ब्रिटेन एवं भारत- एक साथ एक अनिश्चित विश्व में
विवेकानंद इंटरनैशनल फाउंडेशन, नई दिल्ली में गुरुवार 30 अक्टूबर 2014 को ब्रिटिश रक्षा मंत्री फैलोन द्वारा दिए गए भाषण की लिखित प्रतिलिपी।

परिचय- प्रथम विश्व युद्ध
सबसे पहले विवेकानंद इंटरनैशनल फाउंडेशन तथा जेनरल विज को इस प्रभावशाली कार्यक्रम का आयोजन करने के लिए मेरा धन्यवाद।
प्रथम विश्व युद्ध की शताब्दी पर भारत आना मेरे लिए एक मार्मिक क्षण है। .
1914 के पतझड़ में ठीक आज से एक सौ साल पहले मेरे दादा कैप्टन हैरोल्ड स्पिंक मुम्बई से जहाज द्वारा मेसोपोटामिया गए थे।
उनके साथी सैनिकों ने, जो मुख्यतः इंडियन आर्मी से थे, इंडियन एक्सपेडिशनरी फोर्स डी का गठन किया था और वे मध्य पूर्व में पहले मित्र सेना में एक थे।
हम दोनों देशों के बीच साझा साहस की बस यह एक कहानी भर थी।
और भले ही भारतीय या ब्रिटिश को जो सौंपा गया, उन्होंने युद्ध किया, क्योंकि वे कुछ निश्चित मूल्यों में विश्वास रखते थे।
तो आज का दिन मेरे दादा जी और दोनों देशों के उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि देने का अवसर है, जिन्होंने अपना जीवन होम किया।
इस सुबह मुझे इंडिया गेट पर उन बहादुर भारतीयों की याद में पुष्पांजलि अर्पण करने का मौका मिला, जो प्रथम विश्व युद्ध में अपनी शहीद हुए थे।
उसके बाद मुझे आपके रक्षा मंत्री श्री जेटली के साथ एक स्वागत समारोह में भाग लेने की बेहद खुशी है, जिसे हमारे उच्चायुक्त ने युद्ध में भारत के अहम योगदान के सम्मान में आयोजित किया।
और मैं भारत सरकार, सशस्त्र सेनाओं और लोगों को हमारी सराहना के कुछ स्मृतिचिह्न भेंट करूंगा।
इनमें शामिल है- गौरवशाली इंडिया कोर्स की डिजिटाइज्ड वार डायरीज, जिन्होंने फ्रांस तथा फ्लैंडर्स में काफी विशिष्टता के साथ लड़ाई की, व्यक्तिगत मेमोरियल्स जो उस युद्ध में भारतीय सैनिकों को दिए छह विक्टोरिया क्रॉसेस की याद दिलाते हैं।
और इनमें से हरेक गतिविधि के पीछे एक ही उद्देश्य निहित है: यह दिखाना कि भारतीय नायकों द्वारा दी गई गहन सेवा को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।
ऐडेन से लेकर एशिया, और फिलिस्तीन से लेकर ईरान और ओमान की खाड़ी से लकर गैलीपोली तक के हर मोर्चे पर दस लाख से अधिक भारतीयों ने युद्ध में हिस्सा लिया था।
पूरी तरह से स्वैच्छिक सेवा देने के मद्देनजर उनका उत्साह तो और भी काबिलेतारीफ है। एक भी भारतीय जबरन भर्ती नहीं थे। उनमें शामिल थे नर्स और लेबर कोर्स जिन्होंने दुश्मन की बंदूकों के रेंज में अहम मदद प्रदान की थी।
इन महान व्यक्तियों के साहसी कारनामों की याद में हम अपने दोनों देशों के साझा ऐतिहासिक चित्रपट भी पेश करेंगे।
साझा पेशकश
किंतु भारत तथा यूके के पास केवल एक साझा सैन्य अतीत ही नहीं है। आज मैंने यहां बोलने के लिए आमंत्रण स्वीकार किया, इसका एक कारण था यह स्पष्ट होना कि वर्तमान में भी हमारे साझा सैन्य संबंध हैं।
