भाषण

रायसीना वार्ता के दौरान विदेश मंत्री का अभिभाषण, नई दिल्ली

नई दिल्ली में आयोजित रायसीना वार्ता के दौरान विदेश मंत्री बोरिस जॉनसन का महत्वपूर्ण अभिभाषण।

Boris Johnson, Raisina Dialogue - New Delhi

नमस्कार।

द्वितीय रायसीना वार्ता के अवसर पर बोलने का मौका पाना मेरे लिए बड़े सम्मान की बात है और फिर से भारत आना अत्यंत आह्लाद का विषय है।

मैं अब तक कई आधिकारिक दौरों पर तथा कई सारे पारिवारिक विवाह समारोहों के दौरान भारत आ चुका हूं और हमने हमेशा यह ख्याल रखने की कोशिश की है कि दिल्ली और मुंबई के अपने सिख परिजनों के लिए कुछ न कुछ ले कर आएं। क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कौन सी वस्तु हो सकती है। हमारा रुझान ब्लैक लेबल व्हिस्की की बोतल लाने की रहती है, जिस व्हिस्की की इस देश में जोरदार 15 लाख लीटर की खपत होती है और मुंबई, दिल्ली के अपने परिजनों के लिए हम स्कॉच की बोतल क्यों लेकर आते हैं जो आम तौर पर ब्लैक लेबल होती है, हालांकि मैं जो लाया हूँ उसे ग्रीन लेबल कहते हैं।

मैं उम्मीद करता हूं दोस्तों यह क्रेम डे मॉन्ट नहीं होगा कि यह शानदार देश अब भी व्हिस्की के आयात पर पर 150 प्रतिशत शुल्क लगाता है और मेरा मानना है कि यह बात मायने रखती है।

वैसे, भारतीय व्हिस्की टैरिफ पर प्रहार करने का मेरा कोई खास इरादा नहीं है। मुझे लगता है मुक्त व्यापार अपनाने का समय आ गया है जिससे भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था को भारी लाभ होगा जहां हम एक दूसरे से सीखते हैं और एक दूसरे के साथ मुक्त रूप से व्यापार करते हैं और इसे यहां अपनाने की जरूरत है और मैं समझता हूं मैं वह शख्स हूं जो इसे कर सकता है क्योंकि मैं वैसे चुनिंदा लोगों के समूह से हूं जिन्हें वैश्विक कुलीनों की मान्यता हासिल नहीं है।

भले और वाम लिबरल के लिए मैं एक जनवादी हूं क्योंकि मैं ऐसे आंदोलन का हिस्सा रहा हूं जो ईयू के अलोकतांत्रिक चरित्र के विरुद्ध था, फिर हम सफल रहे और इसलिए मुझे दुनिया के ऐसे नेताओं की श्रेणी में रखा गया जो जनवादी माने जाते हैं जो सत्ता पक्ष के अहंकार के विरुद्ध चली जनभावना की लहरों पर सवार होकर सत्ता में आए और इसलिए मैं जनवादियों का पक्ष लेना नहीं चाहता, वे अपना ख्याल खुद रख सकते हैं- जनवादी जरा मोटे खाल के होते हैं। मैं उन लोगों का पक्ष लेना चाहता हूं जो उन्हें वोट डालते हैं क्योंकि वे बुरे लोग नहीं हैं।

वे दुनिया की सुरक्षा के बारे में या आतंकवाद के बारे में चिंतित होते हैं। उन्हें महसूस होता है कि उन्हें व्यापक राय नहीं रखने दी जाती और यह कि उनका उपहास उड़ाया जा रहा है और लोग उनसे सहमत नहीं हैं। वे इस महान चकाचौंधपूर्ण भूमंडलीकृत अर्थव्यवस्था को देखते हैं तो उन्हें लगता है कि कुछ लोग वास्तव में बहुत अमीर हो रहे हैं और फिर उन्हें हैरानी होती है कि क्यों उनके अपने परिवार इस तरक्की की रफ्तार के साथ नहीं भाग पा रहे और उन्हें इस बात का भय सताता है कि उनकी पीढ़ी तेजी से आगे नहीं बढ़ सकती, और इसलिए मैं कहता हूं कि ऐसे लोगों की भावनाओं की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए और नाही संरक्षणवाद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, और न ही जनवाद की लहर के बारे में हमें गलत फैसले की ओर बढ़ना चाहिए।

