भाषण

जलवायु परिवर्तन से निबटने और आर्थिक संवृद्धि के बीच कोई विरोधाभास नहीं

बृहस्पतिवार, 24 जुलाई, 2014 को भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद में ऊर्जा तथा जलवायु परिवर्तन के ब्रिटिश कैबिनेट मंत्री एडवर्ड डेवी के भाषण की अनूदित प्रतिलिपि।

यह 2010 to 2015 Conservative and Liberal Democrat coalition government के तहत प्रकाशित किया गया था
The Rt Hon Edward Davey MP

मैं यहां भारत और गुजरात के अपने प्रथम दौरे के अवसर पर प्रसन्नता का अनुभव करता हूं।

मैं यह कहते हुए अपनी बात आरंभ नहीं कर सकता कि, न केवल इंगलैंड में वर्तमान टेस्ट मैच सिरीज को छोड़कर आने के इस अवसर पर ही, बल्कि कई वर्षों से मुझे आपके इस महान देश, और इस महान राज्य की यात्रा पर आने की कितनी ज्यादा इच्छा रही है।

आपके देश ने कई वर्षों से मुझे कई तरीकों से प्रभावित किया है। जब मैं नॉटिंघम में बड़ा हो रहा था, मेरे पड़ोसी- मल्होत्रा परिवार- जो मेरे और मेरे भाई के प्रति इतने करुणापूर्ण रहे, जब हमने अपनी मां को खोया था, और जिन्होंने हमें कढ़ी से परिचित कराया, जो मेरे लिए बिल्कुल नया स्वाद था; से लेकर मेरे चचेरे भाई पीटर लॉटन तक; जो आपके देश को इतना चाहते हैं कि उन्होंने अपनी बेटी का नाम इंडिया रखा है और रणथंभौर टाइगर अभयारण्य को स्थापित करने में सहायता प्रदान की। अब, मैं आपको बस इतना बताना चाहता हूं कि भारत और ब्रिटेन के बीच के ये अनुराग और संबंध व्यक्तिगत हैं, केवल राजनैतिक नहीं।

लेकिन ठीक उसी प्रकार राजनैतिक संबंध भी हैं। गुजरात ब्रिटेन के लिए राजनैतिक महत्व का विषय है। क्योंकि वस्तुतः, ब्रिटेन गुजराती मूल के 600,000 नागरिकों का घर है। महत्वपूर्ण रूप से, मेरे निवार्चन क्षेत्र में मेरे कई मतदाता हैं जो स्वयं को ब्रिटिश गुजराती मानते हैं। और अगर आपके कोई मित्र या संबंधी दक्षिणी पश्चिमी लंदन के किंगस्टन या सर्बिटन में रहते हैं, तो हमारा चुनाव अगले मई में आयोजित है; आप जानते हैं कि आपको उन्हें क्या कहना है।

किंतु अब गंभीरतापूर्वक कहें तो, ब्रिटेन और गुजरात के आर्थिक रूप से गहन संबंध हैं। गुजराती लोग आर्थिक संवृद्धि के वाहक हैं। इतने अधिक अनगिनत क्षेत्रों में आपकी उद्यमिता और विशेषज्ञता है- और ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में गुजरातियों की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। सचमुच, सर्वोपरि रूप से, गुजरात ब्रिटेन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि गुजरात भारत के लिए महत्वपूर्ण है। गुजरात संपूर्ण भारत के लिए संवृद्धि और सौभाग्य, शिक्षा तथा संस्कृति का वाहक है। और आप निश्चित ही गौरवान्वित होंगे कि दिल्ली की नई सरकार घोषित तौर पर विकास के “गुजराती मॉडल” को अपना रही है।

आपमें से जो मार्केटिंग का अध्ययन कर रहे होंगे, जानते होंगे कि गुजरात अब उचित रूप से यह संदेश दुनिया को भेज रहा है।

वाइब्रेंट गुजरात निवेश को आकर्षित करने का पर्यायशब्द बन गया है: यह राज्य की सफलता का एक सशक्त प्रतीक है। ब्रिटेन 2013 के कार्यक्रम में सहभागी देश बनने से हर्षित था, और हम भविष्य में पुनः 2015 में वाइब्रेंट गुजरात में भागीदारी की आशा करते हैं।

