भाषण

भारत में CyFy 2014 सम्मेलन के अवसर पर साजिद जाविद का अभिभाषण

संस्कृति मंत्री ने इंटरनेट गवर्नेंस के प्रति बहु-सहभागिता दृष्टिकोण के महत्व के बारे में कहा:

यह 2010 to 2015 Conservative and Liberal Democrat coalition government के तहत प्रकाशित किया गया था
The Rt Hon Sajid Javid MP

शुभ-प्रभात मित्रों।

यहां भारत में होना मेरे लिए वास्तव में बेहद खुशी की बात है।

एक ऐसा देश, जो संचार-मंत्री रविशंकर प्रसाद के हालिया आकलन के अनुसार, आईटी क्रांति के मुहाने पर खड़ा है।

भारत एक गौरवान्वित देश है, एक महान देश है।

और यह देश इंटरनेट की अतुलनीय ताकत के बल पर और भी महानतम बनने की राह पर है।

विश्व सूचना संजाल (वर्ल्ड वाइड वेब), निस्संदेह आधुनिक विश्व की महानतम तकनीकी सफलता की कहानी है।

जिस तरह ब्रिटेन के आविष्कारकों ने विश्वव्यापी औद्योगिक क्रांति को ताकत दी, उसी तरह एक ब्रिटिश विशेषज्ञ- सर टिम बर्नर्स-ली ने वैश्विक डिजिटल युग की शुरुआत की।

ऑनलाइन पहुंच की क्षमता ने करोड़ों लोगों के जीवन, काम और शिक्षण की पद्धतियों को पूरी तरह बदल दिया है।

यह हमें सीमाओं के पार समाज निर्माण की सुविधा देता है।

दूरस्थ स्थानों के ग्राहकों के साथ व्यवसाय के लिए।

दुनियाभर के मित्रों तथा अजनबियों के साथ विचारों के तत्क्षण आदान-प्रदान के लिए।

इन फायदों का अनुभव लाखों भारतीयों ने भी किया है।

इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के मामले में केवल चीन ही भारत से आगे है।

प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीतिज्ञों द्वारा विस्तृत निर्वाचक-समूहों के साथ संवाद के तरीकों में सोशल मीडिया का उपयोग कर क्रांति ला दी है।

और डिजिटल भारत योजना, आनेवाले वर्षों में भारत के स्वरूप और रूपरेखा में बदलाव की तैयारी कर रहा है।

अब भी तकरीबन 80 फीसदी भारतीय इंटरनेट के नियमित उपयोगकर्ता नहीं हैं।

दुनियाभर में, 60 प्रतिशत से ज्यादा लोग ऑनलाइन भी नहीं हैं। यहां तक कि एक बार भी नहीं।

वे चार अरब लोग ऐसे हैं जो वेब के अवसरों तथा फायदों के दायरे से बाहर हैं।

चार अरब संभावित ग्राहक भारतीय व्यवसायों द्वारा उपलब्ध अवसरों और लाभों से वंचित हैं।

लेकिन स्थिति में तेजी से सुधार हो रहा है।

इंटरनेट की पहुंच में अभूतपूर्व दर से वृद्धि हो रही है।

वेब अब विभिन्न भाषाओं तथा गैर-लैटिन लिपियों में पहले कभी से भी ज्यादा उन्मुक्त हो गया है।

हर वर्ष उपयोगकर्ताओं की संख्या 10% की दर से, और यहां भारत में 40 प्रतिशत की विस्मयजनक दर से बढ़ती है।

पिछले दशक में, विश्वभर के तकरीबन दो अरब लोगों को पहली बार इंटरनेट की सुविधा मिली।

इस माह की शुरुआत में, मैंकिंजे ने यह अनुमान लगाया है कि 2017 तक अतिरिक्त 900 मिलियन (90 करोड़) लोग ऑनलाइन हो जाएंगे।

लेकिन यह केवल तभी होगा, जब पहले से चली आ रही विस्फोटक वृद्धि-दर जारी रहे।

और यह केवल तभी होगा जब इंटरनेट राष्ट्रीय सीमाओं से परे होकर पहुंचने तथा विकसित होने की अपनी स्वतंत्रता बरकरार रखे।

यही वजह है कि निरंतर सहयोगात्मक इंटरनेट शासन इतना महत्वपूर्ण है।

इसके पहले कि मैं और किसी मुद्दे पर जाऊं, मुझे यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि ‘इंटरनेट शासन’ से हमारा क्या तात्पर्य है।