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हमारे उद्योग साथ मिलकर अत्याधुनिक हाई-टेक उपकरण के लिए काम कर रहे हैं- जैसे कि हवा से हवा में मार करने वाली आश्रम मिसाइल्स।
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हमारे वैज्ञानिक नई-नई खोज कर रहे हैं, जो एक दिन रासायनिक तथा जैविक हमलों के प्रति हमारी प्रतिक्रिया को उन्नत बना सकता है।
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हमारे सैनिक यूएन शांति सेना में साथ मिलकर पूरी दुनिया में काम करते हैं।
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और हमारे सैन्य विशेषज्ञ कई मौकों पर- हाई लेवल विजिट से लेकर वार्षिक स्टाफ वार्ता और स्टाफ कॉलेज कोर्सेज पर तीनों क्षेत्रों में संयुक्त अभ्यास के लिए मिल रहे हैं।
भले ही हम यहां बात करें, इंडियन कॉलेज ऑफ डिफेंस मैनेजमेंट के 25 सदस्य हमारे मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस, ज्वाइंट फोर्सेज’ कमांड तथा हमारे डिफेंस इक्विपमेंट एंड सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन की पांच दिवसीय यात्रा पर अभी यूके में मौजूद हैं, ताकि हम एक दूसरे से सीख सकें। और मुझे यह पता है कि वे काफी सकारात्मक प्रभाव छोड़ हैं।
ब्रिटिश और भारतीय सेनाओं में हम इतनी निकटता के साथ इतने अच्छे तरह से काम कर रहे हैं, उसकी वजह है कि हम कई सारे समान मूल्यों को साझा करते हैं।
और इन सभी के केंद्र में प्रजातंत्र में साझा विश्वास और अपने प्रजातांत्रिक विरासत को लेकर गौरवान्वित एक ब्रिटिश राजनेता की हैसियत से मैं दुनिया में भारत के सबसे बड़े प्रजातंत्र की हैसियत की सराहना करता हूं और ईर्ष्या के साथ देखता हूं, जो एक ऐसा देश है जिसमें ईयू से कहीं अधिक प्रांत हैं और कई सारी भाषाएं हैं, जो आधुनिक विश्व का एक आश्चर्य है।
और यह दुनिया 20वीं शदाब्दी से काफी अलग है।
आज हम युरोप से दूर सत्ता, संसाधनों और शक्ति का पुनरसंतुलन देख रहे हैं, क्योंकि भारत जैसे देश उत्थान करते जा रहे हैं।
चूंकि वैश्विक विकास से अरबों लोग निर्धनता से बाहर निकले हैं, इसलिए हमें एक अभूतपूर्व पैमाने पर सफल विकास दिखाई पड़ रहा है।
हम लोकतंत्र और बाजार देख रहे हैं- खरीदने का अधिकार, व्यापार करने का अधिकार, अर्जन करने का अधिकार- स्वयं को सर्वाधिकारवाद तथा सत्ता नियंत्र के ऊपर समृद्धता तथा सफलता के मार्ग के रूप में साबित कर रहे हैं।
खतरे में पड़े मूल्य
फिर भी हम ज्योंही भविष्य को देखते हैं हम अपने विश्व को अधिक अनिश्चित और अप्रत्याशित होता देख रहे हैं।
हमें कई सारे राष्ट्र दिखाई पड़ रहे हैं, जो विफल हो रहे हैं या विफल होने की कगार पर हैं।
और इसके विपरीत अधिक से अधिक खतरे दिखाई पड़ रहे हैं जो सीमाओं को लांघ रहे हैं या उन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं, वे पूर्व में स्वीकार्य अधिकारक्षेत्रों या संप्रभुताओं से परे हैं।
- परमाणु, रासायनिक तथा जैविक तकनीकियों का प्रसार, गलत हाथों में पड़ने से उनमें से अधिक खतरनाक हैं।
