आप काम करते और जिसपर आप भरोसा करते हैं। मुझे लगता है यह काफी अहम है।

मुझे लगता है दूसरी जरूरी चीज है एक स्पष्ट रणनीति- आपको बिजनेस की तरह ही राजनीति में भी एक स्पष्ट योजना बनाने की जरूरत होती है। कई बार यह मामलों की बरसात जैसी होती है। आपके पास हर रोज कई सारी चीजें आती रहती हैं। क्या आपको श्रीलंका का दौरा करना चाहिए? आप फिलिपींस के अकाल के बारे में क्या करने जा रहे हैं? इस मंत्री ने ऐसा क्यों किया? आपको इन सभी चीजों का सामना करना पड़ता है। आप अपने देश को सफलता की राह पर कैसे अग्रसर करेंगे, अपनी अर्थव्यवस्था में कैसे सुधार लाएंगे, चीजों को कैसे दुरुस्त करेंगे, इसके लिए आपके पास एक योजना होनी चाहिए। और आपके पास ऐसी योजना होनी चाहिए कि आप उसे सावधानीपूर्वक क्रियांवित कर सकें। मुझे लगता है मैंने ये दो अहम चीजें सीखी हैं। पर मुझे पूरा भरोसा है कि यहां अध्ययन करने से आप सफल और असफल नेतृत्व के हर अच्छे अकादमिक उदाहरण देख पाएंगे। और मुझे इस बात का भरोसा है कि मेरे इन दो उदाहरणों से इतर कई ऐसे वैज्ञानिक तरीके हैं जिनके जरिए आप इन्हें समझ सकते हैं।

अगला प्रश्न। पीछे बैठी महोदया आप!

प्रश्न

गुड ईवनिंग सर। मेरा प्रश्न कॉमनवेल्थ असोसिएशन के बारे में है। कॉमनवेल्थ असोसिएशन में ब्रिटेन की क्या भागीदारी होगी और देशों के इस समूह के भविष्य के बारे में आप क्या अनुमान लगाएंगे?

प्रधानमंत्री

ठीक, मुझे लगता है कॉमनवेल्थ अभी भी एक ऐसा समूह है जिसमें शामिल होने के लिए सभी को सोचना चाहिए। आंकड़े काफी असाधारण हैं। इसमें दुनिया के एक तिहाई देश शामिल हैं। इसमें दुनिया की अर्थव्यवस्था का पांचवां हिस्सा शामिल है। इसमें देशों की अविश्वसनीय विविधता शामिल है। आपके पास अफ्रीका के कुछ प्रमुख शक्ति केंद्र- नाइजीरिया तथा दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। इसमें कुछ सर्वाधिक विकसित दक्षिण एशियाई देश- सिंगापोर और मलेशिया शुमार हैं। आपके पास दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत है। इस समूह में कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे काफी उन्नत और सफल देश भी हैं।

जाहिर है यह दुनिया के हर हिस्से से जुड़ा है। और हमें कॉमनवेल्थ को सफल बनाने के लिए जिस चीज की जरूरत है, वह है यह भावना कि इसे एक स्पष्ट मूल्यों पर आधारित होना चाहिए, जिन्हें हम सभी मिलकर अहमियत दें। और पिछली कॉमनवेल्थ बैठक में पर्थ में हमने कॉमनवेल्थ घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किया, जिसमें, जिसे मैं कहना चाहूंगा- इस संगठन की आत्मा में विचारों के स्वर्णिम धागे पिरोए गए हैं। यानी कानून प्रणाली, स्वतंत्रता, मानवाधिकारों तथा लोकतंत्र में एक आस्था। और मुझे लगता है यह ऐसा समूह है जहां हम उन प्रयासों के लिए प्रयास करते हैं और उन्हें बढ़ावा देते हैं, साथ ही जहां हम सही होते हैं तो एक-दूसरे की पीठ थपथपाते हैं और जहां गलत- वहां एक-दूसरे पर उंगली उठाते हैं। मुझे लगता ऐसा संगठन होना अच्छी बात है।

और मुझे लगता है यह एक मिलने-जुलने का स्थान भी प्रदान करता है, जहां अन्य मुद्दों पर चर्चा की जा सकती है। इसलिए जब हम जाते हैं और श्रीलंका में मिलते हैं, तो वहां जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर चर्चा करते हैं, गरीबी से कैसे निपटे इसपर चर्चा करते हैं, भले ही हम गरीबी से निपटने के लिए यूएन को सही विचार अख्तियार करने में हम भूमिका निभाते हों।

