भाषण

निम्न कार्बन प्रौद्योगिकी भारत और ब्रिटेन के संबंधों की एक अन्य कड़ी हो सकती है

23 सितम्बर 2015 को नई दिल्ली में आयोजित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन कार्यक्रम में ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन मंत्री एम्बर रड की भाषण की लिखित प्रतिलिपि।

The Rt Hon Amber Rudd

आपकी प्रस्तावना के लिए धन्यवाद श्री जोशी।

यहां नई दिल्ली आकर तथा प्रौद्योगिकी एवं जलवायु परिवर्तन पर इस ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन कार्यक्रम का शुभारंभ करने का अवसर पाकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। यहां दिल्ली में महज 24 घंटे के अंदर, टिकाऊ आर्थिक संवृद्धि हासिल करने और जलवायु परिवर्तन से निबटने की दिशा में भारत के प्रभावशाली प्रयासों के बारे में मुझे बहुत कुछ सुनने को मिला।

प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इस विषय पर खुद एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम “कॉनवीनयंट एक्शन” है। और उन्होंने कहा है कि “जलवायु परिवर्तन से निबटने में भारत दुनिया की अगुवाई करेगा”, जो कि पर्यावरण की रक्षा और उससे प्रेम की भारतीय परंपरा के अनुरूप है। टिकाऊ विकास के प्रति उनकी व्यक्तिगत कटिबद्धता और गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनके ट्रैक रिकॉर्ड ने निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने की दिशा में भारत को विश्व के नेतृत्वकर्ता की स्थिति में ला खड़ा किया है।

मैं इस बात पर बल देना चाहती हूं कि ब्रिटेन भारत के दृष्टिकोण से सहमत है। हम दोनों ही टिकाऊ आर्थिक विकास चाहते हैं जो केवल सुरक्षित ऊर्जा, निम्न कार्बन और जलवायु हितैषी अर्थव्यवस्था के जरिए संभव है। न्यू क्लाइमेट इकॉनॉमी रिपोर्ट जैसे अध्ययनों ने दर्शाए हैं कि हमारे सामने ‘पृथ्वी की रक्षा और संवृद्धि को बढ़ावा देने’ में से किसी एक को चुनने की अप्रिय स्थिति उत्पन्न नहीं होगी, क्योंकि सही नीतियों के बल पर हम दोनों के बीच संतुलन हासिल कर सकते हैं।

निम्न कार्बन संवृद्धि

देवियों और सज्जनों, निम्न कार्बन संवृद्धि महत्वपूर्ण है। और इस दिशा में भारत बाकी दुनिया को राह दिखा सकता है। मैं प्रधानमंत्री श्री मोदी के 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा के प्रभावशाली लक्ष्य की तारीफ करती हूं। ऊर्जा की उपलब्धता के लिए नवीकरणीय ऊर्जा बेहतरीन विकल्प है – यह “सबको बिजली” के प्रधानमंत्री श्री मोदी की योजना में मददगार है।

ऊर्जा सुरक्षा के लिए यह बढ़िया है। मध्य पूर्व में अस्थिरता के कारण वैश्विक ऊर्जा बाजार पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। नवीकरणीय ऊर्जा हमारी ऊर्जा आपूर्ति की कमी को पाटने में मददगार हो सकती है।

