भाषण

'हम दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों का समर्थन करते हैं'

ब्रिटिश उप उच्चायुक्त कोलकाता ब्रूस बक्नेल ने कोलकाता में 11 अक्टूबर 2017 को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर मुख्य व्याख्यान दिया।

Kolkata

आप सोच सकते हैं कि आज मैं आपसे क्यों बोल रहा हूं।

मैं एक मध्यम आयु वर्ग का आदमी हूँ। मेरे 2 बेटे हैं। आप मुझे आसानी से ‘पितृसत्ता के भाग’ के तौर पर परिभाषित कर सकते हैं। आज मैं यहां आपसे अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के बारे में क्यों बात कर रहा हूं?

ये वो दिन है जब हमें लैंगिक असमानता में योगदान देने वाले मुद्दों से निपटने के तरीकों और उन चुनौतियों के बारे में सोचना चाहिए, जिसका युवा लड़कियों को रोजमर्रा के जीवन में हर जगह सामना करना पड़ता है।

आज (14 वर्ष से कम आयु) की 1.1 अरब लड़कियां हैं - यह सभी के लिए बेहतर और स्थायी दुनिया बनाने के लिए बेहतरीन आंकड़े हैं।

हम सभी को उन्हें उनके सपनों तक पहुंचाने और उनके व उनके समुदायों के लिए बेहतर जीवन बनाने के लिए उन्हें सशक्त बनाने में निवेश करने की आवश्यकता है। यह सिर्फ लड़कियों और महिलाओं के लिए नहीं है। हम सभी की मां और दादी हैं। हम सभी के महिला संबंध है, और हममें से कुछ की बहन और बेटियां हैं।

मैं भी एक अलग संस्कृति से आया हूं। मैं पश्चिमी, ईसाई परंपरा में शिक्षित हुआ हूं। मैंने बाइबिल पढ़ी है, उसका अध्ययन किया, और न्यू टेस्टामेंट से क्रिश्चियन एथिक्स को सीखा है जिसमें यीशु मसीह का जीवन और ज्ञान दर्ज है।

विवेक हमेशा उम्र के साथ नहीं आता है। न ही यह लिंग के साथ आता है। न ही किसी एक धर्म का ज्ञान पर एकाधिकार है। आज की तैयारी के अंतर्गत मुझे स्थानीय धर्मों से कुछ ज्ञान चाहिए था। मुझे हिंदू परंपरा के बारे में ऐसी जानकारी या समझ नहीं थी, लेकिन हमने अभी दुर्गा पूजा का उत्सव मनाया है।

माँ दुर्गा योद्धा देवी है, जो बुराई से लड़ती हैं और अत्याचार, उत्पीड़न और दुष्टों के खिलाफ अपनी शक्तियों का प्रयोग करती हैं । वह सिर्फ मां या बेटी के रूप में नहीं बल्कि एक लीडर और योद्धा के रूप में भी पूजी जाती हैं। यहां स्पष्ट संदेश यह है कि लड़कियां जो चाहे वो बन सकती हैं।

भारत बौद्ध धर्म का भी गढ़ रहा है। और बुद्ध की शिक्षाओं में, ‘दंड’ (के कौल द्वारा अनुवादित) पर पाठ में धम्मपद से प्रासंगिक ज्ञान मौजूद है:

दंड और मृत्यु
कड़वे फल हैं
बुरे कर्मों के
वास्तविकता की उपेक्षा में किये गये
तो ध्यान में रखें
कि हर कोई भय में रहता है
दंड और मृत्यु के
आपकी तरह जीवन को प्यार करते हुए
इसलिए दूसरों के साथ वही करो
जैसा कि तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें,...
....यदि आपको खुशी होती है
अच्छा काम करने में
जिससे दूसरों को खुशी मिलती है
आप इस जीवन में और उसके बाद खुश रहेंगे।