इसलिए मुझे लगता है यह एक महत्वपूर्ण संगठन है। निश्चित रूप से यह पूर्ण नहीं है और मुझे भरोसा है आने वाले समय में हम इसपर चर्चा करने जा रहे हैं। पर मुझे लगता है कि एक वैश्विक प्रतियोगी दुनिया में एक ऐसे संगठन का सदस्य होना, जो लोगों और देशों को एक मंच में लाता है, अच्छी बात है। इसलिए मैं मानता हूं हमें अधिक से अधिक देशों को इसमें लाना चाहिए, बल्कि एक आदर्श दुनिया में मैं इसे मानवाधिकार वाले लोकतंत्र पर, जैसा कि मैंने कहा- चीजों के स्वर्णिम बुनावट पर एकजुट होते देखना चाहता हूं और देशों को लंबे समय के लिए सफल होने देखना चाहता हूं। मैं चाहूंगा कि इस पर कड़े विचार किए जाएं, क्योंकि आखिरकार मैं सोचता हूं कि यह हमारे हित में होगा और एक संगठन से जुड़ने से आपका अपना मानदंड ऊंचा हो जाता है, क्योंकि आपको भी दूसरे के मुद्दे सुनते पड़ते हैं। भले ही एक आरंभिक अवस्था में आप कई बार आलोचनाओं को दरकिनार कर देते हैं, पर दीर्घकालिक परिदृश्य में ऐसे संगठनों में आपके सहयोगियों द्वारा आपके सामने रखे गए बिंदुओं को आप विचार करते हैं।

चलिए कुछ आखिरी प्रश्न। यहां बैठे श्रीमान आप।

प्रश्न

गुड ईवनिंग सर, मेरा प्रश्न ब्रिटिश पब्लिक हेल्थकेयर प्रणाली से जुड़ा है। आपने मानव पूंजी के बारे में काफी कुछ कहा है और राजकोष पर एक बड़ी लागत पर यह आता है। उसपर और उसके लिए निर्धारित संसाधनों की मात्रा जो कि गैर-समझौता योग्य है, आपकी क्या राय है? या सुधार के लिए अधिक गुंजाइश है? धन्यवाद!

प्रधानमंत्री

बहुत अच्छा सवाल। मुझे अपने देश के नैशनल हेथ सर्विस पर गहरा भरोसा है। यह एक यूनिवर्सल सेवा है। यह भुगतान करने की क्षमता की बजाए, आवश्यकता के आधार पर ब्रिटेन में सभी को उपलब्ध है। और हमारे देश में यह एक बेहतरीन बात है कि यदि आप बीमार पड़ते हैं तो आप दुनिया के कुछ बेहतरीन अस्पतालों में आ जाकर अपना इलाज करवा सकते हैं। आप हमारे प्राथमिक हेल्थकेयर सिस्टम में कार्यरत किसी जेनरल फिजीशियन से परामर्श ले सकते हैं और अपने परिवार के स्वास्थ्य की देखभाल कर सकते हैं…और क्या कोई आपसे पूछता है- ‘क्या आपने बीमा करवाई है’, ‘आपको पास कितने पैसे हैं?’, ‘कृपया मैं आपका क्रेडिट कार्ड देख सकता हूं?’ यह ब्रिटिश सरकार की एक मिसाल है कि हर कोई भुगतान कर रहा है हर किसी का ध्यान रखा जा रहा है। और कुल मिलाकर यह एक बेहतरीन व्यवस्था है। लागत के लिहाज से निःसंदेह यह काफी महंगा है। मुझे लगता है हम हेल्थकेयर पर अपने जीडीपी का 9-10% खर्च कर रहे हैं। जब आप कुछ ऐसे हेल्थकेयर सिस्टम की तुलना करते हैं, जिनमें निजी हेल्थ इंश्योरेंस या मिश्रित व्यवस्था है, तो मुझे लगता है हमारी व्यवस्था धन के अर्थ में बेहतरीन है। इसलिए मैं अपनी व्यवस्था का बचाव करूंगा। निःसंदेह इसमें सुधार और संशोधन की आवश्यकता है। दुनिया भर में हरेक देश को अधेड़ जनसंख्या की समस्या, शामिल हुए नए उपचारों, शिशु जन्म में विकलांगता वाले बच्चों की अधिक संख्या साथ ही और भी कई समस्याओं से जूझना पड़ता है। चुनौतियां बड़ी हैं, पर मुझे लगता है वास्तव में हम उनसे निपटने में सक्षम हैं।