और चूंकि गुजरात हमारे लिए महत्वपूर्ण है, मुझे प्रसन्नता है कि ब्रिटेन द्वारा यहां अहमदाबाद में एक उप-उच्चायोग प्रारंभ करने के समझौते के साथ हमारे संबंध और सुदृढ़ होने जा रहे हैं।

यहां एक उप उच्चायोग के होने से ब्रिटेन और गुजरात के बीच संबंधों को और गहन तथा विस्तृत बनाने में मदद मिलेगी।

इससे हमें उन्नतिशील व्यावसायिक संबंधों के निर्माण में मदद मिलेगी जो यहां और ब्रिटेन में संवृद्धि के वाहक होंगे।

यह हमें व्यक्ति से व्यक्ति के बीच एक मजबूत संबंध स्थापित में सक्षम बनाएगा जिससे हमारे समुदायों को समृद्धि प्राप्त होती है। भारत-ब्रिटेन के हमारे दृष्टिकोण के लिए, ब्रिटेन-गुजरात का संबंध केवल इस श्रृंखला का एकल अवधि का कार्यसंपादन मात्र नहीं, अपितु महत्वपूर्ण रूप से संभावित एक परियोजना है। यह दृष्टिकोण बेहद सशक्त है- यह चिरस्थायी संबंधों, परिवारों, मित्रों तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के साथ-साथ विकसित होने से जुड़ा है।

और ब्रिटेन के जलवायु परिवर्तन मंत्री के रूप में मेरे लिए, यहां चल रहे कार्यों को देखना सुखद है। विश्व निम्न कार्बन, ऊर्जा कुशलता तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में आधुनिकतम विकास करने में लगा है। भविष्य की नई प्रौद्योगिकियों के विकास की आधुनिकतम अवस्था प्राप्त करने में आईआईएम अहमदाबाद की ख्याति फैल रही है। और बीपी द्वारा समर्थन प्राप्त, प्रभावशाली आईएनएफयूएसई सहयोग के साथ आपके काम के बारे में जानकर अच्छा लगा।

इसलिए, मेरे लिए यहां उपस्थित होना सचमुच हर्ष का विषय है। किंतु मैं यहां आज एक गंभीर मुद्दे पर बात करने के लिए उपस्थित हुआ हूं- कि किस तरह जलवायु परिवर्तन के मामलों पर नियंत्रण किया जाए। और एक मिथक को तोड़ने के प्रयास के तौर पर- यह मिथक कि जलवायु परिवर्तन से निबटने के प्रयास आर्थिक संवृद्धि के लिए हानिकारक होगा।

मैं यहां इस विषय पर बात करने जा रहा हूं कि क्यों बदलती हुई अर्थव्यवस्थाएं जलवायु परिवर्तन पर लागत वहन को विकास के संवाहक के रूप में परिणत कर अपनी कार्रवाई की दिशा बदल रही हैं। क्यों भारत की नवीकरणीय ऊर्जा तथा ऊर्जा दक्षता पर कारगर कार्रवाई इतनी महत्वपूर्ण है। और क्यों अगले वर्ष होने वाला वैश्विक जलवायु समझौता हम सब के लिए महत्वपूर्ण है।

जलवायु परिवर्तन से निबटना महत्वपूर्ण क्यों

मित्रों, जलवायु परिवर्तन हमारे दौर की निर्धारित चुनौतियों में से एक है। और आज के लिए आपको मेरा स्पष्ट संदेश है कि: कोई भी व्यक्ति जलवायु परिवर्तन को समझे बिना प्रबंधन या व्यवसाय का अध्ययन नहीं कर सकता। ऐसा स्पष्ट और कड़क वक्तव्य क्यों?

विज्ञान तो प्रमाणित है। अब जलवायु परिवर्तन एक वास्तविकता है। वास्तव में, हमारी अर्थव्यवस्थाओं तथा समाजों को जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरे बढ़ रहे हैं। इसके प्रमाण वे परिणाम हैं जो हमारे आसपास बदलते जलवायु प्रारूपों में घटित होते हैं। बाढ़ और सूखा- चरम मौसमी स्थितियां हैं- और साथ ही मरुस्थलीकरण, समुद्रतल का ऊंचा उठना भी।

आज ही मैंने कुछ वरिष्ठ सरकारी पदाधिकारियों से बातचीत की है जो इस बात से चिंतित हैं कि संभवतया जलवायु परिवर्तन यहां के मानसून- प्रारूप को बदल रहा है।