और नवीकरणीय ऊर्जा अर्थव्यवस्था के हित में है। हाल के वर्षों में हमने नवीकरणीय ऊर्जा की लागतों में भारी कमी देखी है और न्यू क्लाइमेट इकॉनॉमी रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन साल में भारत में इसकी लागत 65% कम हुई है। उल्लेखनीय है कि अधिकाधिक शोध यह दर्शाते हैं सौर ऊर्जा अब कई देशों में ग्रिड-समकक्ष हो गई है।   निम्न कार्बन संवृद्धि प्रधानमंत्री श्री मोदी के स्मार्ट शहरों की प्रभावशाली योजना के लिए केंद्रीय महत्व की बात हो सकती है। हरित भवन, रैपिड ट्रांसपोर्ट, स्मार्ट ग्रिड और प्रभावी कचरा प्रबंधन भाविष्य के शहरों को आर्थिक रूप से किफायती, निम्न कार्बन आधारित और जलवायु हितैषी बनाएंगे। निम्न कार्बन संवृद्धि से “मेक इन इंडिया” को बल मिल सकता है। ऊर्जा दक्ष उद्योग और विनिर्माण के बलबूते लागत में कमी और लाभ में वृद्धि लाई जा सकती है।

और निम्न कार्बन संवृद्धि हमारे महानगरों और शहरों को मनुष्य के जीने लायक अधिक सुंदर स्थान बना सकती है। बेहतर हवा, स्वच्छ नदियां और स्वस्थ लोग प्रधानमंत्री श्री मोदी के “स्वच्छ भारत” अभियान के मूल में हैं।

इसलिए, जैसा कि हमने भारत में देखा है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकारें किस प्रकार दिशानिर्देश दे सकती हैं और किस प्रकार वे लोगों में अकांक्षाएं जगा सकती हैं।और सरकारों को मिलकर काम करना होगा।

मेरे मन में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि 9 सप्ताह बाद पेरिस में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ताओं में एक महत्वाकांक्षी समझौता संभव होगा जो निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था की दिशा में बढ़ने के लिए अभिनव प्रयासों तथा कार्यवाहियों हेतु कदम उठाने का हमारे लिए सर्वाधिक सुनहरा अवसर होगा।

वैश्विक समझौते से शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं, निवेशकों और उद्योगपतियों तक एक स्पष्ट संकेत जाएगा कि निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था के लिए सरकारें कटिबद्ध हैं। लेकिन केवल सरकार के प्रयास हमारे वांछित निम्न कार्बन रूपांतरण के लिए काफी नहीं होंगे। दूसरे पक्षों को भी इसमें अपनी भूमिका निभानी होगी।

दीर्घावधिक लक्ष्य के रूप में हमें हमारे वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की आविष्कारी क्षमताओं तथा प्रतिभा के उपयोग करने की आवश्यकता है। निजी क्षेत्र के उद्यमी क्षमता के साथ यह हमारे महत्वपूर्ण निम्न कार्बन प्रौद्योगिकियों की ओर ले जाने वाला मार्ग प्रशस्त करेगा, जिनमें से कुछ का तो अभी आविष्कार भी नहीं हुआ है।

घरेलू स्तर पर ब्रिटेन क्या कर रहा है?

घरेलू स्तर पर, हमने इसे समझ लिया है। इसलिए ब्रिटिश सरकार ऊर्जा शोध, विकास, प्रदर्शन और नव-प्रवर्तन पर भारी निवेश कर रही है। 2011 से इस साल के अंत तक हम निम्न-कार्बन शोध और विकास के क्षेत्र में 1.3 अरब पाउंड का निवेश कर चुके होंगे।

लेकिन केवल सरकारी निवेश से भारी अंतराल को पाटा नहीं जा सकता। हमें विशाल निजी क्षेत्र को भी प्रौद्योगिकी में निवेश करने के लिए प्रेरित करना होगा। अपनी अर्थव्यवस्था को कार्बन-मुक्त करने का यह सबसे लागत-प्रभावी तरीका है।

मेरा मानना है कि उद्योग-धंधों के विकास, नव-प्रवर्तन तथा नई तकनीकों की लागत घटाने में सरकार की अहम भूमिका होनी चाहिए, ताकि समय के साथ वे पहले से स्थापित तकनीकों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें।

यही कारण है कि ब्रिटेन में हम उन तकनीकों को बढ़ावा देने पर जोर देते हैं जो अभी नई हैं, और इस मामले में सरकार तथा उद्योग जगत मिलकर प्रभावशाली काम कर सकते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटेन क्या कर रहा है?

