प्रेस विज्ञप्ति

मानवाधिकार तथा लोकतंत्र रिपोर्ट 2012- मामले का अध्ययन - भारत

गत दिसम्बर नई दिल्ली में बलात्कार की हृदयविदारक घटना के परिणामस्वरूप हुई पीड़िता की मृत्यु ने मीडिया तथा लोगों का व्यापक ध्यान आकर्षित किया।

यह 2010 to 2015 Conservative and Liberal Democrat coalition government के तहत प्रकाशित किया गया था
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Stock image from the FCO Human Rights Report 2012. Credit Basma

मामले का अध्ययन: भारत

ताज़ा जानकारी: 17 अकूटबर 2013

भारत में एक मजबूत लोकतांत्रिक ढांचा है, जो अपने संविधान के तहत मानवाधिकार सुनिश्चित करता है। हालांकि अपनी विशालता तथा सामाजिक तथा आर्थिक विकास को लेकर इसे कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए तथा उस हेतु क्षमता निर्माण के लिए और मानवाधिकार को बढ़ावा देने हेतु तथा उसकी रक्षा के लिए ब्रिटेन की सरकार भारत सरकार तथा गैर-सरकारी सहयोगियों के साथ कार्य कर रही है।

विदेश एवं राष्ट्रमंडल कार्यालय विदेश एवं राष्ट्रमंडल कार्यालय की 2012 मानवाधिकार तथा लोकतंत्र रिपोर्ट में प्रकाशित केस अध्ययन के बाद जस्टिस वर्मा समितिकमीटी (महिलाओं के खिलाफ अपराध से निपटने में भारतीय संविधान की क्षमता हेतु समीक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा स्थापित समितिकमीटी) ने अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें बलात्कारी के लिए न्यूनतम सजा 7 सालों से बढ़ाकर 10 साल करने समेत अहम सुझाव दिए गए हैं, साथ ही इसमें उम्र कैद की सजा को ‘दोषी के स्वाभावित जीवन पर्यंत’ सजा के रूप में घोषित करने की अनुशंसा की गई है।

इन सुझावों के बाद भारतीय संसद ने आपराधिक कानून बिल पास किया, जो महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर सशक्त कानूनों पर केंद्रित है। इस बिल में उन लोक सेवकों पर दंड लगाने का प्रावधान किया गया है, जो यौन अपराधों से जुड़ी अपनी जिम्मेदारियों के निर्वाहन में असफल रहते हैं। इसके अलावा इस बिल में महिलाओं का पीछ करना, सामुहिक छेड़-छाड़, अश्लील चित्रों-दृश्यों को दिखाने तथा एसिड हमले के लिए नई सजाओं का प्रावधान किया गया है। इस नए कानून के तहत कई प्रावधान ऐसे हैं जिनमें सजा के रूप में मृत्युदंड निर्धारित किया गया है।

इसके तहत बलात्कार की घटना की त्वरित सुनवाई के लिए 1,800 फास्ट ट्रैक अदालतों की स्थापना की भी योजना है। इनमें से कुछ को दिल्ली, छत्तीसगढ़ तथा असम जैसे राज्यों में स्थापित किया जा चुका है और उच्च न्यायालय अब इन नए कानूनी निकायों के लिए कम से कम 2000 जजों की नियुक्ति की दिशा में कार्य कर रहा है।
गौरतलब है कि दिसम्बर 2012 में नई दिल्ली में चार लोगों ने एक महिला छात्रा के साथ बलात्कार कर उसकी निर्मम हत्या कर दी थी। चारों दोषी अपने आरोपों तथा सजाओं के विरुद्ध अपील कर रहे हैं। इनमें से एक नाबालिक लड़के को भी इस अपराध का दोषी पाया गया था और तीन साल के लिए सुधार गृह में भेजने की सजा सुनाई गई थी, जो किसी नाबालिक के लिए दी जाने वाली अधिकतम सजा है। छठेछठा आरोपी ने मामले की सुनवाई के दौरान ही आत्महत्या कर ली।

इस कार्य के अलावा ब्रिटिशब्रिटेन सरकार ने भारत सरकार के साथ मिलकर महिलाओं के अधिकार पर नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश उच्चायोग में हाल ही में दो एफसीओ परियोजनाओं का आरंभ किया, जो महिलाओं के मामलों से जुड़े सिविल सोसाइटी के संगठनों के साथ काम करेंगी। अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग (डीएफआइडी) भारत में मानवाधिकार से जुड़े कई अधिकारों पर सहायता प्रदान करना जारी रखेगा, जिसमें सरकारी शिक्षा तथा स्वास्थ्य कार्यक्रम भी शामिल हैं, जो भारत में शिक्षा के अधिकार तथा घरेलू हिंसा से निपटने में मददगार साबित होंगे। डीएफआइडी सिविल सोसाइटी को सरकार के साथ काम करने के लिए भी बढ़ावा देगा, ताकि मानवाधिकारों को बढ़ावा देकर उनकी रक्षा की जा सके, जिसमें मुख्यतः महिलाओं के अधिकारों तथा दलितों तथा जनजाति समुदायों के साथ ही समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों के अधिकारों को केंद्र में रखा गया है।