प्रधानमंत्री के रूप में पिछले साढ़े तीन वर्ष का कार्यकाल मेरे लिए दिलचस्प रहा। मैंने एनएचएस में कटौती नहीं की। मुझे अन्य सेवाओं में कटौती करनी पड़ी, पर हमने धन का प्रवाह जारी रखा: हर वर्ष शपथ में वृद्धि होती है। और वास्तव में तीन साल पहले की तुलना में अभी हर साल 1.2 मिलियन लोग दुर्घटना और आपातकालीन चिकित्सा के लिए आते हैं…और प्रतीक्षा समय और सेवा स्तरों के आंकड़े बराबर हैं: यानी उन्होंने इसे अच्छी तरह संभाला है।

इसलिए मुझे लगता है यह एक अच्छी प्रणाली है। हमें इसमें सुधार लाने की आवश्यकता है, हमें इसे कम नौकरशाही बनाना है, हमें यह सुनिश्चित करना है कि अपने आप के अलावा यह निजी और स्वयंसेवी सेक्टरों के साथ मिलकर काम कर सके, पर मैं यहां यह भी दलील दूंगा कि आपको पता है कि किसी भी सरकार के लिए स्वास्थ्य सेवा से निपटना हमेशा से एक प्रमुख राजनैतिक मुद्दा रहा है। पर मैं दूसरी व्यवस्थाओं पर नजर नहीं डालता और यह नहीं सोचता कि उन्होंने यह अच्छा किया और हमने यह गलत किया। मुझे लगता है कि हमारे पास एक अच्छी व्यवस्था है जिसमें हम और सुधार ला सकते हैं। पर हर देश को अपना मार्ग अपनाना चाहिए।
यहां बैठी महाशया आप!

प्रश्न

गुड ईवनिंग सर! आपने अभी-अभी जिस वर्क वीजा मुद्दे पर चर्चा की, उसपर पर वापस लौटते हुए सोचें तो यह वास्तव में सराहनीय है कि वहां काम करने वाले छात्रों की संख्या पर कोई सीमा नहीं निर्धारित की गई है। पर स्पॉन्सरशिप को लेकर जो पाबंदियां लगाई जा रही हैं- यानी अब कंपनी को छात्रों के लिए स्पॉन्सरशिप देना होगा, उनपर आपके क्या विचार हैं? और मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह है कि बहुत सारी कंपनियां छात्रों को अस्वीकार कर रही हैं, क्योंकि वे उनका स्पॉन्सरशिप नहीं लेना चाहतीं।

प्रधानमंत्री

जैसा कि मैंने कहा कि हमारे पास ऐसी प्रणाली है जहां आवेदन करने वालों की संख्या के लिए कोई सीमा नहीं तय की गई है, पर हमारे पास एक ऐसी व्यवस्था भी है जहां हम यह नहीं कह रहे हैं कि जब आप यूनिवर्सिटी छोड़ेंगे तो आप नन-ग्रैजुएट नौकरी कर सकते हैं। इसलिए कई सारे लोग स्पॉन्सरशिप लेना पसंद कर रहे हैं।
हमारे पास एक ऐसी व्यवस्था भी है- खुल कर कहूं तो एक ऐसी व्यवस्था जहां हम शुल्क लगाते हैं। आपको पता ही है, यूनिवर्सिटी की शिक्षा महंगी होती है और हम छात्रों से इसके लिए शुल्क लेते हैं: विदेशी और अपने देश के छात्र दोनों से। आप यहां एक बढ़िया आर्थिक बहस आयोजित कर सकते हैं- मेरा विचार है कि छात्रों को उच्च शिक्षा की कीमत अदा करने के लिए कहना सही है। क्योंकि उदाहरण से पता चलता है कि यदि आपके पास हमारे देश की कोई डिग्री है, तो निःसंदेह आप जीवन काल में आपकी उपार्जन क्षमता £100,000 तक पहुंच जाती है।