- वायरस बीमारी जैसे कि ईबोला का प्रसार।
- वैश्विक संसाधनों पर दबाव।
- गैर-राष्ट्रीय कारकों का उदय जो वैश्विक आतंक फैलाते हैं, जैसे कि आइएसआइएल।
हमें पता है हम ऐसे खतरों को नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं उठा सकते।
क्यों? क्योंकि वे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं।
क्योंकि वे क्षेत्रीय अस्थिरता पैदा करते हैं जो हमारी समृद्धि को जोखिम में डालते हैं।
और क्योंकि वे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के संसाधनों को उनसे निपटने की चुनौती देते हैं।
और ब्रिटेन तथा भारत दोनों के पास इन खतरों के पीड़ादायक अनुभव हैं।
लंदन में वर्ष 2005 में 7/7 की हिंसात्मक घटना से लेकर 2008 में मुम्बई में हुए नृशंस आतंकी हमले।
आतंकवाद का वैश्विक अभिशाप हमारे शहरों तथा लोगों को डस रहा है।
उनका मुकाबला साथ मिलकर करना होगा, जैसा कि अफगानिस्तान में उनका मुकाबला किया गया।
अत्यंत मजबूत अंतर्राष्ट्रीय सैन्य सहयोग के बिना हमें तालिबान से निपटने में मदद नहीं मिलती।
बिना पूर्व के एक व्यापक कूटनीतिक सहयोग के हम एक सैन्य गठबंधन नहीं कर सकते थे।
पिछले दशक में अफगानिस्तान के इंफ्रास्ट्रक्चर के पुनर्निर्माण में मदद करने के लिए, निर्वाचन प्रक्रिया में भारत के योगदान के बिना हम मजबूत अफगानिस्तान बनाने में उतनी प्रगति नहीं कर पाते, जितनी की हमने की है, जिसने उस देश में स्थिर अर्थव्यवस्था की स्थापना में एक बड़ी भूमिका निभाने वाले भारतीय निवेश के जरिए देश के इतिहास में पहला लोकतांत्रिक संक्रमण को देखा।
अवसर
इसलिए साथ मिलकर काम करना एक विकल्प नहीं है- बल्कि यह एक जरूरत है।
बल्कि यह हमें एक वास्तविक अवसर भी प्रदान करता है।
भारत की नई सरकार ने सहयोग को उच्च प्राथमिकता दी है।
यह इसके नए, उदार तथा व्यापक नजरिए को ही दर्शाता है कि प्रधान मंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में सभी दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन वाले नेताओं को उपस्थित होने का न्योता दिया गया। भारत के बाहर उनका पहला द्विपक्षीय दौरा भूटान तथा नेपाल रहा और मैं जानता हूं कि विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने भी अफगानिस्तान, बंगलादेश तथा अन्य पड़ोसी देशों की यात्रा की है।
पर मैं जानता हूं भारत उन प्रमुख वैश्विक प्लेयरों के साथ सहयोग करने का इच्छुक है, जो इसे परिवर्तन करने और साथ ही हमें भी यूएस, चीन तथा जापान को रूपांतरित करने में मदद कर सकता है।
यदि आप भविष्य की ओर देखते हैं, मुझे आशा है कि भारत आगे भी यूके को अपने अहम मित्रों में मानता रहेगा- आखिर ऐसा करने के कई कारण भी हैं। इस दोपहर मैं आपके सामने तीन वजह रखूंगा।
साझा क्षेत्रीय हित
सबसे पहला, क्योंकि हम दोनों देश इस क्षेत्र में स्थायित्व लाने में विश्वास रखते हैं।