हल यह है कि अवरोध न लगाएं या वाणिज्य की प्रणाली को कमजोर न करें, हल यह है कि उन्हें रोजगार और सम्मान मिले और उन्हें यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि व्यापार किस प्रकार दोनों पक्षों के लिए लाभकारी हो सकता है और कैसे लाभ का सही और निष्पक्ष विनिमय हर किसी के लिए फायदेमंद हो सकता है।

हल यह है कि भारत और ब्रिटेन जैसे महान राष्ट्र 1930 के दशक वाली दुनिया में वापस जाने की बजाए अपनी चिंताओं का समाधान मिलकर करें और जबकि हर कहीं मजबूत जनसमर्थन वाली ताकतवर सरकारें हैं जो आयात पर निर्भर नहीं हैं और वे व्यापार की राह में आयात शुल्क और अन्य बाधाओं को दूर कर सकती हैं।

1936 में प्रकाशित एवलिन वाउ के व्यंग्यात्मक उपन्यास स्कूप का लॉर्ड कॉपर ऑफ द बीस्ट आपको याद होगा जो व्यक्तिगत रूप से एक युवा रिपोर्टर को दुनिया के बारे में अपने नजरिए से अवगत कराता है, और वह कवरेज जो वह देखना चाहता है। “बीस्ट की पॉलिसी है कि हर कहीं मजबूत और परस्पर विरोधी सरकारें हों”, वह कहता है।

लेकिन मेरी नीति यह नहीं हैं, और न ही यह हमारी नीति है। ब्रिटेन में हम अभी भी सैन्य सहयोग चाहते हैं और हमारी सुरक्षा के एक मजबूत स्तंभ के रूप नाटो में हमारा विश्वास है और गठबंधन के हम उन थोड़े से देशों में शामिल हैं जो अपनी जीडीपी का दो प्रतिशत व्यय करना चाहते हैं और नाटो के वर्धित अग्रिम उपस्थिति के अंग के रूप में एक बटालियन एस्टोनिया भेजकर हमने सामूहिक सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है।

बशर अल असद जैसे व्यक्ति के शासन काल को कठघरे में खड़ा करने के मामले में संरा का समर्थन किया और सुरक्षा परिषद तथा परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत के शामिल होने का भी समर्थन किया।

भारत की तरह हम भी आतंकवाद की खतरों से वाकिफ हैं- और मैं आपको बताऊं कि 2008 के मुंबई हमले के दौरान मेरी पत्नी के परिवार के कुछ लोग वहीं मौजूद थे- और हम व्यापक खुफिया आदान-प्रदान के जरिए उन खतरों से निबटने की दिशा में करते रहे हैं और हमारे पास दुनिया की कुछ सर्वाधिक जबर्दस्त क्षमताएं हैं और भारत के साथ हम अपनी सर्वाधिक उन्नत तकनीक बेझिझक साझा करते हैं।

हॉक जेट ट्रेनर का ही उदाहरण लीजिए जो दुनिया का जाना-माना एयरक्राफ्ट है, इसका डिजायन और निर्माण बंगलोर में BAe सिस्टम्स द्वारा किया गया है; और मैं जानता हूं कि आज सुबह श्री जयशंकर ने कहा कि उन्हें लगता है कि यूरोप के ऊपर दुनिया से सिमटने का खतरा मंडरा रहा है। मैं यहां आपको ठीक वक्त पर यह बताने को मौजूद हूं कि ब्रिटेन का यह उद्देश्य नहीं है।

हमारे पास पहुंच है, हमने अभी निर्णय लिया है कि दस वर्षों में 3 अरब पाउंड की प्रतिबद्धता के साथ हम स्वेज के पूरब अपनी सैन्य उपस्थिति बहाल करेंगे और बहरीन में हमारा एक नौसैनिक सहायता केंद्र होगा। हमारी प्रतिबद्धता पूरी दुनिया को लेकर है।

रॉयल एयर फोर्स ने एक्सरसाइज ईस्टर्न वेंचर पर टाईफून फाइटर्स जापान और दक्षिण कोरिया भेजे हैं जिससे यह झलकता है कि ब्रिटेन उन मुट्ठी भर देशों में है जो अपनी तटरेखा से 7000 किमी दूर अपनी हवाई सेना तैनात करने की क्षमता रखता है।

हम महत्वाकांक्षा रखते हैं। हमारी रणनीतिक सुरक्षा और रक्षा समीक्षा से यह स्पष्ट होता है कि रॉयल नेवी के नए विमानवाही युद्धपोत एशिया के समुद्र में मौजूद रहेंगे।