यह संचयी वैज्ञानिक साक्ष्य अग्रणी कार्रवाई की आवश्यकता पर बल देता है। ब्रिटेन में, भारत में, तथा दुनिया भर में, हमें उन निश्चित खतरों का सामना करना है जिन्होंने जलवायु परिवर्तन को और बिगाड़ दिया है और इनके विनाशकारी प्रभाव तेजी से बढ़ रहे हैं। यदि हमने कार्रवायी न की तो हमारे समाजों तथा अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह प्रभाव विनाशकारी होगा। वाणिज्य तथा निवेश के लिए भी यह विनाशकारी होगा।

हम इंतजार नहीं कर सकते।

अमेरिका में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट जिसे ‘रिस्की बिजिनेस’ कहा गया है इसे बिल्कुल स्पष्ट करता है।

बतौर राजनेता मेरे लिए भी यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाही आसान नहीं होगा- वैसे, किसी भी परिवर्तन पर काम करना आसान नहीं होता।

तो, इस परिवर्तन के लिए राजनेताओं को संपूर्ण समाज से सहयोग लेना होगा। हमें यह दिखाना होगा कि जलवायु परिवर्तन पर कार्यवाही से रोजगार और विकास उतनी ही प्रबलता से हासिल होते हैं जितना कि आर्थिक विकास के पुराने मॉडल से, बल्कि उससे अधिक ही।

और इसी बारे में मैं आज आपसे चर्चा करना चाहता हूं।

हम इस धारणा को बदल देना चाहते हैं कि हमें या भारत को पर्यावरण अथवा संवृद्धि व विकास में से किसी एक को ही चुनना है।

यह एक गलत विकल्प है। हमें दोनों चाहिए। और हम दोनों की ही प्राप्ति कर सकते हैं।

यह शहर - अहमदाबाद - हमें राह दिखाता है।

यह एक औद्योगिक व्यवसाय केन्द्र है। भारत का एक सबसे तेज गति से विकास करने वाला महानगर है।

और 2005 में तीसरा सर्वाधिक जनसंख्या वाला शहर- यह महानगर अब धारणीय परिवहन, शहरी नियोजन और अपशिष्ट प्रबंधन के लिए पर्यावरण पुरस्कार हासिल कर रहा है।

क्या प्रदूषण में कमी और नवीकरणीय ऊर्जा में इजाफा होने से अहमदाबाद को नुकसान हुआ है?

बिल्कुल नहीं। पिछले कुछ बरसों से जीडीपी प्रतिवर्ष 10% से अधिक की दर से बढ़ी है- जो हरित विकास का एक अविश्वसनीय ट्रैक रिकॉर्ड है।

ब्रिटेन और वैश्विक प्रयास

इसी तरह, ब्रिटेन में हम हरित विकास की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि उस दर से नहीं जिस दर से आप बढ़ रहे हो!

ब्रिटेन में हम 2050 तक हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को 80% तक कम करने की राह पर अग्रसर हैं।

इस सप्ताह मैंने हाउस ऑफ कॉमंस को हमारे चौथे कार्बन बजट के बारे में आश्वस्त किया है जो हमारे कार्बन उत्सर्जन को 2023 और 2027 के बीच नियंत्रित करेगा। इस बजट के बाद 1990 की तुलना में कार्बन स्तर 50% नीचे होगा जो कि ब्रिटिश सरकार की वैधानिक प्रतिबद्धता है।

ये जलवायु लक्ष्य और कार्बन बजट हमारे 2008 क्लाइमेट चेंज एक्ट से निकले हैं – दुनिया का पहला जलवायु कानून है जो अगल चार दशकों में आवश्यक अंतर्पीढ़ीय प्रयास के लिए वैधानिक आधार प्रदान करता है।

यह कानून हमारे व्यावसायिक समुदाय और हमारे निवेशकों को भी एक स्पष्ट संकेत देता है।

हम विकार्बनीकृत होंगे। और उन संकेतों को निर्धारित कर हम अपनी लागत में कमी लाएंगे और अभिनव प्रयासों एवं तकनीक के क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ेंगे।

वास्तव में, ब्रिटेन की वजह से सारा यूरोप ऊंचा मापदंड अपनाने के लिए बाध्य हो रहा है। हम ईयू को इस बात के लिए राजी कर रहे हैं कि 2030 तक 1990 की उत्सर्जन स्तर की तुलना में 40% की कमी लाई जाए और इसे बढ़ाकर 50% तक किया जाए- यदि अगले साल जलवायु परिवर्तन पर महत्वाकांक्षी वैश्विक समझौता हो जाता है तो।