आइएसआइएल की समस्या न केवल सीरिया के लोगों के लिए, न केवल इराक और वहां के व्यापक क्षेत्र के लिए खतरा पैदा करती है, बल्कि वे जहां भी मौजूद हैं वहां हमारे सभी देशों के नागरिकों के लिए भी खतरा पैदा कर रही है, क्योंकि हम ब्रिटिश बंधकों की नृशंस हत्या देख चुके हैं और हम उन सभी के प्रति खतरे को भांप रहे हैं, जिन्होंने इसके बर्बर हमले का विरोध किया है।
और इस खतरे से निपटने में सहयोग सर्वोपरि है।
हम प्रयासों के अग्र मोर्चे पर रहे हैं- इस क्षेत्र तथा बाहर अपने घटकों तथा सहयोगियों के साथ- न केवल आतंकियों को सैन्य रूप से निशाना बनाने के लिए, बल्कि उग्र विचारधारा वालों को रोकने के लिए तथा विदेशी लड़ाकों के प्रवाह तथा उनकी वित्तीय आपूर्तियों को अवरुद्ध करने के लिए भी। हम इस कार्य को कितना महत्व दे रहे हैं, उसे चित्रित करूं तो मैंने कल अबूधाबी में क्राउन प्रिंस मोहम्मद के साथ इन विषयों पर लंबी चर्चा की।
आज का दोपहर मैं सलाह दूंगा कि आइएसआइएल तथा उग्र विचारधारा वालों से निपटने में भारत का भी हित जुड़ा है और ब्रिटेन इसे खत्म करने के लिए भारत के साथ गहन सहयोग देने के लिए तैयार है।
अब आपकी सीमाओं के समीप की स्थिति की तरफ आता हूं, कुछ दिन पूर्व ब्रिटिश टुकड़ियों ने अफगानिस्तान में हमारे युद्धक कार्यों की समाप्ति की।
पर भले ही हमारे सैनिक वहां से छोड़कर वापस जा रहे हैं, पर यूके झुका नहीं है।
उस देश के प्रति हमारी प्रतिबद्धता चिरस्थाई है।
हम संपूर्ण 2015/16 में अफगान सैनिकों को प्रशिक्षण देकर अफगान नेशनल आर्मी को मजबूत बनाने के लिए कार्य करते रहेंगे।
हम आने वाले वर्षों में उल्लेखनीय विकास सहायता के जरिए अफगान अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में मदद देंगे।
और हम राजनैतिक, कूटनीतिक तथा तकनीकी सहायता के जरिए मजबूत अफगानी संस्थानों के निर्माण में मदद देंगे।
शांति का प्रयास
दूसरा सिद्धांत जो भारत तथा यूके की अहम मित्रता को रेखांकित करता है, वह है शांति को बढ़ावा देने और अंतर्राष्ट्रीय कानून में विधि-आधारित प्रणाली बहाल करने की हमारी साझी प्रतिबद्धता।
पिछले वर्ष हमने उस चीज की वापसी देखी जो हम मानते थे कि मृत और दफ्न हो चुकी है: युरोप में युद्ध, वह महादेश जिसके लिए प्रथम विश्व युद्ध को सभी युद्ध की समाप्ति के रूप में माना गया। रूस की यूक्रेन में कार्यवाही से युरोप तथा उसके बाहर अस्थिरता पर खतरा पैदा हुआ। साथ ही इससे एक खतरनाक दृष्टांत पैदा हुआ।
संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, कानून का सम्मान तथा हरेक राष्ट्र के लोगों का अपने भविष्य के प्रजातांत्रिक रूप से निर्धारण का अधिकार- ये ऐसे सिद्धांत है जिन्हें भारत तथा यूके दोनों ही उच्च प्राथमिकता देते हैं। हम सभी को सीमाओं की सुरक्षा तथा अपने भविष्य के निर्धारण हेतु यूक्रेन के अधिकार को बढ़ावा देना चाहिए।
और हाल के वर्षों में भी हमने सागरों में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री डकैती में वृद्धि देखी तथा संकरे चोक प्वाइंटों पर खतरे पैदा होते देखा, जहां हमारे व्यापार चलते हैं। हम अपनी वैश्विक शांति में स्थिरता लाने और उसे बनाए रखने में फिर से भारत के निरंतर मदद का स्वागत करते हैं।