यह उन वाक्यांशों में से एक है जिनका पत्रकारों और राजनेताओं ने हाल के दिनों में बहुधा इस्तेमाल किया है, इसलिए इसे स्पष्ट करना बेहतर होगा कि दरअसल यह क्या है।

जब मैं इंटरनेट गवर्नेंस की बात करता हूं- और जब ब्रिटिश सरकार इसके बारे में बात करती है- तो मेरा तात्पर्य उस परिभाषा से है जिसपर सूचना सोसाइटी पर विश्व सम्मेलन के दौरान सहमति बनी थी।

इंटरनेट के क्रमागत विकास और उपयोग को स्वरूप देने वाले साझे सिद्धांतों, नियमों, कानूनों, निर्णय निर्माण की प्रक्रियाओं और कार्यक्रमों में अपनी-अपनी भूमिकाओं में सरकार, निजी क्षेत्र तथा सिविल सोसाइटी द्वारा किए जाने वाले विकास और अनुप्रयोग।

और वह पद्धति, जिसपर अमल किया जाना चाहिए, को उन सिद्धांतों द्वारा सबसे बेहतर तरीके से अभिव्यक्त किया गया है, जिनपर इस वर्ष के आरंभ में ब्राजील में आयोजित इंटरनेट गवर्नेंस का भविष्य- नेटमंडायल पर वैश्विक बहुभागीदार समूह (मल्टीस्टेकहोल्डर्स) की बैठक के दौरान सहमति बनी थी।

इन सिद्धांतों को राजनेताओं ने प्रस्तुत नहीं किया है।

ये संयुक्त राष्ट्रसंघ या अंतर्राष्ट्रीय टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन के नौकरशाहों द्वारा तैयार किए हुए भी नहीं हैं।

इन्हें लंदन या वाशिंग़टन या दिल्ली के प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा भी अधिरोपित नहीं किया गया है।

इनका निर्माणइंटरनेट को समर्थन देने तथा उसके नियमित उपयोगकर्ता समुदाय द्वारा मुक्त रूप से किया गया है।

वे लोग, जिनका जीवन इंटरनेट के बिना सामान्यतः असंभव हो जाएगा।

वे लोग, जिनकी इंटरनेट के सामने मौजूदा चुनौतियों तथा उनका समाधान करने के साधनों, दोनों पर संभावित रूप से बेहतर पकड़ है।

और उनके सिद्धांत जितने सरल हैं, उतने ही जोरदार हैं।

इंटरनेट शासन को पूर्णतः एकीकृत, बहु-सहभागितापूर्ण प्रक्रिया के आधार पर निर्मित किया जाना चाहिए।

जो हर सहभागी की सार्थक तथा जवाबदेह सहभागिता सुनिश्चित करे।

निर्णय लेने की प्रक्रिया आधार-स्तर पर, खुली और आम-सहमति के आधार पर हो।

एक सुनिश्चित स्तर की जवाबदेही तय की जानी चाहिए, जिसमें निरीक्षण और संतुलन के अलावा जांच और सुधार की विधियां सम्मिलित होनी चाहिए।

इंटरनेट शासन प्रक्रिया से प्रभावित होनेवाला कोई भी इस प्रकिया में भाग लेने में सक्षम होना चाहिए।

मुझे यह कहते हुए गर्व है कि ब्रिटिश सरकार ने वैश्विक इंटरनेट शासन फ्रेमवर्क के आधार के रूप में नेटमंडायल सिद्धांतों को पूरे मन से समर्थन दिया है, और मैं अपने भारतीय मित्रों से भी इनका समर्थन करने की अपील करना चाहूंगा।

आखिरकार, विकल्प क्या है?

ऊपर से नीचे की ओर केंद्रीकृत निर्णय-प्रक्रिया।

नौकरशाही में जकड़ी वर्ल्ड वाइड वेब की लालफीताशाही।

फायरवाल तथा आभासी आवरणों द्वारा विभाजित साइबरस्पेस।

और इंटरनेट को इसपर काम करने वाले लोगों द्वारा खुले में नहीं, बल्कि बंद दरवाजों के पीछे सौदेबाज राजनीतिज्ञों द्वारा संचालित किया जा रहा हो।

बस ऐसे इंटरनेट की कल्पना करें, जो मुद्दों पर सहमत होते हुए सरकारों पर निर्भर करता हो।

इंटरनेट शासन को स्वयं इंटरनेट द्वारा अपने तजुर्बे के आधार पर परिवर्तन की तेज रफ्तार के साथ चलना होगा।

लेकिन हमें इसका सामना करना होगा, ‘त्वरित कार्रवाई’ तथा ‘अंतर-सरकारीय समझौता’ ऐसी अवधारणाएं नहीं है जिन्हें आम तौर पर एक साथ अच्छी तरह जाना जाता हो।