यूरोप में, मैंने मंत्रियों का एक समूह गठित किया है जिसका नाम ग्रीन ग्रोथ ग्रुप है जिसमें जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन सहित 15 देशों के मंत्री शामिल है। हम सभी विकास-हितैषी जलवायु नीति पर काम कर रहे हैं।

निम्न लागत, निम्न कार्बन-संवृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए यूरोप ने अब कुछ अत्याधुनिक आर्थिक साधन विकसित किए हैं जिसमें उत्पाद मानकों से लेकर चयन और व्यापार तक, CO2 के लक्ष्यों से लेकर नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों तक।

लेकिन हरित विकास अपनाने वाला यूरोप अकेला नहीं है।

स्वच्छ ऊर्जा में वैश्विक निवेश में 2004 से आज लगभग छहगुनी वृद्धि हुई है सालाना लगभग 195 अरब यूरो।

2011 से 2015 के बीच चीन का निवेश उसके अपनी हरित अर्थव्यवस्था में 12 खरब (1.2 ट्रिलियन) डॉलर से अधिक होगा।

और अमेरिका: स्वच्छ ऊर्जा में यूएस रिकॉर्ड निवेश कर रहा है और अभी हाल में यह निम्न कार्बन ऊर्जा शोध और विकास में दुनिया का सबसे बड़ा निवेशक बन गया है।

धरती के लिए यह सचमुच प्रेरणादायी है। और यह सुझाव दिया जाता है कि दुनिया के दो सबसे बड़े प्रदूषक चीन और अमेरिका की निम्न कार्बन-भविष्य में बड़ी भागीदारी होगी।

इसलिए मेरा आपसे आग्रह है: हममें से कोई भी वैश्विक निम्न-कार्बन क्रांति में पीछे नहीं रह सकता क्योंकि भविष्य निम्न कार्बन का है। आधुनिक आर्थिक नीतियां अनिवार्य रूप से धारणीय आर्थिक नीतियां होनी चाहिए।

निम्न कार्बन क्रांति भारत के लिए लाभकारी होगी

और यही बात इस महान देश के लिए भी सत्य है।

मेरे मन में इस बात को लेकर कोई संदेश नहीं कि भारत वैश्विक जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निबटने के महती प्रयास का एक महत्वपूर्ण अंग है और इसमें सक्रिय भूमिका निभाकर यह खुद लाभान्वित होगा।

भारत, जो पहले से ही ऊर्जा की भारी कमी से जूझ रहा है, अगले 25 वर्षों में इसकी ऊर्जा की मांग दुगुनी हो जाएगी।

यह परेशान करने वाली बात है! इतनी ऊर्जा कहां से आएगी?

भारत अभी अपनी तेल की आवश्यकता का 80%, गैस का 20% और कोयले का भी 20% आयात करता है।

भारत का वार्षिक ऊर्जा आयात बिल लगभग 120 अरब डॉलर है। और गोल्डमैन सैच्स (Goldman Sachs) के अनुसार 2023 तक बढ़कर इसके 230 अरब डॉलर हो जाने की उम्मीद है।

इससे ऊर्जा सुरक्षा के समक्ष विशाल चुनौतियां उत्पन्न होती हैं। और आर्थिक चुनौतियां भी।

तेल और गैस की कीमतें ऊंची और परिवर्तनशील रही हैं। इससे ऊर्जा आयातकों के बजट पर दबाव पड़ता है, विदेशी मुद्रा व्यय होता है और भारत के वांछित विकास में सहायता हेतु जिस निधि को अवसंरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) और विकास पर व्यय होना चाहिए वह हाथ से निकल जाती है।

इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि ब्रिटेन की तरह भारत में भी निम्नकार्बन अर्थव्यवस्था में किए जाने वाले निवेश केवल जलवायु परिवर्तन से निबटने या हरित विकास को बढ़वा देने बल्कि राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी महत्वपूर्ण निवेश हैं। वस्तुतः, भविष्य के मॉडल हमें यही बताते हैं।

इससे भी अधिक महत्वपूर्ण, ब्रिटेन की सहायता से भारत के योजना आयोग द्वारा विकसित 2047 भारत ऊर्जा सुरक्षा परिदृश्य दर्शाता है कि अधिकतम ऊर्जा सुरक्षा और न्यूनतम कार्बन उत्सर्जन के परिदृश्य लगभग पूरा है। राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक जलवायु सुरक्षा भारत के लिए एक समान हो गए हैं।