फाइव पावर डिफेंस अरेंजमेंट - जो ब्रिटेन को मलेशिया, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ जोड़ता है एशिया का एकमात्र स्थायी और बहुपक्षीय रक्षा समझौता है।

साल में दो बार दक्षिण-पूर्व एशिया के अपने मित्रों के साथ ब्रिटिश सेनाएं साझा अभ्यास करती हैं।

और अगले दस सालों में, जबकि हमारे पास दो नए विमानवाही युद्धपोत हो जाएंगे, हमारी नौसैनिक ताकत में वृद्धि होने के साथ हम और भी बड़ा योगदान देने में सक्षम होंगे। हिंद महासागर के दियागो गार्सिया में हमारा एक संयुक्त ब्रिटिश-अमेरिकी केंद्र है जो इस क्षेत्र में हमारे अभियानों के लिए महत्वपूर्ण संपदा है।

हम कोरियायी प्रायद्वीप के संयुक्तराष्ट्र कमांड के भी सदस्य है; जबकि बेरुत में तैनाती योग्य हमारी ब्रिटिश गुरखा टुकड़ी है। और इस देश की तरह हमारे भी अपने सिद्धांत हैं, दुनिया के प्रति हमारा समान नजरिया है।

दक्षिण चीन सागर में तनाव के मामले में हम नियम आधारित व्यवस्था के पक्षधर हैं। उपयुक्त दावे की समीचीनता पर हमारा कोई ऐतराज नहीं है।

लेकिन यह बात तो जरूर मायने रखती है कि उनका पालन किस तरह से किया जाता है।

हम दक्षिण चीन सागर के सैन्यीकरण के खिलाफ हैं और हम सभी पक्षों से यह अपील करते हैं कि समुद्री आवागमन को मुक्त रखा जाए वे अपने विवादों का निबटारा अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत शांतिपूर्ण तरीकों से करें।

पिछले साल हेग के स्थायी पंचाट द्वारा दिए गए फैसले का सम्मान करते हैं जो चीन और फिलिपींस दोनों पर लागू होता है। वास्तव में, मैं बड़ी विनम्रता के साथ अपने भारतीय मित्रों से कहता हूं कि हम ऐसे सभी बाध्यकारी फैसलों का सम्मान करने में यकीन रखते हैं।

हमारा विश्वास है भारत इस क्षेत्र में स्थिरता लाने में भारत एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में भूमिका निभा सकता है जो पूरब में पर्थ से लेकर पश्चिम में केप टाउन तक हिंद महासागर द्वारा निर्मित विशाल प्राकृतिक मेहराब का प्रधान स्तंभ है।

यह एक विशाल अंतर्क्षेत्र है जिसमें भारत द्वारा अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना उचित है और हम प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा पड़ोसियों को एकजुट करने के लक्ष्य को समर्थन देते हैं। कल्पना कीजिए कितनी बेहतरीन बात होगी जब दक्षिण एशिया के देश अफगानिस्तान, भारत और पाकिस्तान आपसी अविश्वास की दीवारों को गिराकर अपने आर्थिक अवसरों का सर्वोत्तम सदुपयोग करेंगे।

और इसी कारण सुरक्षा मायने रखती है। क्योंकि देशों के बीच यदि विश्वास न हो, सागर मार्ग में आवागमन की स्वतंत्रता न हो, जहां विश्व व्यापार का 25% हिस्सा मलक्का जलडमरुमध्य से होकर संपन्न होता है, ऐसे में बिना नियम आधारित किसी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के हमारी यह दुनिया 1930 के दशक की अनिश्चितता के दौर में लौट सकती है।

जब वाणिज्य-व्यापार में गिरावट आए और हम इसके परिणामों को जानते हैं, और इसमें गिरावट आ भी रही है, 1990 के दशक के बाद से जीडीपी के रूप में पहली बार, तो यही कारण है कि आज ब्रिटेन द्वारा जो अवसर मुहैय्या कराया जा रहा है उसे लेकर मैं रोमांचित हूं। जैसा कि हमारी प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने कल कहा, हमारा विश्वास है कि हम यूरोपीय संघ के साथ एक नया और स्वस्थ संबंध विकसित कर सकते हैं जो ईयू के साथ सहयोगात्मक होगा।

