भाषण

मेक इन इंडिया सम्मेलन में मंत्री हैरियट बाल्डविन का संबोधन

रक्षा अधिप्राप्ति मंत्री ने बेंगलुरु, भारत में मेक इन इंडिया सम्मेलन को संबोधित किया।

हैरियट बाल्डविन

यहां वापस भारत में होना और मेक इन इंडिया सम्मेलन में संबोधित करना मेरे लिए सचमुच बेहद सम्मान का विषय है।

और यहां बेंगलुरु में आना तो बेहतरीन है- भारत की विमानन राजधानी। मैं यह जानकर अचंभित रह गई कि भारत की लगभग दो तिहाई विमानन कंपनियां यहां कर्नाटक में एकत्रित हैं और मैं यह देखने को लेकर काफी आशान्वित हूं कि जब यहां कल एयरो इंडिया 2017 का एयर शो शुरू होगा, तो मैं इसका सर्वोत्तम देखने की इच्छुक हूं।

रक्षा अधिप्राप्ति मंत्री के रूप में भारत के मेरे पहले दौरे को यादगार बनाने का कितना बेहतरीन तरीका- और मुझे आशा है कि ऐसे और बहुत से मौके आनेवाले हैं।

सहयोगात्मक अतीत

हालांकि यह दौरा एक रक्षामंत्री के रूप में मेरे लिए पहला है- लेकिन मैं इसके बारे में काफी सतर्क हूं कि यह हमारे दोनों राष्ट्रों के बीच सहयोग, तथा विचारों, विशेषज्ञताओं और प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान के महत्वाकांक्षी एजेंडे के लिए उपयुक्त रहे, जिससे न केवल हमारे दोनों देशों, बल्कि शेष विश्व को भी वास्तविक रूप से लाभ मिले।

हमने परस्पर एक दूसरे को व्यापार से लेकर व्यंजनों और क्रिकेट से समृद्ध किया है…. एक खेल जिसका आविष्कार चाहे हमने ब्रिटेन में किया है लेकिन स्पष्ट है कि आप इसमें अग्रणी बन गए हैं।

कौन सी बात मुझे हैरान करती है…. कैसे हम विराट कोहली को एक फास्ट जेट का पाइलट बनने के लिए राजी कर सकते हैं?

यह बिना कहे समझा जा सकता है कि हमारे दोनों राष्ट्र एक मजबूत रिश्ते से बंधे हैं: यहां भारत में ब्रिटेन का राजनयिक नेटवर्क विश्व में इसके सबसे बड़े नेटवर्क में से एक है।

भारत ब्रिटेन में निवेश करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है, जबकि ब्रिटेन भारत में सबसे बड़ा जी20 निवेशक है। वस्तुतः भारत की 20 में एक निजी क्षेत्र की नौकरी किसी ब्रिटिश कंपनी की होती है।

और वस्तुओं तथा सेवाओं के क्षेत्र में भारत तथा ब्रिटेन का द्विपक्षीय व्यापार 2015 में प्रभावी रूप से 17.5 अरब पाउंड का रहा, जो प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहा है।

इसी पिछले गुरुवार को भारतीय नागरिक विमानन मंत्री तथा ब्रिटिश विमानन मंत्री ने ब्रिटेन तथा भारत के बीच पर्यटन और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए एक समझौते पर दस्तखत किए हैं।

और निश्चित रूप से हमारे घनिष्ठ रिश्ते नवंबर में चरम स्तर पर अभिव्यक्त हुए, जब हमारे प्रधानमंत्री यूरोप से बाहर उनके प्रथम द्विपक्षीय दौरे पर भारत आए थे।

सहयोगात्मक वर्तमान

लेकिन शायद हमारी मूल्यवान द्विपक्षीय सहभागिता के कुछ बेहतरीन उदाहरण रक्षा विमानन क्षेत्र में देखे जा सकते हैं।

ब्रिटेन बहुत शुरू से ही भारतीय रक्षा वैमानिकी क्षेत्र में सहयोगी रहा है- हमें एक अद्वितीय विरासत का सम्मान मिलता है जब यह हमारे दोनों देशों के बीच विमानन प्रौद्योगिकी तथा कौशल के आदान-प्रदान तथा हस्तांतरण तक आता है। ब्रिटिश विमान कंपनियां, जिसमें कई तो अब बीएई सिस्टम्स का हिस्सा हैं, लगभग सौ वर्षों से भारत में कार्यरत रही हैं; और रॉल्स-रॉयस तो हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के साथ काम करने वाली शुरुआती कंपनियों में रही है।

