विश्व की समाचार कथा

महिला अग्नि दाह पीड़िताओं के पुनर्वास हेतु दिल्ली में गोलमेज बैठक

महिला अग्नि अग्नि दाह पीड़िताओं के पुनर्वास हेतु दिल्ली राज्य गोलमेज बैठक का आयोजन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मंगलवार, 17 जनवरी, 2017 को किया गया।

Delhi state roundtable for rehabilitation of women burn survivors

Delhi state roundtable for rehabilitation of women burn survivors at India International Centre, Tuesday 17 January 2017.

इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर क्राइम प्रीवेंशन एंड विक्टिम केयर (पीसीवीसी), चेन्नई स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन, जिसे ब्रिटिश उच्चायोग का सहयोग प्राप्त है, ने महिला अग्नि दाह पीड़िताओं के प्रति एक समग्र सहायता प्रणाली की आवश्यकता पूरी करने के लिए दिल्ली में राज्य-स्तरीय गोलमेज बैठक का आयोजन किया।

पीसीवीसी महिलाओं के प्रति सभी प्रकार की हिंसा से संबंधित है, और 2003 से घरेलू हिंसा की महिला अग्नि दाह पीड़िताओं को शारीरिक, शारीरिक-सामाजिक तथा आर्थिक पुनर्वास मुहैया कराने का एक महत्वपूर्ण अग्रणी कार्यक्रम चला रहा है। वर्तमान में, पीसीवीसी ने महिला अग्नि दाह पीड़िताओं के पुनर्वास के लिए उपलब्ध सहायक सेवाओं की पहचान के लिए चार राज्यों पर आधारित एक शोध परियोजना प्रारंभ की है।

इस गोलमेज बैठक में भाग लेनेवालों में प्रमुख थे डॉ. तनु जैन, एडीजी, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, अजय वर्मा, निदेशक, इंटरनेशनल ब्रिजेज टू जस्टिस, पारुल मल्होत्रा, वरिष्ठ राजनैतिक सलाहकार, ब्रिटिश उच्चायोग, दिल्ली, डॉ. फ्राहीन मलिक, सदस्य, दिल्ली महिला आयोग तथा भुवन भास्कर, निदेशक, बर्न्स एंड ट्रॉमा सेंटर, नोएडा तथा पीसीवीसी के शोधकर्ताओं में सम्मिलित थे।

इस सत्र की शुरुआत दिल्ली राज्य के शोध से प्राप्त विचारों पर आधारित एक विस्तृत प्रस्तुति के साथ हुई। इस शोध का आयोजन दिल्ली के 5 सरकारी अस्पतालों, जिनमें विशेष रूप से बर्न वार्ड मौजूद हैं- राम मनोहर लोहिया अस्पताल, लोक नायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल, जीबी पंत अस्पताल, गुरु तेग बहादुर अस्पताल, तथा सफदरजंग अस्पताल के आंकड़ों तथा साक्षात्कारों के आधार पर किया गया। जिनके साक्षात्कार लिए गए उनमें डॉक्टर, अग्नि दाह पीड़ित, नर्सिंग अधिकारी, नागरिक समाज संगठन, पुलिस अधिकारी तथा सरकारी अभिकरणों के परामर्शदाता शामिल थे।

इस शोध का उद्देश्य समस्या की व्यापकता, इस मुद्दे के समाधान के लिए उपलब्ध तंत्र तथा इस समस्या के कारणों को समझना था।

कुछ विशिष्ट विचार जो शोध की प्रक्रिया के दौरान उभर कर सामने आए, निम्नांकित हैं:

  • महिलाओं में अग्नि दाह की मात्रा और गंभीरता पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा है और अग्नि दाह के तरीके भी अलग-अलग तरह के हैं। महिलाओं के अधिकतर मामलों में, अग्नि दाह की मात्रा 50% से ज्यादा है जिसके परिणामस्वरूप कौन सा भाग जला है इसकी पहचान करना संभव नहीं रह जाता।
  • महिलाओं में न केवल अग्नि दाह की गंभीरता ज्यादा है, बल्कि सामाजिक संरचना और मानसिकता की वजह से अग्नि दाह पश्चात वे काफी आलोचना की भी शिकार होती हैं। कई महिलाओं को तो इस घटना के बाद परिवारजन त्याग देते हैं।
  • महिलाओं में अग्नि दाह की वजह अक्सर स्टोव का फटना या एलपीजी गैस लीकेज या खराब गैस बर्नर या महिलाओं की लापरवाही बता दिया जाता है। इनको व्यापक रूप से रसोईघर दुर्घटना कहा गया है। हालांकि, पुरुषों में अग्नि दाह का कारण मुख्यतः दुर्घटना होना बताया गया, जो या तो स्टोव या बर्नर का उपयोग करने में उनकी जानकारी की कमी के कारण घटित हुए, या कार्यस्थल पर दुर्घटना की वजह से।
  • डॉक्टर अक्सर यह पहचान लेते हैं कि अग्नि दाह एक दुर्घटना है या नहीं। तथापि, चिकित्सकीय-कानूनी मामलों में दर्ज ज्यादातर बयानों में, महिलाओं ने बयान दिया है कि यह एक दुर्घटना है। इसलिए, डॉक्टर दुविधाग्रस्त हैं कि उन्हें इस स्थिति में हस्तक्षेप करना चाहिए या नहीं। इसके उअग्नि दाह रण स्वरूप एक मामले में एक डॉक्टर को ऐसा कहते हुए पाया गया- ‘एक महिला, जो छः मास की गर्भवती थी को 95% जली हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसने पुलिस को दुर्घटना की सामान्य सी कहानी सुनाई कि वह रसोई में थी और एक ‘दिया’ ऊपर से गिर गया और उसके कपड़ों में आग लग गई। यह प्रमाणित था कि मामला ऐसा नहीं था और वह घरेलू हिंसा का शिकार बनी थी। अंततः उसकी मौत हो गई।‘
  • साक्षात्कार में शामिल सभी डॉक्टरों ने समग्र अग्नि दाह मामलों की सहायक सेवाओं की जरूरत स्वीकार की। वे सहमत थे कि अस्पताल से छूटने के बाद शारीरिक उपचार, घावों की देखभाल और समाज में पुनर्वास के मामलों में बहुत सारे कदम उठाए जाने की जरूरत है।

शोध रिपोर्ट से ढेर सारी चर्चाओं की संभावना पैदा होती है। घटना को एक दुर्घटना के रूप में दर्ज करने की समस्या का समाधान करने के संदर्भ में, कुछ महत्वपूर्ण बिंदु जो सामने आए उनमें घटना के विवरण कई बार दर्ज करने की संभावना प्रमुख थी (खासतौर पर महिला अग्नि दाह पीड़िता के मामलों में)।

इस शोध रिपोर्ट के बाद डॉ. तनु जैन ने ‘नेशनल प्रोग्राम फॉर प्रिवेंशन ऑफ बर्न्स इंजरीज’ पर एक प्रस्तुति दी, जिसके बाद मौजूदा मेडिकल केयर सेवाओं के तहत एकीकृत शारीरिक-सामाजिक सेवाओं की उपयुक्तता, कार्य क्षेत्र तथा संभावनाओं पर एक परिचर्चा की गई। उन्होंने देशभर में अग्नि दाह पुनर्वास सेवाओं की मजबूती के लिए बनी योजनाओं का उल्लेख किया।

इस परिचर्चा के तहत आगे महिला अग्नि दाह पीड़िताओं की मदद के लिए वर्तमान नीतिगत स्थितियों में मौजूदा संभावनाओं का विश्लेषण किया गया।

अंतिम सत्र एक घंटे का परिचर्चा सत्र रहा, जिसके तहत उन तरीकों की पहचान करने के सुझाव आमंत्रित किए गए जिनके द्वारा शारीरिक सामाजिक सहयोग सेवाओं को मौजूदा चिकित्सा देखभाल सेवाओं के साथ संयुक्त किया जा सके और इसमें विभिन्न भागीदारों की क्या भूमिका हो। प्रतिभागियों ने उन तरीकों की भी चर्चा की जिनके तहत एक अधिक समावेशी अग्नि दाह पंजीकरण (बर्न रजिस्ट्री) किया जाए ताकि यह महिला अग्नि दाह पीड़िताओं को शारीरिक सामाजिक सहायता सेवाएं प्रदान करने, और भारत की वर्तमान कानूनी व्यवस्था के तहत अग्नि-अग्नि दाह (बर्न) को सम्मिलित किए जाने में सहायक हो सके।

अधिक जानकारी के लिए, कृपया रूडी फेर्नान्देज़ को मेल या फ़ोन करें +91-9840340282

हमारा अनुसरण करें Twitter, Facebook, Flickr, Storify, Eventbrite, Blogs, Foursquare, Youtube, Instagram, Vine, Snapchat @UKinIndia, Periscope @UKinIndia

प्रकाशित 18 January 2017