ताज़ा जानकारीअद्यतन:10 अप्रैल 2013

गत दिसम्बर नई दिल्ली में बलात्कार की हृदयविदारक घटना के परिणामस्वरूप हुई पीड़िता की मृत्यु ने मीडिया तथा लोगों का व्यापक ध्यान आकर्षित किया और महिलाओं के अधिकारों को अहमियत दिलाई। इस घटना के बाद से भारतीय प्राधिकारों ने महिलाओं की सुरक्षा हेतु कई नए कदम उठाए हैं, जिनमें फास्ट ट्रैक अदालत तथा जन-सुरक्षा के उपाय शामिल हैं। बलात्कार के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों का दिल्ली, छत्तीसगढ़ तथा असम में स्थापना की जा चुकी है। हेल्प लाइन्स की व्यवस्था, महिला पुलिस/वकीलों का प्रावधान तथा पब्लिक ट्रांसपोर्ट में कैमरों की व्यवस्था करना जैसे उपाय जन-सुरक्षा के प्रावधानों में शामिल हैं।

महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों से निपटने की भारतीय संविधान की क्षमता की समीक्षा तथा उसके बाद जरूरी सुझावों के लिए भारत सरकार द्वारा एक न्यायिक समिति की भी स्थापना की गई।

हाल के वर्षों में भारत सरकार ने बड़ी मात्रा में फंड का प्रावधान कर, मातृ स्वास्थ्य तथा महिलाओं की शिक्षा में भागीदारी से जुड़े नए कार्यक्रमों को चलाकर महिलाओं तथा लड़कियों के जीवन में सुधार लाने की दिशा में गहरी प्रतिबद्धता दिखाई है। इस कार्यक्रमों से करोड़ों महिलाओं तक लड़कियों को इनसे जुड़ी सेवाएं पहुंच रही हैं। मीडिया की बढ़ती भागीदारी के साथ कानूनी सुधार (इसमें भी घरेलू हिंसा से निपटने का प्रावधान है) भी स्वीकृत दृष्टिकोणों तथा लोगों के व्यवहार की सीमा में बदलाव को बढ़ावा दिया है। वर्ष 2011 तथा 2012 के बीच भारत ने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम कीके जेंडर गैप रिपोर्ट में 113वें पायदान से 105 पायदान की अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति हासिल की है। हालांकि यहां के समाज में असमानता, जातीय भेद-भाव तथा घरेलू हिंसा आज भी मौजूद है, खासकर भारत के गरीब राज्यों में। भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़े संकेत करते हैं कि 34% भारतीय महिलाओं ने 15 वर्ष की आयु में कभी न कभी शारीरिक हिंसा का सामना किया होता है।

भारत में डीएफआइडी के कार्यक्रम महिलाओं तथा लड़कियों के जीवन में बदलाव लाने हेतु लक्षित हैं। केंद्र तथा राज्य सरकारों हेतु सहायता में शामिल हैं सभी लड़कियों को उनकी मौलिक शिक्षा प्राप्त करने में मदद प्रदान करना, मातृत्व मृत्युदर में और कमी लाना तथा महिलाओं तथा लड़कियों के खिलाफ हिंसा से निपटने में सहायता प्रदान करना।

डीएफआइडी इंडिया के दो बड़े सिविल सोसाइटी कार्यक्रम भी भारत में महिलाओं तथा लड़कियों के जीवन में सुधार लाने की दिशा में कार्य करते हैं। ‘द पूअरेस्ट एरियाज सिविल सोसाइटी प्रोग्राम’ समाज में बिहिष्करण की समस्या की दिशा में काम करता है। समाज में मौजूद बहिष्कार की समस्या इसके सकल विकास में बाधक साबित होती है। यह कार्यक्रम भारत के अत्यंत निर्धन तथा अत्यंत वंचित समूहों को लक्षित करता है, जिनमें दलित, जनजातियां, मुस्लिम, विकलांग तथा महिलाएं शामिल हैं। ‘इंटरनैशनल एनजीओ पार्टनरशिप्स अग्रीमेंट प्रोग्राम’ सामाजिक बहिष्करण की समस्या से निपटने के लिए स्थानीय तथा अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों का दोहन करता है।

ब्रिटेन औरकी सरकार- भारत की सरकारेंर, मीडिया तथा सिविल सोसाइटी के साथ मिलकर महिलाओं के अधिकारों पर कई तरह के द्विपक्षीय गतिविधियों का आयोजन करती है। एफसीओ ने महिलाओं के अधिकारों तथा महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देने वाले कई छोटे स्तर की परियोजनाओं पर भी भारतीय सिविल सोसाइटी संगठनों को सहयोग दिया है।

प्रकाशित 15 April 2013
पिछली बार अपडेट किया गया 20 October 2013 + show all updates
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