भाषण

कोलकाता हेतु जलवायु जोखिम प्रबंधन नीति पर कार्यशाला

कोलकाता हेतु जलवायु जोखिम प्रबंधन नीति पर कार्यशाला में कोलकाता में ब्रिटिश उप उच्चायुक्त ब्रूस बकनेल के अभिभाषण के मुख्य अंश।

कोलकाता

देवियो तथा सज्जनो,

मेरे लिए यहां कोलकाता हेतु जलवायु जोखिम प्रबंधन नीति पर आयोजित कार्यशाला में उपस्थित होना बेहद सौभाग्य का विषय है। कोलकाता महानगर पालिका (केएमसी) का यह मेरा पहला आधिकारिक दौरा है। और मुझे कहना पड़ेगा कि अपने पूर्ववर्तियों की भांति ही, मैं भी जलवायु के सामने इस महान शहर की असुरक्षित स्थिति के समाधान के लिए सामने आनेवाले नए विचारों तथा उभरने वाली युक्तियों को आजमाने के प्रति केएमसी के उत्साह और वास्तविक दिलचस्पी से बेहद प्रभावित हुआ हूं।

संयुक्त राष्ट्रसंघ का अनुमान है कि दुनिया भर में निम्न-तलीय समुद्रतटीय प्रदेश में 3,351 शहर बसे हुए हैं। तटीय बाढ़ आपदा से प्रभावित होनेवाली जनसंख्या के हिसाब से, इनमें से सबसे ऊपर के 10 शहर हैं, मुंबई, गुआंगझू, शंघाई, मियामी, हो ची मिन्ह सिटी, कोलकाता, न्यूयॉर्क, ओसाका-कोबे, अलेक्जांड्रिया तथा न्यू ऑर्लियंस। टोक्यो, न्यूयॉर्क, मुंबई, शंघाई, कोलकाता तथा ब्यूनस आयर्स विनाशकारी तूफानी लहरों से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले शहरों में हैं।

भारत दुनिया का एक बेहद आपदा-संवेदनशील देश है। इसने 2015 तथा 2016 में कई तरह के विनाशकारी जलवायविक आपदाओं का सामना किया है- बाढ़ से लेकर बेमौसम बारिश तक और प्राणघाती लू से लेकर बर्फीले झंझावातों तक का। अर्थ सेक्यूरिटी ग्रुप (पृथ्वी सुरक्षा समूह) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को विनाशकारी मौसमी आपदाओं के कारण हर वर्ष लगभग 9-10 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर नुकसान उठाना पड़ता है।

2015 में, एक दशक के दौरान हुई सर्वाधिक बारिश ने तमिलनाडु में भीषण बाढ़ पैदा कर दी, जिससे लगभग 710 मिलियन अमेरिकी डॉलर के बीमा दावे होने का अनुमान किया जाता है।

जलवायविक आपदाओं में, जैसा कि सबको मालूम है, शहरी व्यवस्थाओं को गंभीर रूप से क्षति पहुंचाने की क्षमता होती है तथा यह शहरी अवसंरचनाओं पर गंभीर खतरे के साथ ही सबसे महत्वपूर्ण रूप से नागरिकों के जीवन के लिए भी खतरा उपस्थित करता है। यह कोलकाता जैसे शहरों के लिए खासतौर पर सही है जो जलवायविक आपदाओं के प्रभाव के लिए बहुत ज्यादा संवेशनशील स्थिति में हैं, जो सामाजिक तथा आर्थिक दोनों क्षेत्रों को प्रभावित करता है। 2009 में, आइला चक्रवात ने पश्चिम बंगाल के इस इलाके में 150,000 लोगों को घर और आजीविका से महरूम कर दिया था। लॉयड्स सिटी रिस्क इंडेक्स (लॉयड्स शहरी खतरा सूचकांक) का अनुमान है कि तूफानों और बाढ़ से कोलकाता की जीडीपी पर खासा असर पड़ सकता है।

आपमें से कई को यह ज्ञात होगा कि निम्न कार्बन तथा जलवायु-प्रतिरोधित कोलकाता पर हमारे ब्रिटेन-कोलकाता म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन प्रोग्राम के तहत, पीडबल्यूसी तथा टीएआरयू ने शहर पर जलवायविक खतरे के स्तर को समझने के लिए एक जीआईएस-आधारित तथा भूतल सर्वेक्षण किया है और शहर के लिए एक जलवायु-प्रेरित आपदा प्रबंधन कार्ययोजना तैयार की है। आपको इस सत्र में बाद में इस दिलचस्प प्रबंधन नीति की झलकियां देखने को मिलेंगी जब टीएआरयू इसकी मुख्य विशेषताएं और अनुशंसाएं प्रस्तुत करेंगे। इनमें से एक अनुशंसा ऐसी है जिसका यहां मैं जिक्र करना चाहूंगा और जो आज की इस कार्यशाला से भी प्रत्यक्ष संबद्ध है- और यह है जलवायु जोखिम का बीमा।