हाल के वर्षों में, एचएएल ने बीएई सिस्टम्स के सहयोग से 100 से ज्यादा जैगुआर बनाए हैं और लगभग इतने ही हॉक भी, जिनमें रॉल्स-रॉयस इंजनों से ताकत मिलती है- और एक रिश्ता जिसके बारे में हमने अभी सुना कि यह आज भी जारी है और यह ऐसा है, जिसके लिए मैं और फलने-फूलने की आशा करती हूं।

फिलहाल, रोल्स-रॉयस तथा बीएई सिस्टम्स दोनों ने, भारत में अपने उत्पादों को सहयोग प्रदान करने के उद्देश्य से, भारतीय सहयोगियों के साथ संयुक्त उद्यम तलाशे या स्थापित कर लिए हैं।

और मुझे आज एमबीडीए तथा एल एन्ड टी के बीच एक संयुक्त उपक्रम का स्वागत और इसकी घोषणा करते हुए खुशी हो रही है, जो भारतीय उद्योग जगत में निवेश की ब्रिटिश प्रतिबद्धता का एक उत्तम उदाहरण है।

लेकिन मुझे जो वस्तुतः रोमांचित करता है वह हमारा सहयोगात्मक अतीत या वर्तमान नहीं, बल्कि हमारा भविष्य है- जो मुझे आज के मेरे मुख्य विचार तक पहुंचाता है और जो वास्तव में आपके सम्मेलन का भी प्रमुख विचार-बिंदु है।

सहयोगात्मक भविष्य

ब्रिटेन को रक्षा विमानन क्षेत्र में जो ‘मेक इन इंडिया’ का आदर्श सहभागी बनाता है, वह हमारे देश की सहयोगात्मक संभावनाएं हैं।

अवसर अनंत हैं। और हमें इस हफ्ते उनकी एक झलक मिलेगी, जब हम देखेंगे बीएई सिस्टम्स तथा एचएएल एयरो इंडिया 2017 के दौरान अपने एडवांस्ड हॉक ग्राउंड डिमॉंस्ट्रेटर का अनावरण करेंगे।

और जहां से यह आया है, यहां उससे ज्यादा है – भारत और ब्रिटेन के लिए एडवांस्ड मल्टी-रोल काम्बेट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) इंजिन के साथ ही स्टारस्ट्रीक मिसाइल पर भी साथ मिलकर काम करने की प्रचुर संभावनाओं के साथ।

ये मेक इन इंडिया के अगले चरण के उत्तम उदाहरण हैं- उद्योग जो सीमाओं के परे जाकर नई प्रौद्योगिकी के डिजाइन और निर्माण के लिए साथ मिलकर काम करते हैं, न कि केवल एक से दूसरे देश को इसका हस्तांतरण करते हैं।

नई प्रौद्योगिकी जो न केवल दोनों सहभागियों को रक्षा लाभ प्रदान करेंगी, बल्कि जिनसे निर्यात अवसरों के साथ ही संयुक्त आर्थिक संवृद्धि तथा नौकरियों का भी सृजन होगा।

ये उन परियोजनाओं के प्रकार हैं जो हमें ब्रिटेन में सचमुच रोमांचित करते हैं- क्योंकि इस बढ़ती हुई जटिलता और प्रतियोगिता की दुनिया में, विकासशील और विकसित होने के बीच का अंतर, किसी देश द्वारा अपने संसाधनों का इस्तेमाल करने की क्षमता, इच्छा और दक्षता पर निर्भर करता है।

न केवल इसकी महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी, बल्कि नवाचारी विचार, तथा दक्षता और बौद्धिक केंद्र हैं, जो इसे आगे बढ़ाते हैं। और अच्छी खबर यह है कि हमारे दोनों राष्ट्र बिल्कुल ऐसा ही करने के लिए व्यवस्था-तंत्र का सृजन करने में लगे हैं।

भावी सफलता के लिए व्यवस्था-तंत्र

हमारी सक्षम सहभागिता जो भूमि हवा और सागर के क्षेत्रों में है, हमारे दोनों राष्ट्रों को एक बेमिसाल अवसर प्रदान कर रही है: रणनैतिक क्षमताओं की श्रेणी पर सहयोग के माध्यम से एक वास्तविक रूप से उत्पादक रक्षा सहयोग विकसित करना- जिसमें एयरक्राफ्ट कैरियर, फ्रेगेट्स और सशस्त्र वाहनों के क्षेत्र शामिल होंगे।

