भाषण

यूके एवं भारत के बीच ऊर्जा और जलवायु पर हैं मजबूत आपसी संबंध

15 मार्च 2016 को दिल्ली में आयोजित नौवें भारतीय जलवायु नीति एवं व्यापार सम्मेलन में सर डेविड किंग़ के भाषण की प्रतिलिपि

Sir David King

परिचय के लिए डॉ. घोष आपका धन्यवाद और साथ ही फिक्की (एफआईसीसीआई) का भी धन्यवाद जिन्होंने इतने महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा के लिए मुझे यहां आमंत्रित किया।

भारत में दोबारा लौटने पर मैं प्रसन्न हूं। यूके और भारत के बीच एक मजबूत संबंध है और ऊर्जा एवं जलवायु के क्षेत्र में यह सबसे अधिक स्पष्ट रूप से झलकता है। भारतीय ऊर्जा क्षेत्र में यूके सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेशक है जहां ब्रिटेन के बीपी की रिलायंस के साथ साझेदारी है।

प्रधानमंत्री मोदी की हाल में यूके यात्रा के दौरान दोनों देशों ने जलवायु परिवर्तन एवं ऊर्जा पर साझा बयान जारी किया था और हमने बिजली और नवीकरणीय ऊर्जा पर कई समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए और साथ ही यूके और भारतीय परमाणु ऊर्जा विभाग के बीच एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया, जिससे कि परमाणू ऊर्जा साझेदारी के लिए स्थापित भारतीय वैश्विक केंद्र (इंडियन ग्लोबल सेंटर) के साथ असैन्य परमाणु जैसे विषय पर संयुक्त प्रशिक्षण एवं अनुभव बांटने को बढ़ावा दिया जा सके।

ऐतिहासिक जलवायु परिवर्तन समझौते पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद मैं भारत लौटने पर प्रसन्न हूं। यूके और भारत दोनों ने पेरिस समझौते को सफल बनाने के लिए संयुक्त रूप से कार्य किया है और मैं भारत को उसकी भूमिका के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। और मैं अधिक दृढ़ता से हर्षित होकर कहना चाहता हूं कि इस ऐतिहासिक कदम के लिए समूचे विश्व ने आगे आकर कदम बढ़ाया है और पहली बार लगभग 200 देश कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध हुए हैं।

मैं आज तीन बिंदुओं पर रोशनी डालूंगा। पहला यह है कि किस तरह से पेरिस समझौता जलवायु संबंधित वित्त को गतिशील बनाने की प्रक्रिया को तेज कर रहा है। दूसरा, सार्वजनिक एवं निजी जलवायु वित्त की भूमिका। तीसरा, जलवायु निवेश के स्तर पर परिवर्तन के लिए कदम उठाने की दिशा में किए जा रहे कार्यों का उदाहरण।

पेरिस एवं जलवायु संबंधित वित्त

पेरिस समझौता अपने आप में ही जलवायु संबंधित सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के वित्त को गतिशील बनाने की प्रक्रिया में उठाया गया एकमात्र सबसे बड़ा कदम है। इस समझौते ने समूचे विश्व, व्यापारियों, निवेशकों और नागरिकों को एक अल्प कार्बन युक्त भविष्य का महत्वपूर्ण संदेश दिया है।

यह वह संदेश, वह संकेत है जिसमें आवश्यक मात्रा में पूंजी को संघठित करने की क्षमता है।

यह प्रत्यक्ष रूप से तब दिखने लगा जब सीओपी 21 में विश्व की विशालतम कम्पनियों एवं निवेशकों द्वारा अल्प कार्बन अर्थव्यवस्था में अरबों पाउंड के निवेश की प्रतिबद्धता सामने आई।

उदाहरण के तौर पर लगभग 120 कम्पनियों ने अब मॉन्ट्रियल कार्बन संकल्पना (प्रतिज्ञा) पर हस्ताक्षर किया है और ब्रेकथ्रू एनर्जी कोलेशन के सदस्यों ने ‘मिशन इनोवेशन’ के देशों से आ रही प्रारंभिक अवस्था की प्रौद्योगिकी को विकसित करने हेतु निजी पूंजी की प्रतिबद्धता जताई है। यह वास्तविक एवं परिवर्तनीय कार्य का उदाहरण है, जो कि विश्वभर के राष्ट्रों, शहरों एवं समुदायों में जमीनी स्तर के कार्यों पर प्रभाव डालेगा।