एक विशाल शहरी गरीब आबादी तथा जलवायविक खतरों के प्रति असुरक्षित अधिकांश अवसंरचनाओं को देखते हुए, शहरों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे आपदाओं के लिए तैयारी करें और नए किस्म के दृष्टिकोण के जरिए नागरिकों तथा निवेशों की सुरक्षा का भरोसा दें। इस तरह का एक प्रयत्न आधुनिक जलवायु मॉडल का उपयोग तथा नगरपालिका स्तर पर जोखिम का आकलन करना है, जिसके साथ ही शहरों के आपदा पुनर्निर्माण तथा सहायता योजनाओं के लिए प्रभावी बीमा उपायों का उपयोग किया जा सकता है।

जलवायविक मॉडल निर्माण के मसले पर, हम ब्रिटेन के मेट कार्यालय की विशेषज्ञताओं का उपयोग करने की संभावनाएं तलाश रहे हैं।

और जोखिम आकलन पर, हमने पीडबल्यूसी के साथ यह अध्ययन किया है, जिसका उद्देश्य है:

  • पांच प्रमुख भारतीय शहरों- कोलकाता, चेन्नई, पुणे, पटना और कोच्चि में शहरी अवसंरचनाओं द्वारा झेली गई मौसमी आपदाओं के परिमाण को समझना
  • जोखिम बीमा के माध्यम से अवसंरचना के लिए जलवायु-प्रेरित जोखिम के उन्मूलन हेतु विकल्पों के महत्व पर प्रमुख हितधारकों को समझाना

यह कार्यशाला इसी प्रयास का एक भाग है।

हमें जलवायविक घटनाओं के प्रति शहरों की प्रतिरोध नीतियों को मजबूत बनाने के लिए उनके साथ मिलकर काम करना चाहिए होगा। हम जोखिम न्यूनीकरण हेतु निवेश करने और शहरों को आपदाओं से निपटने में सक्षम बनाने के लिए नए कदमों तथा प्रौद्योगिकी प्रयुक्त करने में एक दूसरे की सहायता कर सकते हैं।

अन्य सूचनाएं

क्लाइमेट स्मार्ट डिजास्टर मैनेजमेंट स्ट्रेटजी फॉर कोलकाता: एक परियोजना जिसे हाल ही में, निम्न कार्बन तथा जलवायु सुरक्षित कोलकाता हेतु, यूके केएमसी समझौता ज्ञापन (एमओयू) के अंतर्गत कोलकाता के लिए एक जलवायु स्मार्ट आपदा प्रबंधन नीति तैयार करने के उद्देश्य से शुरू किया गया है। इस परियोजना का कार्यान्वयन पीडबल्यूसी तथा टीएआरयू लीडिंग एज प्रा. लि. द्वारा किया गया है।

इस परियोजना का उद्देश्य है शहर में मौसमी आपदाओं के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के निहितार्थों का विश्लेषण करना, आपदा की घटनाओं के लिए शहर की तैयारी को समझना, तथा वर्तमान में जारी आपदा जोखिम प्रबंधन प्रयासों को ध्यान में रखते हुए वर्तमान तथा भावी संवेदनशीलता को कम करने के लिए बेहतर तैयारी के साथ प्रबंधन हेतु एक कार्ययोजना का प्रस्ताव करना।

इस परियोजना के तहत जलवायविक संवेदनशीलता आकलन के एक भाग के रूप में, कोलकाता के 5 वार्डों में नमूने के तौर पर, जलवायविक संवेदनशीलता का एक वार्ड स्तरीय मानचित्रण किया गया है। इसमें प्रयुक्त कार्यप्रणाली में भूतलीय सर्वेक्षण के साथ सेटेलाइट दृश्यांकन और साथ ही सामुदायिक संपर्क और सहभागिता को भी सम्मिलित किया गया है, ताकि जलवायविक आपदा तैयारी के संदर्भ में संवेदनशीलता के साथ ही स्थानीय आवश्यकताओं के लिए भी निष्कर्ष निकाले जा सकें।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:

  • औसतन, 2 अतिवृष्टि (~64 से 124 मिमी) की घटनाएं हर वर्ष घटती हैं जो प्रतिवर्ष 0 से 11 दिनों तक चलती हैं। ज्यादातर शहरों की नालियां पुरानी हैं और काफी कम परिमाण के लिए बनाई गई हैं- संभवतः एक घंटे में चौथाई इंच (6मिमी) या दिनभर में 150 मिमी बारिश के लिए। पर्याप्त नाली अवसंरचना न होने से शहर बाढ़ के लिए अतिसंवेदनशील बन जाता है
  • एक वर्ष में औसतन प्रति कर्मचारी लगभग 21 मानव दिवस की हानि होती है। गरीब खासकर दैनिक मजदूरी पानेवाले दुर्भाग्यवश इन घटनाओं से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। हर साल अधिकांश परिवारों को त्वचा संक्रमण तथा जलजनित बीमारियां परेशान करती हैं। अनौपचारिक अर्थव्यवस्थाओं में (मुख्यतः हॉकर) जल-जमाव की अवधि में 30% तक राजस्व हानि दर्ज की गई है।
  • हालिया बाढ़ (2015) के दौरान चेन्नई की तुलना में कोलकाता की वर्षा-स्तर स्थितियों से पता चलता है कि शहर के 90% से ज्यादा भाग में जल-जमाव होगा, इनमें सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र हैं शहर के पश्चिम, दक्षिण, तथा उत्तर के हिस्से।
  • ताप द्वीप प्रभाव प्रमाण- यह शहर जलवायु प्रेरित ताप द्वीप प्रभाव के हिसाब से भी संवेदनशील है खासकर उन क्षेत्रों में जहां घनी आबादी पाई जाती है। {शहर का खुला क्षेत्र (1990) के 25% से (2012) तक 10% सिकुड़ गया है}। इस परियोजना के एक भाग के रूप में ताप द्वीप आकलन के माध्यम से चरम गर्मी के दौरान शहर के भीतर विभिन्न क्षेत्रों के बीच 2-6 डिग्री तक के अंतर का पता चलता है।

कुछ मुख्य अनुशंसाएं इस प्रकार हैं:

  • पूर्व चेतावनी प्रणाली तथा आपात कार्य केंद्रों की स्थापना
  • शहर में स्वचालित मौसम निगरानी केंद्रों तथा नदी जलस्तर-मापन केंद्रों की संख्या बढ़ाना
  • स्वचालित ज्वारीय प्रवाह बचाव प्रणाली की स्थापना उन स्थानों पर करना जहां तूफानी जल नालियां/ सीवेज, नहरों या नदी से मिलते हैं
  • प्रभावी जल-निकासी क्षेत्र नियोजन
  • संकरे क्षेत्रों तक भी फायर ब्रिगेड तथा एंबुलेंसों के पहुंचने में सहूलियत के लिए सड़कों को चौड़ा किया जाना
  • रक्षात्मक कार्रवाई को प्रोत्साहित करने के लिए वार्ड-स्तरीय तूफानी-जल प्रबंधन उपाय, तथा नागरिकों में व्ययवहारगत परिवर्तन लाना ताकि उन्हें अपशिष्टों का सुरक्षित निपटान करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके
  • ताप द्वीप प्रभाव से सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए शहर हेतु ताप तथा स्वास्थ्य कार्ययोजना तैयार करना

केएमसी ने कार्यान्वयन योजना के साथ इसकी शुरुआत कर दी है और यह जल्द ही पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना, जलवायु स्मार्ट भू-उपयोग योजना के माध्यम से जल-निकासी क्षेत्र नियोजन, तथा क्षमता निर्माण पर, एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय एजेंसी के सहयोग से काम शुरू करने जा रहे हैं।

इसी प्रकार, इस परियोजना के परवर्ती चरण में, ब्रिटेन सरकार भी एक परियोजना की शुरुआत करेगी जिसका उद्देश्य कोलकाता सहित 5 भारतीय शहरों में जलवायु जोखिम बीमा जैसे साधनों के माध्यम से वित्तीय प्रतिरक्षात्मकता पैदा करना है ताकि शहर के अवसंरचना निवेशों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

आपदा प्रबंधन अध्ययन के निष्कर्ष, केएमसी में 16 फरवरी 2017 को आयोजित जलवायु जोखिम प्रबंधन पर भागीदारों की कार्यशाला में प्रस्तुत किए गए। इस कार्यशाला में इस आपदा प्रबंधन अध्ययन के मुख्य निष्कर्षों तथा अनुशंसाओं तथा शहर के लिए बेहतर आपदा सुरक्षात्मक तैयारी हेतु केएमसी की भावी कार्ययोजना पर चर्चा की गई।

अधिक तकनीकी जानकारी के लिए कृपया संपर्क करें हेमंती पोद्दार: 0-98314-77692

प्रकाशित 16 February 2017