ये सहभागिताएं हमारे रक्षा उपकरण सहयोग समझौता ज्ञापन के आधार हैं- एक समझौता जिसे हम पुनः नवीकृत और विस्तारित करने की प्रक्रिया में हैं….. केवल लेनदेन से आगे बढ़कर इसे वास्तविक क्षमता विकास की तरफ अग्रसर करने के लिए।

और जल्द ही रक्षा हेतु हमारे राज्य सचिव, मेरे वरिष्ठ अधिकारी, भारत की यात्रा करनेवाले हैं इस नवीकृत समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के साथ ही हमारे देश की वार्षिक रणनैतिक रक्षा वार्ता की अध्यक्षता के लिए भी: यह एक वार्ता होगी जो क्षमता सहभागिता में अब तक हमने जो प्रगति की है उसके आधार पर आगे की जाएगी।

अंतिम रूप से, लेकिन कम महत्वपूर्ण नहीं, कि हमारे राष्ट्र एक घनिष्ठ रक्षा विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संबंध का लाभ उठा रहे हैं जो फलदायी है- एक जो हमारे दो विश्वस्तरीय रक्षा शोध तथा विकास निकायों में देखा जा सकता है: ब्रिटेन में डीएसटीएल तथा भारत में डीआरडीओ- विचारों को वास्तविकता में परिणत करने की दिशा में साथ मिलकर घनिष्ठ रूप से काम करते हुए…. विचार जो हमें आश्वस्त करते हैं कि हम विश्व मंच पर अपनी विशिष्ट भूमिका बनाए रख पाएंगे।

यह महत्वाकांक्षी कार्यक्रम उस दौर में पहुंच गया है जहां अब हम कहीं ज्यादा निकट तौर पर परस्पर संयुक्त हैं, जिसका आधार हमारे दोनों देशों तथा उन इलाकों में चल रहा राजनैतिक तथा आर्थिक उत्परिवर्तन है, जहां हम काम करते हैं।

इस विशेष क्षण में, जब आप ‘मेक इन इंडिया’- और उसमें भी आज खासतौर पर “मेक इन कर्नाटक” में आमंत्रित हैं- हम ब्रिटेन में एक ज्यादा वैश्विक ब्रिटेन बनने की अपनी आकांक्षा प्रकट कर रहे हैं- एक बहिर्मुखी राष्ट्र- जो दुनिया के व्यवसाय, नवाचार और मुक्त व्यापार में सबसे अग्रणी हो।

जैसा हमारी प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने नवंबर में प्रधानमंत्री मोदी से अपनी मुलाकात के दौरान कहा था - हमारे दोनों देशों के बीच ज्यादा व्यापार, ज्यादा निवेश तथा कम रुकावटों के माध्यम से हम हर तरह से ज्यादा संपन्न, शांतिपूर्ण और सुरक्षित होंगे। और अपनी इस विशिष्ट सहभागिता के माध्यम से हमारे लिए इन मुद्दों पर प्रगति करने की बहुत ज्यादा संभावना है।

इसलिए हां, ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग हो गया है, लेकिन हम विश्व में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। मुझे गर्व है कि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था, जो यूरोप की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है, दुनिया में सबसे ज्यादा वैविध्यपूर्ण है।

निष्कर्ष

तो, अब यह आपके सामने है।

ब्रिटिश सरकार और ब्रिटिश उद्योग जगत कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ा है, आपके साथ सहभागी के रूप में काम करने के लिए।

भारत और ब्रिटेन न केवल मजबूत हैं, बल्कि वस्तुतः एक अपराजेय संयोजन हैं।

अतीत में और फिर से, हमने बार-बार साथ मिलकर नवाचार, आविष्कार, निर्माण तथा विकास की अपनी क्षमताएं साबित की हैं।

और यह मेरा- तथा मेरी सरकार का- लक्ष्य है कि हम अपनी सहभागिता को हमेशा से ज्यादा मजबूत और सफल होता हुआ देखें।

इसलिए, मुझे उम्मीद है कि आज यहां का मेरा दौरा इस दिशा में अपनी थोड़ी सी भूमिका अवश्य निभाएगा….

हमें और ज्यादा सुरक्षित और समृद्ध बनने में सहायक बने…..

हमें हमारी साझा संभावनाओं का लाभ उठाने में सहायक बने…

और हमें हमारे साझा भविष्य के आसमान में और ज्यादा ऊंची उड़ान भरने के लिए सबल बनाए।

प्रकाशित 13 February 2017