और जैसा कि मैंने पहले कहा कि भले ही हम मूल निकाय से बाहर हों लेकिन हम बाहर से भी सहयोग कर सकते हैं जो मुक्त व्यापार और सरकारों के बीच आपसी सहयोग के आधार पर होगा, लेकिन पिछले 44 वर्ष में पहली बार हम मुक्त व्यापार के लिए अभियान चला रहे हैं इसलिए नहीं कि यह ब्रिटेन के हित में है बल्कि इससे पिचले 50 साल के दौरान करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकलने में मदद मिली है और मानव प्रगति का सबसे बड़ा प्रेरक कारक रहा है और मुक्त व्यापार तथा आर्थिक अंतर्भेदन के कारण भरपूर आपसी लाभ होता है और यह एक पीष्ठोक्ति ही नहीं बल्कि सत्य है कि ब्रिटेन और भारत मिलकर वह सब कुछ हासिल कर सकते हैं जो शायद वे अकेले-अकेले न कर पाएं।

यह एक चौंका देने वाला तथ्य है कि भारत जितना निवेश अकेला ब्रिटेन में करता है वह शेष ईयू में उसके द्वारा किए जाने वाले से अधिक है। आपको बताने की आवश्यकता नहीं कि ब्रिटेन का जो सबसे बड़ा नियोक्ता है वह एक भारतीय कंपनी है जो वेस्ट मिडलैंड के कैसल ब्रोमविच I में खूबसूरत जैगुआर कारों का निर्माण करती है और फिर उन कारों को भारत में बेचती है।

आपने सुना होगा कि ब्रिटेन के करी रेस्तरां में इतने लोग काम करते जितने कि किसी जहाज निर्माण, कोयला खदान और लौहे के कारखाने में भी नहीं करते होंगे, जिससे यह समझा जा सकता है कि क्यों ब्रिटेन के कुछ लोग अपने मोटापे से परेशान हो रहे हैं।

लेकिन आप यह न समझें कि हम बस वहां बैठे पापड़ खाते रहते हैं। हम ब्रिटेनवासी यहां भी मौजूद हैं। यहां भारत में चार जेसीबी फैक्ट्रियां हैं। सुपरबग की समस्या से निबटने के लिए हमारे ब्रिटिश वैज्ञानिक यहां भारतीय वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

भारत में निजी क्षेत्र के प्रत्येक 20 में से एक नौकरी ब्रिटिश-स्वामित्व वाली कंपनी द्वारा सृजित होती है और हमारा व्यापार सालाना 3 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहा है। भारत की जनसंख्या में 80 करोड़ लोग 35 वर्ष से कम उम्र के युवा हैं जबकि आयरलैंड की कुल जनसंख्या ही 40 लाख से कम है और ब्रिटेन का व्यापार संपूर्ण भारत के साथ जितना होता है वह आयरलैंड से होने वाले व्यापार की तुलना में भी कम है, तो आप समझ सकते हैं कि संभावनाएं कैसी अपार हैं यहां।

प्रधानमंत्री श्री मोदी की रोमांचक 830 अरब डॉलर की इनफ्रास्ट्रक्चर योजना है और इसलिए अब ब्रिटिश इंजीनियरों, सर्वेयरों, योजनाकारों, कंसल्टेंट्स, आर्किटेक्ट्स और वकीलों तथा बैंकरों के भाग्य जगने वाले हैं और मुझे उम्मीद है आज वे यहां मौजूद होंगे और वे आगे बढ़कर इस शानदार विकास कार्य में अपने हिस्से की भूमिका निभाएंगे और इन बाधाओं को खत्म करेंगे।

और इसी कारण वह समय आ रहा है जब हमें इस संबंध को नए मुक्त व्यापार समझौते के साथ एक नई ऊर्जा प्रदान करनी होगी। हम इस पर अभी वार्ता नहीं कर सकते। लेकिन हम इसका खाका जरूर तैयार कर सकते हैं।

तो अब मैं उस व्हिक्सी पर वापस लौटता हूं जिसके बारे में चर्चा करते हुए मैंने अपनी शुरू की थी।

यह एक अनोखा तथ्य है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि वैसे तो निर्विवाद रूप से स्कॉच की जन्म भूमि स्कॉटलैंड रहा है, दुनिया का वह एक मात्र स्थान जहां शराब के लिए पीट युक्त कंदरे से पानी एकदम सही रूप में स्रावित होता है हालांकि व्हिस्की शब्द स्वयं गेलिक शब्द ‘इश्क्या बेहा’(uisge beatha) से निकला है। क्या किसी को पता है इसका अर्थ क्या होता है? एच2ओ - वाटर ऑफ लाइफ!