ये मॉडल दिखाते हैं कि निम्न कार्बन के रास्ते पर चलकर जीवाश्म इन्धन के आयात पर निर्भरता को कम कर 2047 तक 25-30% के स्तर पर लाया जा सकता है, जो कि सामान्यतः 60% होता है। और इस आयात निर्भरता को कम करने से भारत अरबों की बचत कर पाएगा।

लागतें कम हो रही हैं

अब, स्पष्ट कहें तो निम्न कार्बन वाली कुछ प्रविधियां महंगी रही हैं।

लेकिन जलवायु के बदलते अर्थशास्त्र की एक महत्वपूर्ण विशेषता है प्रमुख हरित प्रविधियों की लागत में तेजी से गिरावट।

भारत मे ही, पिछले पांच सालों में सौर ऊर्जा की लागत में 60% की कमी आई है जिससे यह नए कोयला आधारित विद्युत उत्पादन के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकती है। ऊर्जा भंडारण की लागतों में दुनिया भर में 30% की गिरावट आई है।

इलेक्ट्रिकल वाहनों की लागत में 50% की कमी आई है।

फ्रिज या टीवी के नवीनतम मॉडलों जैसे उच्च रूप से ऊर्जा दक्ष उपकरण अब पूंजी लागत के रूप में पुराने मॉडलों की तुलना में प्रतियोगी हैं।

और आने वाली नई स्वच्छ प्रविधियां लागत में कमी के समान रास्ते का अनुसरण करने का हर चिह्न प्रदर्शित करती हैं:

  • कार्बन कैप्चर और भंडारण
  • स्मार्ट ग्रिड्स
  • इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम्स
  • नई ऊर्जा दक्ष विनिर्माण प्रक्रियाएं

आविष्कार सबसे महत्वपूर्ण होगा।

यही कारण है कि 15 करोड़ पाउंड के संयुक्त वित्तपोषण के साथ ब्रिटेन और भारत की शोध सहभागिता में सौर ऊर्जा, स्मार्ट ग्रिड और ऊर्जा भंडारण के क्षेत्र में तेजी से इजाफा हो रहा है।

जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उठाए जाने वाले कदम आर्थिक विकास में सहायक हो सकते हैं

बदलते हुए इस अर्थशास्त्र का पहले से ही गहरा प्रभाव दिख रहा है और आने वाले सालों में वे और भी महत्वपूर्ण होंगे। लेकिन अभी भी उन्हें पर्याप्त व्यापकता के साथ समझा नहीं गया है।

यूके परिचर्चा के हिस्सों में अब भी लोग प्रमाण को झुठला रहे हैं। जलवायु परिवर्तन से निबटने का काम विकास के मार्ग का बाधा नहीं है- यह सिद्ध के लिए धारणाओं को तोड़ने का काम अभी भी बाकी है। यह भी दिखाना है कि किस प्रकार जलवायु परिवर्तन से निबटने की नीतियां धारणीय और समावेशी अर्थव्यवस्थाओं के आवश्यक घटक हैं।

और मुझे लगता है कि वैसी ही परिचर्चाएं यहां भी चलती हैं।

लेकिन, जब तक हम इस बहस को जीत नहीं लेते जलवायु परिवर्तन के प्रयासों को हम उत्प्रेरित नहीं कर सकते।

चूंकि भारत बहुत से अन्य देशों की तुलना में ज्यादा अच्छी तरह समस्या को समझता है, विकास, संवृद्धि और गरीबी में कमी लाने के प्रयास अनिवार्य रूप से ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन के समाधान के अंग होने चाहिए।

और यह समाधान धरती पर कोई बोझ नहीं डालता।

पीछे जाएं तो 2006 में, स्टर्न रिव्यू ने दर्शाया कि जलवायु परिवर्तन पर कदम नहीं उठाने की तुलना में इस पर समय रहते कड़े कदम उठाने के लाभ किस हद तक अधिक हैं।

हाल ही में, इस अप्रैल में निम्न कार्बन पर भारत के विशेषज्ञों का समूह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि निम्न कार्बन मार्ग के अनुसरण पर आर्थिक विकास का केवल 0.1% व्यय होगा।