समृद्धि का प्रसार
तीसरा कारण है बढ़ती समृद्धि में हमारा साझा हित- बेशक हमारे अपने देश में, बल्कि उन क्षेत्रों में भी जो हमारे लिए काफी मायने रखते हैं।
मोदी सरकार आर्थिक विकास पर जितना बल दे रही है, मैं उसका सम्मान करता हूं। जैसा कि आप जानेंगे हमारी अपनी सरकार ने यूके को मंदी के दौर से बाहर खींच कर निकाला है और दुनिया की एक अग्रणी अर्थव्यवस्था बनने के लिए हमारे ऊपर दबाव बनाया।
इस समान नजरिए के साथ समृद्धि का प्रसार ऐसी चीज है जिसपर भारत तथा यूके काम कर सकते हैं और उन्हें साथ मिलकर काम करना भी चाहिए।
और हमारे अपने रक्षा क्षेत्र की बात करें तो ऐसा करने की बड़ी संभावना है।
आप दुनिया के सबसे बड़े रक्षा उपकरण के आयातक हैं।
हम दुनिया भर में रक्षा क्षेत्र के सबसे बड़े निवेशक हैं।
आप रक्षा सुधार, परिवर्तन तथा दक्षता के मुद्दों में दिलचस्पी रखते हैं।
यह एक प्रक्रिया है जिसे हमने हाल ही में अपनाया है।
यह आसान नहीं था। हमने अपने रक्षा बजट पर पीड़ादायक निर्णय लिया।
बल्कि ऐसा करने से हम अपने हिसाब को संतुलित करने में सक्षम हुए, बल्कि अभी भी हम युरोप में सबसे बड़े तथा यूएस के बाद नाटो में दूसरे सबसे बड़े रक्षा बजट को बनाए रखा है और 10 वर्षों में £160 बिलियन उपकरण प्लान का लक्ष्य रखा है:
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इसी के मद्देनजर सभी तीन क्षेत्रों में अत्याधुनिक पीढ़ी के हार्डवेयर आते दिख रहे हैं। उदाहरण के तौर पर हमने हाल ही में नेवी के फ्लैगशिप क्वीन एलिजाबेथ पोत को पानी में उतारा है।
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यह यूके में निर्मित सबसे बड़ा, सर्वाधिक शक्तिशाली जहाज होगा और जल्द ही इसके साथ दूसरा परिचालनात्मक पोत भी आ जुड़ेगा- जिसे अभी स्कॉटलैंट में असैम्बल किया जा रह अहै। तो हम अपने नेवी के साथ कदम मिलाकर चलने का प्रयास कर रहे हैं।
यूके में हमें सिविल सर्विस तथा सैन्य स्तरों पर अपने अच्छे, बुरे और भद्दे अनुभवों को साझा करने में प्रसन्नता होगी।
अंत में जैसा कि आप भारतीय बाजारों में निवेशकों और निवेश करने के स्थानों की तलाश में हैं, तो मानिए हम आपके स्वाभाविक मित्र हैं।
पिछले वर्षों में यूके/भारत का व्यापार 2009 में £11 बिलियन से बढ़कर 2013 में £16 बिलियन तक जा पहुंचा।
हम भारत में सबसे बड़े जी20 निवेशक हैं।
वर्ष 2000 से ब्रिटिश कंपनियों ने भारत में $20.7 बिलियन का निवेश किया और पिछले वर्ष जापान और यूएस को मिलाकर उससे भी अधिक का निवेश किया।
और भारतीय कंपनियां शेष युरोपियन यूनियन से कहीं अधिक अकेले यूके में निवेश करती हैं।
भारत एक अच्छा बल
ये साझा मूल्य भारत तथा यूके को कहां छोड़ते हैं, क्योंकि आपकी नई सरकार ने अपनी महत्वाकांक्षाएं रखी हैं आने वाले 5 वर्षों के लिए अपनी योजना तैयार की हैं?