पेरिस समझौता स्पष्ट रूप से दीर्घकालिक एवं अल्प कार्बन युक्त भविष्य की ओर एक क्रांतिकारी मोड़ है। और इस अवसर का लाभ उठाने का यह सर्वाधिक उपयुक्त समय है।

जलवायु संबंधित सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के वित्त की आवश्यकता

विकासशील देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन को कम और अनुकूलित बनाने की ओर कदम उठाने में आर्थिक रूप से सहायता प्रदान करने के लिए सार्वजनिक एवं निजी स्रोतों समेत विविध व्यापक स्रोतों से जलवायु संबंधित पूंजी की आवश्यकता है।

पेरिस में, विकसित देशों ने न केवल वर्ष 2020 तक प्रति वर्ष जलवायु परिवर्तन पर 100 अरब डॉलर की पूंजी संघठित करने की अपनी वर्तमान प्रतिबद्धता को पुन: सुनिश्चित किया बल्कि उन्होंने अपनी इस प्रतिबद्धता को वर्ष 2025 तक विस्तारित कर दिया है।

यूके इस राशि के संघठन में सहायता देने की ओर पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है और हम ग्रीन कैपिटल फंड को इसी वर्ष पूंजीकृत होते हुए देखना चाहते हैं और इसके जल्द से जल्द क्रियान्वित होने के इच्छुक है।

वर्ष 2009 में जबसे 100 अरब डॉलर की प्रतिबद्धता की गई है तब से यूके ने विश्व के सबसे गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन को अनुकूलित बनाने और स्वच्छ एवं हरे-भरे विकास को प्रोत्साहन देने हेतु 6.4 अरब डॉलर की जलवायु संबंधित वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता जताई है।

और सितम्बर 2015 में हमारे प्रधानमंत्री ने इस पूंजी में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी कर अगले पांच वर्षों में 5.8 अरब पाउंड (8.3 अरब डॉलर) धनराशि की प्रतिबद्धता जताई है।

अब तक जलवायु संबंधित वित्तीय खर्च ने 15 मिलियन (150 लाख) लोगों को जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने की क्षमता को सुधारा है और साथ ही 23 मिलियन टन के जीएचजी उत्सर्जन से बचने में सहायता की है।

भारत में यूके का जलवायु वित्त द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय कार्यक्रमों के जरिए विशाल निवेश कर रहा है। यह ऊर्जा दक्षता, नवीकरणीय ऊर्जा एवं जलवायु लचीलेपन के लिए आवश्यक तकनीकी सहायता के लिए आवश्यक वित्त भी दे रहा है।

उदाहरण के तौर पर यूके ने 775 मिलियन डॉलर की लागत वाले भारत के स्वच्छ तकनीकी कोष कार्यक्रम के लिए 210 मिलियन डॉलर का योगदान दिया है। इस धनराशि का उपयोग भारत में सोलर पार्कों और संचरण लाइनों के निर्माण में किया जा रहा है।

वैश्विक पर्यावरण सुविधा (ग्लोबल एंवायरन्मेंट फैसिलिटी) में हमारे योगदान से कई योजनाओं को वित्तीय सहायता मिली है जैसे 200 मिलियन डॉलर के राजस्थान नवीकरणीय ऊर्जा संचरण निवेश कार्यक्रम और 100 मिलियन डॉलर के हिमाचल प्रदेश पर्यावरणीय दीर्घकालिक विकास योजना ऋण।

निजी क्षेत्र के वित्त का महत्व

सार्वजनिक वित्त हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है और निभाता रहेगा लेकिन जलवायु लचीलेपन और 2 डिग्री सेल्सियस के तापमान से नीचे रहने के लिए आवश्यक परिवर्तन लाने में यह अकेले सक्षम नहीं है। इसलिए निजी धन की गतिशीलता के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग आवश्यक हो जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कोष के जरिए यूके अनेक प्रकार के नवोन्मेष और परिवर्तनीय योजनाओं के माध्यम से निजी निवेश को उत्प्रेरित कर रहा है।

जलवायु सार्वजनिक निजी साझेदारी कार्यक्रम (सीपी3) में 51 मिलियन पाउंड के योगदान के जरिए हम अनेक संस्थागत निवेशकों को सहायक निवेशकों के रूप में लाने का प्रयास कर रहे हैं। इस धनराशि का प्रबंधन पेशेवर कोष प्रबंधकों द्वारा व्यावसायिक स्तर पर किया जा रहा है। जिन योजनाओं को वित्तीय सहायता मिली है, वे हैं नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता एवं कचरा प्रबंधन योजानाएं।