इसलिए आपके पास एक विकल्प है। या तो आप करदाताओं को भुगतान करने को कह सकते हैं अथवा आप अंडरग्रैजुएट्स, ग्रेजुएट्स तथा बिजनेस स्पॉन्सरों को भुगतान करने को कह सकते हैं। मुझे लगता है पहले के मुकाबले दूसरा विकल्प अधिक उचित है। यह इसलिए नहीं कि आपको इससे लाभ मिल रहा है इसलिए आपको भुगतान करने को कहा रहा है, बल्कि आप इससे बचत हुई राशि का इस्तेमाल सार्वजनिक व्यय वाले अन्य क्षेत्रों में कर सकते हैं जहां इसकी अधिक आवश्यकता है। और यदि आप इस वैश्विक दौड़ में शामिल हैं और यदि हमें अपने बजट खाटे को कम करना है, तो आपको प्रयास करना होगा और अपने धन को उन चीजों के लिए संभाल कर रखना होगा जिन्हें वास्तव में ध्यान देने और शुल्क की जरूरत है, उदाहरण के लिए उन पाठ्यक्रमों के छात्र।
यहां चेक शर्ट में बैठे श्रीमान।

प्रश्न

क्या सचिन तेंदुलकर को उनके क्रिकेट से संन्यास लेने पर नाइटहुट से समानित किए जाने की कोई योजना है?

प्रधानमंत्री

सचिन तेंदुलकर के बारे में जो सबसे अच्छी बात है कि वे न केवल रिकॉर्ड के आधार पर, जो कि एक असाधारण रहा है, बल्कि इसलिए भी मुझे लगता है एक खिलाड़ी और महिलाएं युवाओं के लिए रोल मॉडल बन सकती हैं। और मेरा मानना है दो देशों को पास लाने, संस्कृतियों को साथ लाने में क्रिकेट की ताकत काबिलेतारीफ है। और मुझे लगता है अधिक से अधिक रनों के साथ हमें इस बात का भी उत्सव मनाना चाहिए।

मैं मुम्बई के मैदान पर हुए मेरे एक क्रिकेट के गेम से अभी तक उबरा नहीं हूं, जहां मुझे एक 12 वर्ष के खिलाड़ी ने आउट कर दिया था। तब बीबीसी इसपर फिल्म बना रही थी। और जब मैं वापस लौटा, तो प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी- जियोफ्री बॉयकॉट ने मेरे साथ बदसलूकी की और कहते रहे- ‘आपको अपना बायां हाथ अलग कर देना चाहिए…कैमरे पर किसी क्रिकेट खिलाड़ी द्वारा यह बदसलूकी थोड़ी बुरी थी।’

पर सचिन के बारे में बहुत सारा उत्सव मनाना चाहिए। पर दुर्भाग्यवश सम्मानित किया जाना मेरे हाथ में नहीं है।

आखिरी सवाल। आइए पीछे बैठे कोई श्रीमान आएं। पीछे सफेद कपड़ों में बैठी महोदया आप।

प्रश्न

आप दुनिया के सबसे देशों में एक के सबसे युवा प्रधानमंत्री रहे हैं, इसलिए क्या आपको लगता है कि एक युवा प्रधानमंत्री होना अच्छी बात है या एक अनुभवी और बुजुर्ग प्रधानमंत्री होना?

प्रधानमंत्री

लोग जब मुझे कहते हैं- ‘वैसे इस काम के लिए आपकी उम्र काफी कम है’, तो मैं कहता हूं- ‘यह ऐसी समस्या है जो समय के साथ दुरुस्त होगी’। कई सारी ऐसी समस्याएं हैं जिन्हें वक्त नहीं दुरुस्त कर सकता है।

मुझे लगता है कि उम्र मायने नहीं रखता; दरअसल प्रतिबद्धता, विश्वास, एक टीम बनाने की क्षमता और सही चीज करने का प्रयास मायने रखते हैं। मैं ऐसे प्रधानमंत्रियों को देखता हूं जो मेरी उम्र से दुगने हैं, कई बार तो कमाल के काम करते हैं। इसलिए मुझे नहीं लगता कि उम्र कोई बड़ी बात है।