निम्न कार्बन मार्ग के अनुसरण करने के सहगामी लाभ हैं। और ये सहगामी लाभ बहुत अधिक हैं। विश्व बैंक का आकलन है कि शहरी इलाकों में केवल हवा की खराब क्वालिटी के कारण ही भारत पर जीडीपी के 1.7% का बोझ पड़ता है।

जलवायु परिवर्तन से निबटने के प्रयासों के उन सहगामी लाभों के साथ एक निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने से भारत के विकास में स्पष्ट रूप से वृद्धि होगी, न कि यह उसके मार्ग का अवरोध बनेगा।

वस्तुतः, भारत के विशेषज्ञ समूह द्वारा सुझाए गए इन निम्न कार्बन उपायों में से अधिकर वे उपाय हैं जिन्हें भारत की क्रमागत सरकारों ने विकास के उत्प्रेरण के रूप में देखा है:

  • पृथक फ्रेट कॉरीडोर।
  • अधिक दक्ष ताप ऊर्जा और नवीन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के जरिए बिजली उत्पादन की क्षमता बढ़ाना।
  • ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के प्रयास।
  • शहरीकरण प्रबंधन।

भारत ने कार्रवायी शुरू कर दी है

नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों एवं ऊर्जा दक्षता की दिशा में भारत के कार्रवायी शुरू कर दी है।

  • 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत के नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की क्षमता बढ़कर लगभग 30 गीगावाट हो चुकी है।
  • भारत की औद्योगिक ऊर्जा दक्षता नीति- परफॉर्म अचीव ट्रेड (पीएटी) योजना विकासशील देशों में अपने किस्म की पहली है।
  • भारत की सीमेंट लोहा और वस्त्र कंपनियां दुनिया की सर्वाधिक ऊर्जा दक्ष कंपनियों में शुमार है।

और भारत के हालिया बजट में ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने और नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहित देने के कई सारे प्रभावशाली उपाय शामिल हैं:

  • अल्ट्रा-मेगा सौर परियोजनाओं के लिए सहायता।
  • नहरों के तट पर सौर पैनल लगाने के लिए सहायता।
  • और ऊर्जा क्षेत्र में सुधार हेतु सहायता।

इन उपायों पर गुजरात द्वारा दिखाया गया नेतृत्व महत्वपूर्ण है। यह राज्य पवन और सौर ऊर्जा के इस्तेमाल में अग्रणी रहा है और साथ ही इसने ऊर्जा क्षेत्र में वित्तीय घाटे को कम करने में भी सफलता पाई है। मुझे लगता है इस महती विकास को गति मिलेगी।

इसके लिए दुनिया भर में कंपनियों ने जलवायु अर्थशास्त्र में क्रांति की आवश्यकता को समझा है। दुनिया भर के निवेशकों ने भी इसे समझा है।

दूरदर्शी कंपनियां निम्न कार्बन प्रविधियां अपनाने लगी हैं और इसका कारण केवल पर्यावरण-जागरुक ग्राहकों को अपील करना ही नहीं है बल्कि दरअसल इस कारण कि दक्ष स्रोत का इस्तेमाल प्रतिस्पर्धा का चालक तत्त्व है।

आईटी और विनिर्माण क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों तथा और होटल सहित भारत की कुछ बड़ी कंपनियों ने निम्न कार्बन ऊर्जा दक्ष व्यवसाय मॉडल के लाभ समझे हैं। और वे इसका इस्तेमाल निवेशकों और ग्राहकों को आकर्षित करने में कर रही हैं।

और यहां आईआईएमए में इस विषय पर, मुझे पता है मैं सही लोगों के साथ मुखातिब हूं जिनमें भविष्य के उद्यमी और कल के व्यवसाय जगत के नायक शामिल हैं।

और मैं आपको यह आश्वासन देना चाहता हूं कि ब्रिटिश कंपनियां भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभा रही हैं। मार्क्स एंड स्पेंसर का उदाहरण लीजिए। उनकी तथाकथित योजना “प्लान ए” के तहत उनके रिटेल स्टोरों में ऊर्जा दक्षता को अपनाया गया है, अपशिष्ट में कमी लाई गई है और कच्चे माल की धारणीयता को बढ़ाया गया है। महज एक साल में ही प्लान ए ने कंपनी के शुद्ध मुनाफे में 7 करोड़ पाउन्ड का योगदान दिया है। ये लाभ साझा किए जा सकते हैं। भारत में कंपनी की “बेटर कॉटन” कार्यक्रम के तहत 20,000 किसानों के जीवन में बेहतरी लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