हमने यूके के ग्रीन इंवेस्टमेंट बैंक के अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रारंभिक योजनाओं को समर्थन देने हेतु 200 मिलियन पाउंड का निवेश किया है। यह भारत में नवीकरणीय ऊर्जा योजनाओं में इक्विटी निवेश के अवसर तलाश रहा है।

जलवायु वित्त में परिवर्तन की दिशा में एक कदम

मैंने अनेक उदाहरणों के जरिए बताया है कि किस तरह जलवायु वित्त प्रभाव पहुंचाने में समर्थ हुआ है। लेकिन यह स्पष्ट है कि आवश्यक पूंजी के संघठन के लिए हमें और विशाल स्तर पर सोचना होगा। इतने बड़े स्तर के निवेश के लिए हमें निवेशकों, विकास करने वालों और अन्यों के साझा अनुभवों को एकत्रित करना होगा।

जलवायु वित्त के लिए स्थापित वैश्विक नवोन्मेष प्रयोगशाला इसी कार्य में संलग्न है।

2014 में स्थापित की गई यह प्रयोगशाला ‘आधुनिकतम जलवायु वित्त उपकरणों की पहचान एवं संचालन की ओर एक पहल’ है। इसका उद्देश्य है विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन को कम करके उसे अनुकूलित बनाने की कोशिशों के लिए अरबों डॉलर के निजी निवेश को बढ़ावा देना।

यह प्रयोगशाला सरकार, निवेशकों, योजनाकारों एवं विश्व भर के विकसित वित्तीय संस्थानों के अनुभवों एवं निपुणता को एक पटल पर लाने की ओर प्रयासरत है। वे साथ मिलकर अगली पीढ़ी के ‘जलवायु वित्त उपकरणों’ की पहचान, रूपांकन एवं संचालन कर रहे हैं ताकि वित्तीय चुनौतियों को सुलझाकर, नए बाजार बनाकर और विकासशील देशों की ओर नवीन निवेशकों को आकर्षित कर अरबों डॉलर के जलवायु निवेश के अवरोधों को हटाया जा सके।

यूके को इस बात पर गर्व है कि वह इस प्रयोगशाला का प्रारंभिक समर्थक रहा है।

जो प्रारंभिक योजनाएं जारी हैं उनमें शामिल हैं मेक्सिको में एक स्थान पर शुरू की गई योजना जो कि वर्ष 2020 190 ऊर्जा दक्षता योजानाओं में 25 मिलियन डॉलर के निवेश को प्रोत्साहित करेगी और साथ ही इसके तहत लातिन अमेरिका में इसी तरह की योजना को दोहराने की ओर विस्तार जारी है।

हाल ही में भारतीय नवोन्मेष प्रयोगशाला स्थापित की गई थी। वैश्विक प्रयोगशाला की सफलता के आधार पर इसे बनाया गया है लेकिन भारत में विशेष अवसरों एवं चुनौतियों की पहचान इसका लक्ष्य रहेगा। चार हफ्तों के भीतर ही इस भारतीय प्रयोगशाला ने अगले चरण के विकास के लिए चार नवीन वित्त उपकरण के कल्पनाओं (लोंस4एसएमई, रूफटॉप सोलार प्राइवेट स्क्टर फाइनेंसिंग फैसिलिटी, पी50 रिस्क सोल्यूशंस एवं रीव्यूवेबल एनर्जी इंटीग्रेटेड हेजिंग, इक्विटी एंड डेट फंड) को चुना है।

इसी तरह की अनेक पहलों में जलवायु वित्त परिदृश्य में परिवर्तन लाने की क्षमता है।

निष्कर्ष

अब मैं कुछ महत्वपूर्ण परिणामों को रेखांकित कर अपने विचारों को विराम देता हूं।

पेरिस समझौता हमारी यात्रा की दिशा का सही संकेत देता है।

अगर हमें एक दिशा में अपने गंतव्य तक पहुंचना है तो हमें स्वच्छ एवं प्रदूषण मुक्त प्रौद्योगिकी में निवेश पर अत्यधिक जोर देना होगा। इतने बड़े स्तर पर आवश्यक वित्त को संघठित करने के लिए सरकारों, नीति निर्धारकों और व्यापारियों को नवीन उपायों के माध्यम से एक साथ मिलकर कार्य करना होगा।

इसकी शुरुआत हो चुकी है। इस तरह के आयोजन इसकी तत्परता को प्रकट करते हैं। और जहां चाह है, वहीं राह है।

मुझे आमंत्रित कर आपके बीच विचार व्यक्त करने का अवसर प्रदान करने के लिए मैं फिर से आपका आभारी हूं।

प्रकाशित 15 March 2016