बेशक, वैश्विक निम्न कार्बन रूपांतरण की चुनौती की व्यापकता किसी भी एक देश की बजटीय क्षमता से कहीं अधिक है। इस कारण, आपसी सहयोग महत्वपूर्ण हो जाता है। नई जानकारियों का साझाकरण। कौशलों और शोध सुविधाओं का साझाकरण। अनुभव और हासिल की गई शिक्षाओं का साझाकरण।

और यही कारण है कि ब्रिटेन विकसित देशों से उन विकासशील देशों की ओर वित्तीय प्रवाह को मजबूत करने की दिशा में प्रतिबद्ध है जिनके पास निम्न कार्बन प्रौद्योगिकियों में निवेश हेतु पूंजी और क्षमता की कमी होती है।

निम्न कार्बन प्रौद्योगिकियों को देशों के बीच साझा करने के अनेक तरीके हैं। 2010 में कानकुन में निर्धारित प्रौद्योगिकी कार्यविधि- यूएनएफसीसीसी के जरिए देशों की बहुपक्षीय सहभागिता सुनिश्चित होती है।

इसका लक्ष्य है सार्वजनिक/निजी साझेदारियों को पोषित करना, नवप्रवर्तन को बढ़ावा देना और संयुक्त आर&डी गतिविधियां संचालित करना। क्षमता निर्माण में सहायता, प्रौद्योगिकी के विकास और हस्तांतरण के लिए हरित जलवायु कोष द्वारा अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। हाल ही में जीसीएफ द्वारा उपलब्ध 10.2 अरब डॉलर का कोष जलवायु कोष हेतु अब तक के सबसे बड़े संसाधन एकत्रीकरण को दर्शाता है। ब्रिटेन इसमें 1.2 अरब डॉलर की सहायता के लिए प्रतिबद्ध है।

‘कोष’ (हरित जलवायु कोष) के लिए 2015 महत्वपूर्ण है क्योंकि इस साल इसकी पूर्ण परिचालनीयता सुनिश्चित हो जाएगी। जीसीएफ बोर्ड के जरिए विभिन्न देश आपस में मिलकर इस उम्मीद से काम कर रहे हैं कि वे नवंबर में होने वाली बोर्ड की अगली बैठक में वित्त पोषण हेतु उच्च गुणवत्ता वाले प्रस्तावों को स्वीकृत करा लेंगे।

और बहुपक्षीय मार्गों के समान ही प्रौद्योगिकी पर द्विपक्षीय साझेदारियों के रास्ते भी हैं। इस साल जून में जी7 शिखर सम्मेलन में जी7 के नेताओं ने ब्रिटेन द्वारा पेश किए गए एक प्रस्ताव को समर्थन दिया जो स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में शोध, विकास और प्रदर्शन में पारदर्शिता तथा समन्वयन की बात करता है।

उच्च मध्यम आय वर्ग के कई देश प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तन के क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाते हैं और बेशक भारत इससे बाहर नहीं है।

नवप्रवर्तन और उद्यमिता के मामलों में भारत की साख है। अपनी जनसंख्या को लेकर यह लाभ की स्थिति में है जहां करोड़ों की युवा आबादी जो कौशलपूर्ण काम कर सकते हैं और प्रौद्योगिकी समुन्नयन में अपनी भूमिका निभा सकते हैं। और भारत के पास इस बात की विशाल क्षमता है कि वह अपनी प्रौद्योगिक तरक्कियों के लाभ को शेष विश्व तक पहुंचा सकता है।

विश्व में सौर ऊर्जा की संपन्नता वाले देशों में वैश्विक आर&डी प्रयास की प्रधानमंत्री श्री मोदी की योजनाओं का हम स्वागत करते हैं। और भारत ने 15,000 पेटेंट आवेदन दाखिल किए हैं। अगले 15 सालों में हम इस क्षेत्र में विशाल पैमाने पर दक्षिण-दक्षिण तथा त्रिकोणीय सहयोग की उम्मीद करते हैं।