जैसा कि मुझे उम्मीद है, यूके मानता है भारत दुनिया में एक अच्छाई वाला बल है।
इसकी जो हैसियत है- यानी दुनिया का सबसे बड़ा प्रजातंत्र होना- भारत उन मूल्यों को बढ़ावा देता है जो दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में मदद करते हैं।
भारत की यही स्थिरता इस उथल-पुथल वाले क्षेत्र में अधिक स्थिरता की संभावना को बढ़ावा देता है।
भारत की बढ़ती हुई समृद्धि बाहर की ओर फैल रही है और अपने लोगों के साथ अपने पड़ोसियों की भी मदद कर रही है।
दुनिया के लगभग सभी देशों के साथ भारत के अच्छे रिश्ते उन देशों के बीच समझ में बढ़ावा देता है, जो अंतर्राष्ट्रीय मामलों में विपरीत किनारे पर खड़े हैं।
और यूएन पीसकीपिंग में भारत का गहन योगदान- जहां लगभग 8000 सैनिक हैं- दुनिया भर में संघर्ष रोकने, दीर्घकालिक शांति की स्थापना तथा मानवीय संकटों से निपटने में एक अहम भूमिका निभा रहा है।
यही कारण है कि युनाइटेड किंगडम सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सदस्य बनने के भारत के प्रयास का समर्थ करता है और विश्व मामलों में अधिक व्यापक रूप से हम भारत की भूमिका को भी समर्थन देते हैं।
न केवल इसलिए नहीं कि हम भारत के मित्र हैं, बल्कि इसलिए कि इसका हमें गर्व अनुभव होता है।
चूंकि विश्व मंच पर भारत की जितनी अधिक गतिविधि होगी संपूर्ण विश्व के लिए वह उतना की अच्छा होगा।
हमारे सहयोग के अगले चरण का निर्माण
भारत को खासकर यूके के साथ क्यों सहयोग करना चाहिए? भारत का इसमें क्या हित है?
चूंकि आपकी नई सरकार अपने सामने आने वाली कई चुनौतियों को सर्वोत्तम तरीके से निपटने के लिए विचार कर रही है, मुझे उम्मीद है वे हमेशा एक चीज अपने दिमाग में स्पष्ट रूप से रखेंगे। जैसा कि यहां मेरे दादा जी के समय से हो रहा है, हमारे देश के साझा मूल्य जो भारत तथा यूके को स्वाभाविक सहयोगी बनाते हैं। यही कारण है कि हम वह सब करेंगे जो हम प्रधानमंत्री श्री मोदी तथा उनकी सरकार को उनके लक्ष्यों को हासिल करने में मदद देने के लिए कर सकते हैं
मुझे पता है कि आर्थिक मामलों में आपके प्रधानमंत्री मानते हैं कि आरंभिक एफडीआइ का अर्थ न केवल फॉरेन डाइरेक्ट इंवेस्टमेंट होना चाहिए, बल्कि यह “फर्स्ट डेवलप इंडिया” भी होना चाहिए। मैं मानता हूं कि इसी सिद्धांत को रक्षा क्षेत्र में भी लागू किया जाना चाहिए।
और मुझे लगता है कि यूके इसमें अहम योगदान देने के काबिल है।
पहला उदाहरण, हम सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के तौर पर तथा एक प्रमुख नाटो सदस्य के रूप में अच्छे उद्देश्यों के लिए इसके प्रभाव का आगे भी इस्तेमाल करेंगे।
हाल ही में वेल्स में आयोजित नाटो शिखर सम्मेलन में हमने सभी नाटो सदस्यों द्वारा तीव्र तथा दक्ष त्वरित प्रतिक्रिया बल जैसे संगठन की नियुक्ति का फैसला लेने में मदद की, जैसा कि हमने अफगानिस्तान में देखा।
हमने थाइलैंड बर्मा तथा वियतनाम में अपने दूतावासों में नए रक्षा प्रभाग खोलने की भी अपनी इच्छा जताई है।
और भारत की तरह ही यूके भी दुनिया भर के अन्य सुरक्षा सहययोगियों, जैसे कि जापान तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ तेजी से काम कर रहा है।