और एक विखंडित, स्थानीय रूप से प्रबंधित इंटरनेट व्यवसाय के लिए भी अच्छा नहीं होगा।

आईटी तथा संचार में अपने विशिष्ट दक्षता आधार के साथ भारत पहले से ही एक विश्वस्तर का प्रौद्योगिकी केंद्र रहा है।

टीसीएस, विप्रो, तथा इंफोसिस जैसी कंपनियां अपने-अपने क्षेत्रों में विश्व की अग्रणी कंपनियां रही हैं।

ये संस्थाएं, तथा इनके अलावा अन्य कई, अपनी वृद्धि तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार के लिए वैश्विक इंटरनेट बाजारस्थल तक मुक्त और अवरोधरहित पहुंच पर निर्भर करती हैं।

अगर हम ऑनलाइन विश्व को प्रतिबंधित करते हुए शासन का ऐसा मॉडल ला रहे हैं जो एकल रूप से सरकारों के बीच विचार-विमर्श पर आधारित हो, तो हम स्वयं को जल्द ही एक ऐसे इंटरनेट के साथ पा सकते हैं जो क्षेत्रीय खंडों में विभाजित हो।

एक ऐसा इंटरनेट जो बहुत दिनों तक वास्तविक रूप से वैश्विक नहीं रहेगा।

और अगर ऐसा हुआ, तो भारत की कुछ सर्वाधिक सक्रिय और सफल कंपनियों के वित्तीय निहितार्थों को बहुत हानि पहुंच सकती है।

लेकिन मैं नहीं चाहता कि आप यह सोचें कि इंटरनेट शासन में राष्ट्रीय सरकार की कोई भूमिका नहीं है।

बेशक, हमारी भूमिका है अनेक सहभागियों में आखिरकार हम भी एक हैं।

हमें यह सुनिश्चित करना है कि इंटरनेट वाइल्ड वेस्ट (स्वच्छंद पश्चिम) का एक ऑनलाइन संस्करण न बन जाए।

एक खतरनाक स्थान, जहां सच्चे लोग सुरक्षित और निरापद महसूस न कर सकें।

ऑनलाइन पर भी उसी तरह कानून अवश्य लागू हो, जैसे कि यह ऑफलाइन लागू है।

सरकारें इसे केवल बाधाओं को आरोपित कर और इंटरनेट को खंडित कर प्रदान नहीं कर सकती हैं।

लेकिन एक साथ काम करते हुए हम प्रभावी साइबर-सुरक्षा प्रदान करने और बढ़ावा देने के मामलों में बढ़त हासिल कर सकते हैं।

जैसे-जैसे वैश्विक इंटरनेट अर्थव्यवस्था में वृद्धि हो रही है, उसी हिसाब से साइबर अपराधियों का जोखिम भी बढ़ रहा है।

ब्रिटेन में, हमने कंप्यूटर आधारित हमलों को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के साथ हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़े खतरे की कोटि में रखा है।

यह एक समस्या है जिसका समाधान अवश्य किया जाना चाहिए। अगर दुनिया ऑनलाइन युग के फायदों को पूर्णतः महसूस करने जा रही है, तो इंटरनेट को मुक्त तथा निरापद रखने की जरूरत है।

हमें यह जानने की जरूरत है कि हम सुरक्षापूर्वक संवाद तथा कार्य कर सकते हैं।

यही वजह है कि, ब्रिटिश सरकार ने 2011 में, अपनी प्रथम साइबर सुरक्षा रणनीति जारी की है।

यह आर्थिक समृद्धि को समर्थन देता है, हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा का संरक्षण करता है, और एक अधिक विश्वसनीय तथा लचीले डिजिटल वातावरण के निर्माण द्वारा जन-जीवन की हिफाजत करता है।

यह रणनीति तकरीबन एक अरब पाउंड की सरकारी वित्तीय व्यवस्था के साथ लागू की जा रही है, और यह बहु-भागीदारी सरोकार के कार्यकारी रूप में लागू होने का एक और उदाहरण है।

उदाहरण के लिए, हमारा साइबर एसेंशियल्स स्कीम है।

सरकार, उद्योग तथा अकादमी द्वारा विकसित, साइबर एसेंशियल्स किसी भी संगठन- वृहद् या लघु, ब्रिटिश या विदेशी- को यह निर्देशित करती है कि उन्हें अधिकतर सामान्य ऑनलाइन खतरों का सामना करने के लिए आवश्यक मुख्य तकनीकी नियंत्रण तंत्र स्थापित करना होगा।