ब्रिटेन और भारत

और यही कारण है कि प्रौद्योगिकी और नवप्रवर्तन के मुद्दे पर ब्रिटेन भारत जैसे देशों के साथ काम करने को इच्छुक है।

उदाहरण के लिए, दोनों देशों के दो महान वैज्ञानिकों के सम्मान में ब्रिटेन द्वारा “न्यूटन-भाभा” नामक एक संयुक्त कार्यक्रम हेतु 5 वर्षों में 5 करोड़ पाउंड की धनराशि उपलब्ध किया जा रहा है।

न्यूटन-भाभा कोष का इस्तेमाल नवीकरणीय ऊर्जा में शोध के लिए ब्रिटिश-भारतीय केन्द्रों की स्थापना हेतु किया जा रहा है। अन्य बातों के साथ-साथ, इनका लक्ष्य है ऊर्जा भंडारण के जरिए विच्छिन्न नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण में सुधार लाना।

2013 में हमने अपने 1.2 अरब विकास बजट का 3% आर&डी पर खर्च किया। इसका 41% हिस्सा विकासशील देशों में नई प्रौद्योगिकियों और नवप्रवर्तन पर खर्च किया गया।

ब्रिटेन के 3.87 अरब पाउंड के अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कोष ने मध्यम आय वाले तथा विकासशील देशों को निम्न कार्बन, जलवायु हितैषी प्रौद्योगिकियों तक पहुंच बनाने में मदद की है।

और 5.5 अरब पाउंड के बहुपक्षीय स्वच्छ प्रौद्योगिकी कोष में ब्रिटेन एक चौथाई से अधिक का योगदान दिया है। इसका एक बड़ा हिस्सा सौर ऊर्जा दक्षता और जलविद्युत के क्षेत्र में भारत में लगाया जा रहा है।

ब्रिटेन ‘जलवायु वित्त के लिए ग्लोबल इनोवेशन लैब’ की भी मदद कर रहा है जो कि बड़े पैमाने पर निम्न कार्बन प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने हेतु अभिनव साधनों के विकास को समर्पित एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी वाला मंच है।

मुझे पता है एक ‘इंडियन इनोवेशन लैब’ की स्थापना की बात चल रही है और ब्रिटेन इसमें सहयोग करने को इच्छुक है।

निष्कर्ष

देवियों और सज्जनों, प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारत और ब्रिटेन मिलकर एक “अपराजेय संयोजन” का निर्माण कर सकते हैं।

और मैं सुनिश्चित हूं कि निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकी भारत और ब्रिटेन के संबंधों की एक अन्य कड़ी हो सकती है।

यह तो स्पष्ट है कि निम्न कार्बन संवृद्धि की दिशा में साथ मिलकर काम करने का हमारा सुंदर ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि हम और भी बहुत कुछ कर सकते हैं।

प्रधानमंत्री श्री मोदी का नवंबर में ब्रिटेन दौरा महत्वाकांक्षाओं के जागरण, तथा निम्न कार्बन संवृद्धि के मामले में भारत और ब्रिटेन द्वारा दुनिया की अगुवाई की क्षमता दर्शाने की दिशा में और भी बहुत कुछ हासिल करने का सुनहरा अवसर है जहां हमने पहले से भी काफी कुछ हासिल किया है।

और प्रौद्योगिकी तथा नवप्रवर्तन पर साथ मिलकर काम करते हुए हम दिसंबर में पेरिस सम्मेलन में महत्वाकांक्षी मुद्दों पर सहमति बना सकते हैं और दो डिग्री हासिल करना संभव बना सकते हैं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद!

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प्रकाशित 23 September 2015