यह महत्वपूर्ण है कि यूके की दुनिया में सबसे बड़ी कूटनीतिक मौजूदगी है।
और हमारा सबसे बड़ा कूटनीतिक पदचिह्न कहां है? मुझे यह कहने में खुशी होती है कि यह भारत है।
हमारे ग्लोबल प्रभाव को हमारी सैन्य शक्ति से जाना जाता है। हम उन कुछ देशों में एक हैं, जो दुनिया भर में कहीं भी आत्म-निर्भर, सुसज्जित ब्रिगेड आकार के फोर्स उतार सकते हैं और उसे अनिश्चित काल तक सुसज्जित बनाए रख सकते हैं। और हमारा रक्षा सुधार हमारे आर्म्ड फोर्सेज को अधिक गतिशील तथा और अधिक सुसज्जित बनने में सक्षम बनाएगा।
और हम उन कुछ देशों में एक हैं जो वही करना पसंद करते हैं, जो वे कहते हैं- इस क्षेत्र में क्रॉस-गवर्नमेंट प्रतिक्रिया के एक अंग के रूप में मदद की मांग आने पर त्वरित तैनाती वाले पूर्व तैयार सैन्य साजोबाज प्रदान करना।
इसका सबसे हालिया उदाहारण है मांगे जाने के 10 दिनों के भीतर सियेरा लियोन में ईबोला से मुकाबला करने के लिए एक जहाज, हेलीकॉप्टर तथा 750 कर्मचारियों को भेजना।
चाहे इसमें फिलीपिंस में आए तूफान हियान के समय मानवीय सहायता प्रदान करना, अथवा आपदा राहत कार्य आरंभ करना, या गायब हुए मलेशियाई विमान (MH370) की खोज के लिए साउथ ईस्ट ऑस्ट्रेलियन तट पर अपनी पनडुब्बी भेजना शामिल हो सकता है। मुख्य बिंदु है- ब्रिटेन भारत को जो भी प्रस्तुत करता है, भारत के साथ रहने के लिए हम बेहतर हैं।
निष्कर्ष
इन विचारों से एक निष्कर्ष निकालें तो हम चाहते हैं कि हमारी मित्रता अधिक से अधिक मजबूत हो।
एक सदी पहले हमारे दोनों देश दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए साथ मिलकर खड़े हुए थे।
वह सहयोग आज भी उतना ही मजबूत है।
और हमारे पास कभी साथ मिलकर काम करने के लिए कोई बेहतर समय नहीं रहा है।
हम दोनों ही ऐसे देश हैं, जिन्होंने हाल ही में अपने कदमों में एक लचक देखा है।
हम दोनों ही देश अपने उठान पर हैं।
हम दोनों ही देशों को विश्व मंच पर खड़े होने का आत्मविश्वास है और चाहे अफगानिस्तान में धन के जरिए मदद करना, चाहे हमारी इंटेलिजेंस और सेना से आतंकवादियों पर कड़ी कार्यवाही करना, अथवा दुनिया भर के देशों में क्षमता निर्माण तथा अहम मानवीय सहायता प्रदान करना, हम वास्तविक प्रभाव डालने में सक्षम हैं।
हमारा सहयोग सोने से तौलने लायक है।
और यदि हम शांति और समृद्धि के इन जुड़वें लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए साथ मिलकर काम करना जारी रखें तो हम हरसंभव सर्वाधिक मजबूत संदेश देंगे।
वे सभी जो चीजों के विनाश में दिलचस्पी रखते हैं, तो मैं बता दूं हम दोनों ही देश अपने मूल्यों तथा अपनी सुरक्षा व अपने लोगों की रक्षा के लिए मुकाबला करने के लिए तैयार हैं, जैसा कि हमने वर्ष 1914 में किया था।
मैंने अपने दादा जी का जिक्र करने हुए शुरुआत की थी। हम उनकी आज की पीढ़ी को सलाम करते हैं। आज हम जिस भविष्य का निर्माण कर रहे हैं वह हमारे बच्चों के लिए है। वह भविष्य भारत के लिए, ब्रिटेन के लिए काफी उज्ज्वल है। आइए हम साथ मिलकर इसे संवारने का संकल्प लें।