मैं एक खास स्थिति में हूं जहां मेरी पार्टी लंबे समय से सत्ता से बाहर रही है। मेरी पार्टी आधुनिकीकरण और नयापन लाना चाहती थी। यह कुछ अलग राह अख्तियार करना चाहती थी और लोगों के संपर्क में आना चाहती थी, इसलिए इसने एक जोखिम उठाने का फैसला किया और बुजुर्ग की बजाए युवा नेता चुना। पर मुझे नहीं लगता है कि उम्र से कोई अंतर पड़ता है- बल्कि मेरा मानना है कि कई दूसरी चीजें हैं जिनसे जरूर फर्क पड़ता है। पर निश्चित रूप से यह काम करने में किसी घटना में आपके लंबे साल खर्च हो जाते हैं। इसलिए आप न केवल अधिक उम्र के हो जाते हैं बल्कि अंत में आप कुछ अधिक बूढ़े अनुभव करने लगते हैं।
जारी रखें…आप श्रीमान- आप काफी धैर्यवान दिखते हैं।

प्रश्न

गुड ईवनिंग सर, संयुक्त राष्ट्र के गठन के लगभग 70 वर्ष बीत चुके हैं। इसलिए क्या आपको लगता है कि सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में भारत, ब्राजील और जर्मनी जैसे नए राष्ट्रों को शामिल करना चाहिए?

प्रधानमंत्री

सबसे पहले तो मेरे हिसाब से संयुक्त राष्ट्र पूर्ण नहीं है, पर इस दुनिया में ऐसी चीज होनी अच्छी बात है। इस दुनिया में एक संवेदनशील सरकार तथा प्रयास को आजमाने के लिए आपके पास संस्थाओं और नियमों की आवश्यकता होती है। इसलिए हम सभी को युनाइटेड नेशंस को समर्थन देना चाहिए, यूएन चार्टर का समर्थन करना चाहिए और इसके द्वारा लिए फैसलों का समर्थन करना चाहिए।

पर हम जिस तरीके से इसमें सुधार ला सकते हैं, वह है सुरक्षा परिषद को आधुनिक बनाना। यह अभी जैसा दिख रहा है उसके लिए कोई तर्क नहीं है और मैने यह दलील पहले भी दी है। कंजरवेटिव पार्टी का नेता बनने के बाद जब मैं भारत आया था, तब मैंने यह बात उठाई थी। इसमें कोई शक नहीं कि सुरक्षा परिषद को अपने स्थाई सदस्य के रूप में भारत को शामिल करना चाहिए।

पर यह जितना अहम परिवर्तन है, तो मुझे लगता है कि सुरक्षा परिषद को भी राजनैतिक इच्छाशक्ति दिखानी चाहिए। मुझे लगता है यही वह बिंदु है जहां आकर दुनिया असफल हो जाती है और मुझे पूरा भरोसा है आप इसका अध्ययन अपने राजनैतिक विज्ञान की कक्षाओं में करेंगे। कोई व्यक्ति संस्थाओं के बारे में काफी सारी बहस कर सकता है; जैसे कि आप कैसे किसी संस्था को बदलेंगे, आप कैसे किसी संस्था में सुधार लाएंगे, क्या आपको किन्हीं नए नियमों की जरूरत है, क्या आपको नए सदस्यों की आवश्यकता है? ये सारे अहम राजनैतिक प्रश्न हैं, पर भूलिए मत, आखिरकार संस्थाओं से अधिक अहम राजनैतिक इच्छा शक्ति, कार्यवाही करने का निर्णय लेना और कोई एक फैसला लेना होता है।

और मुझे उम्मीद है आपमें से कुछ जब बिजनेस में, कुछ राजनय में या कुछ राजनीति में जाएंगे तो आप उसके बारे में विचार करेंगे। केवल संस्थाओं को सुधारने का न सोचें, आपको यह भी सोचना होगा कि उसके बारे में आप कैसे व्यवहार करेंगे, आप कब कोई फैसला लेंगे, आप किसके लिए उठ खड़े होंगे। क्योंकि आखिरकार इसी बिंदु पर युनाइटेड नेशंस सफल रहा, जैसे कि लीबिया के मुद्दे पर जहां इसने एक दृढ़ फैसला लिया। और राजनैतिक इच्छा शक्ति उतना ही अहम है जितनी कि कोई संस्था या कोई चीज जिसके बारे में हम अपनी अहम किताबों, जर्नलों तथा अन्य चीजों में पढ़ते हैं।

क्या मैं आपको एक शानदार स्वागत के लिए फिर से शुक्रिया कहूं। मेरे लिए यहां आना काफी सुखद रहा और आप सभी को शुभकामनाएं। शुक्रिया! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!

प्रकाशित 15 November 2013