खुश रहना। दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करना जैसा आप उनसे अपने प्रति चाहते हैं। हम उसे कैसे कर सकते हैं? चलिए मैं 3 चीजों की बात करता हूं।

पहला - भाषा। हम अपने शब्दों से अपनी निंदा करते हैं

हम कई अलग-अलग तरीकों से संवाद करते हैं। हम बात करते हैं और शब्द हमारे मुंह से निकलते हैं। हम जो कहते हैं उसका लहजा और संदर्भ होता है, जब हम बोलते हैं तो चेहरे की अभिव्यक्ति होती है।

लेकिन जब हम बोलते हैं, तो कोई सुन रहा होता है। जब हम संचारित करते हैं, तो कोई ग्रहण करता है। जब हम खुद को दर्शकों के सामने व्यक्त करते हैं, तो हम क्या कह रहे हैं दूसरे इसको समझने की कोशिश करते हैं।

और अपने द्वारा कहे गए शब्दों का मेरे लिए जो मतलब हो जरुरी नहीं कि मेरे श्रोताओं के लिए भी उसका वही अर्थ हो। कुछ श्रोतागण मेरे द्वारा कहे गए शब्दों को समझ सकते हैं और उससे सहमत हो सकते हैं और अन्य ऐसा करने में असमर्थ हो सकते हैं। और हमारे पास अपने उपयोग किए जाने वाले शब्दों का अच्छा विकल्प है।

अपने रोजमर्रा के जीवन में हम सभी को हंसना पसंद है। हंसने से जीवन बेहतर बनता है। हंसी जीवन की सबसे अच्छी दवा है। हंसने से अच्छे हार्मोन का स्राव होता है जो तनाव को कम करते हैं और सुख की भावना को बढ़ाते हैं।

अगर आप किसी और को अपनी हंसी का पात्र बनाते हैं तो क्या होगा?

इससे लिंग भेदभाव और असमानता कायम होगी। हम सभी को इसको रोकने के लिए गंभीर प्रयास करने चाहिए। हम क्या कर सकते है?

राजनयिक लगातार प्रतिक्रिया की तलाश में हैं। हम यह जानना चाहते हैं कि दूसरे हमारे देश के बारे में क्या सोचते हैं (मेरा मतलब है कि वे हमारी सरकारों के बारे में क्या सोचते हैं)। हमारे आम जीवन में अगर हम हर समय अपने बारे में दूसरो की भावनाओं के बारे में पूछे तो काफी उबाऊ होगा।

लेकिन हम अपने शब्दों, अपनी भाषाओं और अपने चुटकुले के बारे में पूछ सकते हैं। सबसे अच्छी प्रतिक्रिया तब होती है जब लोग बिना पूछे बोलते हैं। आसानी से कह दिया गया - लेकिन हमें क्या करना चाहिए?

दूसरे: हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों की पसंद के पीछे, रूढ़िवादिता निहित है।

यौन रूढ़िवादिता - जैसे कि कमजोर लिंग के तौर पर महिलाएं - 14 वर्ष की आयु से निहित होती हैं। यह ऐसा मामला है जिसे आपको अमीर या गरीब दोनों देशों में देखने को मिलता है।

शुरुआत से ही माता-पिता, रिश्तेदार, भाई बहन, सहपाठी, शिक्षक, पादरी, कोच, सोशल मीडिया, टीवी और अन्य मीडिया सहित समाज के सभी हिस्सों से यह संदेश दिया जाता है कि लड़कियां संवेदनशील होती हैं और लड़कें मजबूत होते हैं।

लड़कों को अपर्यवेक्षित तरीके से घर से बाहर समय बिताने के लिए अधिक बढ़ावा दिया जाता है। लड़कियां घर पर रहती हैं और काम करती हैं। यहां मां की भूमिका महत्वपूर्ण है - क्या वह अपने बेटे और बेटी को को समान मानती है या वह क्या वह पितृसत्तात्मक अनुक्रम में सहज महसूस करती है?