यह दुनिया भर की कंपनियों के लिए एक बड़ा अवसर है कि वे अपने ग्राहकों को साइबर सुरक्षा को गंभीरतापूर्वक लेने के लिए निर्देशित करें।

सूचना सुरक्षा के क्षेत्र में 70 वर्षों से अधिक के अनुभव तथा इस क्षेत्र में दक्षता की एक विश्वव्यापी ख्याति के साथ, यह कोई आश्चर्य नहीं कि ब्रिटेन का साइबर सुरक्षा क्षेत्र लगातार मजबूत होता जा रहा है।

इसमें गत वर्ष 22 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिसमें भारत को 80 मिलियन पौंड का निर्यात शामिल है।

यह 53 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की वैश्विक सूची में सर्वाधिक वृद्धि-दर है, और इसका मतलब है कि हम 2016 तक 2 अरब पौंड के साइबर-सुरक्षा निर्यात के लक्ष्य को हासिल करने की राह पर हैं।

एक बार फिर सफलता के लिए बहु-सहभागिता दृष्टिकोण आवश्यक है।

यह सरकार, उद्योग तथा अकादमिक क्षेत्रों को साथ लाता है ताकि ये स्पर्धा की बजाय सहयोगपूर्वक काम कर सकें।

और हमें बहुत खुशी है कि हम दुनिया के साथ इसके नतीजों को साझा कर रहे हैं, ताकि अन्य देश भी साइबर अपराध के खिलाफ इस बहु-स्तरीय संघर्ष में हमारे साथ आएं।

यही वजह है कि ब्रिटेन को इस अवसर का सह-प्रायोजन करते हुए प्रसन्नता हुई, जिसमें हमारे दोनों देशों के साझीदारों को उन चुनौतियों के समाधानों पर चर्चा करने का अवसर मिला, जिनका फिलहाल हम सभी सामना कर रहे हैं।

लेकिन आप इन खयालों तक ही सीमित न रहें कि साइबर अपराध केवल हैकिंग या ऑनलाइन धोखाधड़ी मात्र है।

आतंकियों से लेकर अपराधियों तक के लिए, एक असुरक्षित इंटरनेट उनके लिए एक आसान साधन है जो दूसरों को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं।

इस वर्ष के अंत में, हमारे प्रधानमंत्री डेविड कैमरन, बच्चों के ऑनलाइन यौन-शोषण के अपराध पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी करेंगे।

यह विश्व के नेताओं के लिए अपराधियों का मुकाबला करने के लिए एकजुट होने का एक बढ़िया अवसर है, और मैं भारत से इसमें भाग लेने की आशा करता हूं।

हमें यह सुनिश्चित करना है कि इंटरनेट सुरक्षित, निरापद तथा सफल हो, लेकिन हम इसे साइबर स्पेस पर और सरकारी नियंत्रण का एक बहाना बनने नहीं दे सकते।

बहु-सहभागिता मॉडल, शासन तथा सुरक्षा दोनों उद्देश्यों के लिए, इस चुनौती का एकल तथा सर्वश्रेष्ठ समाधान है।

यह इंटरनेट को बने रहने तथा विकसित होने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे अनगिनत व्यक्तियों तथा व्यवसायों को असीमित लाभ हासिल होंगे।

और भारत दुनिया के सामने यह दिखाने का एक विशिष्ट उदाहरण है कि यह दृष्टिकोण कितनी अच्छी तरह काम कर सकता है।

यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।

एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था।

एक तेजी से विकसित होते डिजिटल समाज का घर, जिसमें और अधिक वृद्धि की अभूतपूर्व संभावनाएं मौजूद हैं।

एक नई सरकार, तेजी से विकसित होते निजी क्षेत्र तथा एक जीवंत नागरिक समाज के साथ, भारत के लिए इससे बेहतर समय नहीं होगा कि यह उन बहु-सहभागिता सरोकारों को अपनाए जो इंटरनेट के क्षेत्र में पहले से काम कर रहे हैं।

आईसीएएनएन के फादी चेहादे ने इंटरनेट को ‘सबसे बड़ा लोक-उपहार’ कहा है।

वे बिल्कुल सही हैं।

यह किसी एक का नहीं है, यह किसी एक के नियंत्रण में नहीं है।

इंटरनेट ने स्वयं को सटीक तरीके से कायम और विकसित कर रखा है क्योंकि यह किसी भी देश से ज्यादा बड़ा है।

और इसलिए साइबर स्पेस पर कोई राष्ट्रीय अवरोध नहीं होना चाहिए।

प्रकाशित 16 October 2014