सबसे सच्चे व्हिस्की स्कॉच व्हिस्की का भारतीय बाजार में कुल हिस्सेदारी इतनी है कि यह दुनिया में इसका सबसे बड़ा एकल बाजार है जहां सालाना 8 करोड़ पाउंड मूल्य के साथ ब्रिटेन के निर्यात का यह कुल 4 प्रतिशत होता है।

अब कल्पना कीजिए कि यदि आयात कर हटाकर हम इसे दुगुना या तिगुना कर लें तो केवल 8 प्रतिशत की कमी के साथ भारतीयों को अन्य चीजें खरीदने के लिए अधिक पैसे बचेंगे। भारतीय व्हिस्की प्रेमियों के मनोबल और स्कॉट उद्योग में वृद्धि के बारे में सोचिए।

और फिर सोचिए यह कितनी शानदार व्यवस्था होगी जब भारतीय उत्पादों पर आयात शुल्क घटकर शून्य हो जाए मिसाल के लिए उन भारतीय इलेक्ट्रिक कारों और बसों पर जो हम लंदन की सड़कों पर लाना चाहते हैं।

यह समय दीवारें और बाधाएं खड़ी करने का नहीं है।

यही समय है जब इन बाधाओं को हटा देना चाहिए।

हम ईयू छोड़ सकते हैं और हम अपनी सीमाओं को फिर से अपने नियंत्रण में ले सकते हैं। लेकिन मेरे भारतीय दोस्तों, इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रवेश कठिन बनाना चाहते हैं या भारतीय प्रतिभा को अपने देश में प्रवेश से रोकना चाहते हैं।

मुझे यह कहते गर्व हो रहा है कि यूरोप में सबसे तेज गति से बढ़ने वाली एक बड़ी अर्थव्यवस्था दुनिया की सर्वाधिक विविधतापूर्ण अर्थव्यवस्था है।

हमारे गोलार्ध के सबसे बड़े टेक सेक्टर के साथ और सबसे बड़े बैंकिंग सेक्टर के साथ लंदन में दुनिया का सर्वाधिक विदेशी मुद्रा विनिमय होता है जो कुल विदेशी मुद्रा विनिमय का 40 प्रतिशत है। न्यूयॉर्क से भी अधिक डॉलर की खरीद-फरोख्त लंदन में किया जाता है।

दुनिया का सर्वाधिक घूमा जाने वाला म्यूजियम ब्रिटिश म्यूजियम है, यानी जहां कुछ ईयू देशों की तुलना में अधिक संख्या में विजिटर्स आते हैं, अपनी कूटनीतिक मर्यादा के तहत उन देशों के मैं नाम नहीं बताऊंगा।

हमारे पास दुनिया के सर्वोत्तम विश्वविद्यालय हैं- अकेला कैंब्रिज ही चीन और रूस के विश्वविद्यालयों की सम्मिलित नोबेल विजेताओं की संख्या के दुगुने से भी अधिक संख्या में नोबेल विजेता देता है।

दुनिया भर के 7 राजाओं, महारानियों, राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों में से एक के शिक्षा ब्रिटेन में हुई होती है और इस अनुपात को हम कायम रखना चाहते हैं और हम इसमें और सुधार कर रहे हैं।

दुनिया के किसी भी अन्य शहर (चीन के बाहर) की तुलना में चीनी छात्रों की संख्या लंदन में अधिक है और वे यहां इसलिए आते हैं क्योंकि हम प्रतिभा का स्वागत करते हैं।

और ऐसा होने का कारण है खुलापन और बाधाओं का प्रतिकार जो लंबे समय में अधिक संख्या में नौकरी पैदा करेगा, लोगों की आय में वृद्धि करेगा जो हमारे नागरिकों में आशा और सुकून की भावना का संचार करता है।

इसलिए आइए साथ मिलकर काम करें। जनवाद के स्वरों को नजरअंदाज या उनकी निंदा न किया जाए बल्कि उनकी चिंताओं को समझा जाए और उनका समाधान किया जाए। ब्रिटेन और भारत अपने साझा मूल्यों तथा दुनिया की समस्याओं के बारे में हमारे साझे नजरिए से एकजुट हैं।

और यह हमारी सुरक्षा को उन्नत करने के लिए साथ मिलकर काम करने से होता है और हम आजादी और खुलेपन का स्वागत करेंगे जो हमारे लिए समृद्धि लेकर आएंगे।

प्रकाशित 18 January 2017