यूएन वूमेन ने महिलाओं की उन्नति के लिए #हीफ़ॉरशी सॉलिडेरिटी कैंपेन की शुरूआत की है। इसका उद्देश्य महिलाओं और लड़कियों के सामने आने वाली नकारात्मक असमानताओं के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पुरुषों और लड़कों को प्रोत्साहित करके उन्हें बदलाव के एजेंट के रूप में शामिल करना है।

इस विचार में पाया गया कि लैंगिक समानता एक ऐसा मुद्दा है जो सभी लोगों को - सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से - प्रभावित करती है - इसके लिए पुरुषों और लड़कों को एक ऐसे आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल करना होगा जिसे मूल रूप से ‘महिलाओं द्वारा महिलाओं के लिए संघर्ष’ के तौर पर माना गया था।

हमें असंगत हो जाने का डर है। लेकिन हमारे ऊपर बोलने की ज़िम्मेदारी है विशेष रूप से अगर हम इस पर रोक लगाना और बेहतरी के लिए बदलाव लाना चाहते हैं।

चलिए अब अवसर की समानता पर आते हैं। चलिए अब मैं अपने संगठन के बारे में बताता हूं।

हमारी पैरेंट मिनिस्ट्री - विदेश एवं राष्ट्रमंडल कार्यालय - 12,500 से अधिक कर्मचारियों वाली एक वैश्विक संस्था है। एक संगठन के रूप में, हम दुनिया भर में विविधता और समावेशन का समर्थन करते हैं।

मेरे जैसे राजनयिकों सहित हमारा एक तिहाई स्टाफ ब्रिटेन का है - लेकिन ऐसा भी स्टाफ है जो जो केवल ब्रिटेन में काम करता है - और दो तिहाई स्थानीय स्टाफ हैं। कुल मिलाकर ब्रिटेन की कुल कर्मचारियों में 43% महिलाएं हैं, और 42% एलई स्टाफ महिलाएं हैं।

ब्रिटेन की पहली महिला राजदूत, डेनमार्क में ऐनी वॉरबर्टन थी। उनकी नियुक्ति 1976 में की गई थी। 2008 तक, हमारे पास 280 में से लगभग 22 महिला मिशन प्रमुख (राजदूत, उच्च आयुक्त, गवर्नर जनरल, कांसुल जनरल और राजनयिक प्रमुख) थी। अब हमारे पास दुनिया भर में 54 महिला मिशन की प्रमुख हैं।

हम दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों का समर्थन करते हैं, और फरवरी में जोना रोपर को लैंगिक समानता के लिए ब्रिटेन के पहले विशेष दूत के रूप में नियुक्त किया गया था।

भारत में, हम ब्रिटेन में मास्टर्स की पढ़ाई करने के लिए चेवेनिंग स्कॉलरशिप प्रदान करते हैं। चयनित स्कॉलर्स में से लगभग 50% महिलाएं हैं।

हम विभिन्न क्षेत्रों में कई चेवेनिंग स्कॉलरशिप की भी पेशकश करते हैं। चयनित फेलो में से 40% महिलाएं रहती हैं। दरअसल भारत में लगभग आधी चेवेनिंग एल्यूमिनी महिलाएं हैं।

जहां से मैंने शुरू किया था वहां लौटते हुए, मैं आज यहां आपसे अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के बारे में इसलिए बात कर रहा हूं क्योंकि मैं एक आदमी हूं। मेरे पास मां और बहन है और मेरे बेटे भी हैं ‘मैं महिला से पैदा हुआ हूँ’

मैं दुनिया को एक खुशहाल जगह बनाना चाहता हूं। एक ऐसी जगह जहां हर कोई हंसता रहे। और जहां हर कोई बात कर सके और उसको सुना जा सके।

इसीलिए लैंगिक समानता के लिए काम करना में मेरी भूमिका भी आपके बराबर है।

प्रकाशित 12 October 2017