यूनीलिवर को लीजिए। हिन्दुस्तान यूनीलिवर अपने कृषि आधारित कच्चे माल का 48% धारणीय रूप से हासिल करता है और उन्होंने 2020 तक अपने उत्पादों के लाइफसाइकल ग्रीनहाउस गैस प्रभाव को आधा करने की ठान ली है।

वस्तुतः जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा पर ब्रिटेन-भारत सहभागिता सतत विकास की ओर उन्मुख है।

ब्रिटेन भारत में ऊर्जा क्षेत्र का सबसे बड़ा निवेशक है। तेल और गैस क्षेत्र की ब्रिटेन की बड़ी कंपनियां घरेलू उत्पादन और दक्षता में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण प्रविधियां ला रही हैं।

अन्य संयुक्त-उपक्रम भी जलवायु परिवर्तन के कारण और प्रभावों से निबटने तथा भारत के विकास में और ऊर्जा सुरक्षा की स्थिति सुधारने में सहायता कर रहे हैं।

नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के क्षेत्र में अपतट पवन ऊर्जा के लिए नीति और संस्थागत ढांचे के निर्माण हेतु पर हम मिलकर काम कर रहे हैं; राज्यों को सौर-छत नीति तैयार करने और ऑफ-ग्रिड स्वच्छ ऊर्जा के लिए व्यावसायिक मॉडल के परीक्षण हेतु सहायता उपलब्ध कराई जा रही है।

ऊर्जा क्षेत्र में ब्रिटेन और भारत मिलकर सुधार हेतु काम कर रहे हैं जिससे अधिक मजबूत, अधिक दक्ष ऊर्जा विद्युत बाजार का निर्माण हो सकेगा जो नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता को अपनाने हेतु प्रोत्साहन देगा।

और राज्यों तथा महानगरों में बेहतर नियोजन हेतु, जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निबटने हेतु हम मिलकर काम कर रहे हैं- उदाहरण के लिए बेहतर शहरी परिवहन तंत्र का निर्माण कर।

और अधिक व्यापकता से कहें तो भारत के साथ व्यवसाय के लिए ब्रिटेन के दरवाजे खुले हैं। व्यापार और निवेश में इजाफा हो रहा है। पिछले साल ब्रिटेन के लिए दस में से नौ (90%) भारतीय वीजा आवेदक सफल हुए। भारत के लिए ब्रिटेन का दुनिया में सबसे बड़ा वीजा परिचालन होता है।

और मैं एक बिन्दु को बिल्कुल स्पष्ट कर देने के लिए इस अवसर का लाभ उठाऊंगा। ब्रिटेन आने वाले छात्रों की संख्या पर अब कोई सीमा आरोपित नहीं है। हमने भारत तथा अन्य देशों के मेधावी छात्रों को ब्रिटेन में अध्ययन हेतु आने के आकृष्ट करना जारी रखा है। आखिर दुनिया के दस में से चार सर्वोत्कृष्ट यूनिवर्सिटीज हमारे यहां हैं। और ग्रेजुएट स्तर का रोजगार पाने वाले छात्र ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज में अध्ययन पूरा करने के बाद भी यहां रुक सकते हैं।

और हम दोनों ओर से विनिमय चाहते हैं। ब्रिटिश काउन्सिल के स्टडी इंडिया कार्यक्रम के तहत 1000 से अधिक ब्रिटिश छात्रों को भारत में अध्ययन करने और काम करने का अवसर मिला है। और हम इस (आईआईएम) जैसे भारत के बेहतरीन संस्थानों में ब्रिटिश छात्रों की संख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि होने की उम्मीद करते हैं।

वैश्विक समझौते की जरूरत

लेकिन सच यह है कि आविष्कारी उपायों और रचनात्मकता के क्षेत्रों में सारे उत्कृष्ट प्रयासों के बावजूद उत्सर्जन कम करने तथा भूमंडलीय तापमान को एक सुरक्षित सीमा तक लाने की दिशा में हम तेज गति से आगे नहीं बढ़ रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है और दुनिया भर में इसके मद्देनजर कदम उठाने हेतु एक वैश्विक समझौते की आवश्यकता है। कोई भी देश अकेला इसे नहीं कर सकता।

लेकिन 2009 में कोपेनहेगेन में आयोजित जलवायु सम्मेलन के बाद बहुत से लोगों ने यह सवाल उठाने शुरू कर दिए कि क्या कोई वैश्विक समझौता होना संभव भी है। लेकिन मेरा विश्वास है कि यह संभव है। मुझे यह भी विश्वास है कि यह अगले 18 महीनों में हो सकता है। अब जरा मैं आपको यह बताऊं कि मैं इतना आशान्वित क्यों हूं।

पहली बात, 2011 में डरबन में दुनिया इस बात पर सहमत हुई कि 2015 में पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर हम साथ मिलकर एक वैश्विक और वैधानिक रूप से बाध्यकारी समझौते की दिशा में कदम उठाएंगे।

दूसरी बात, उस प्रतिबद्धता का अनुसरण करते हुए हमने बड़े कदमों को आगे बढ़ते देखे हैं- न केवल अमेरिका में बल्कि यूरोपीय संघ, चीन और भारत में भी। इसलिए मुझे यकीन है कि अगले साल जलवायु परिवर्तन पर एक वैश्विक समझौता होगा – लेकिन इसे उचित और निष्पक्ष होना चाहिए।

निष्पक्ष क्या है?

निष्पक्ष समझौता वह होगा है जिसमें सभी देश उत्सर्जन कम करने की प्रतिबद्धता स्वीकार करेंगे। कार्बन की मात्रा में कमी लाने के लिए हर देश को कुछ न कुछ करना होगा।

लेकिन, दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि इन प्रतिबद्धताओं में, जलवायु परिवर्तन की समस्या में देशों द्वारा जो योगदान किए गए हैं और जो वे करने वाले हैं- प्रतिबिम्बित होना चाहिए। और साथ ही प्रतिबद्धताओं में उनकी काम करने की असली क्षमता भी झलकनी चाहिए।

तो, हां, समझौते में अतीत के उत्सर्जन को ध्यान में रखा जाना चाहिए। लेकिन इसे वास्तविकता के धरातल पर निर्धारित होना चाहिए जहां हम आज खड़े हैं, और जहां हम भविष्य में खुद को पाएंगे।

शमनकारी क्षमता, प्रति व्यक्ति जीडीपी और गरीबी के स्तर के आधार पर इसमें इस बात का उचित ध्यान रखा जाना चाहिए कि देशों की क्षमता क्या है।

देशों की अपनी भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय परिस्थितियां होती हैं और उनकी प्रतिबद्धताओं में यह झलकनी चाहिए और उन्हें अपने द्वारा प्रस्तावित योगदान का औचित्य भी बताना चाहिए।

इस तरीके से हम सुनिश्चित कर सकते हैं समझौता निष्पक्ष और युक्तिसंगत है।

महत्त्वाकांक्षी समझौता

लेकिन हमें एक महत्त्वाकांक्षी समझौता भी चाहिए। जिसमें सभी देश अपने सर्वोत्तम प्रयास कर सकें और वास्तविक स्तर पर तथा दूरगामी रूप से उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध हों।

इस विश्वास के साथ उनके पड़ोसी और उनेक व्यापारिक साझेदार भी ऐसा ही करेंगे।

आर्थिक विकास के लिए और गरीबी से निबटने के लिए हम अनिवार्यता को समझते हैं।

लेकिन, जैसा कि मैंने कहा यह ‘यह अथवा वह’ वाली परिस्थिति नहीं है। जलवायु परिवर्तन पर कार्रवायी आर्थिक विकास और गरीबी कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।

हम दोनों ही हासिल कर सकते हैं और हम ऐसा जरूर करेंगे।

ब्रिटेन एक ऐसी व्यवस्था देखना चाहता है जो तर्कपूर्ण हो और विकास में सहायक हो। ऐसा समझौता जो भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने, जलवायु परिवर्तन से निबटने और गरीबी दूर करने के कार्य में सक्षम बनाए।

उत्सर्जन में कमी सबसे प्रमुख होना चाहिए, हालांकि भारत सहित कुछ देशों के लिए उत्सर्जन विकास के कारणों से कुछ दिनों तक तो बढ़ती है, लेकिन इसके बाद मध्यम अवधि में इसमें गिरावट आएगी।

लेकिन यह किया कैसे जाए? खासकर, कैसे हम निवेश को पुनर्केन्द्रित करें? कैसे हम इसके लिए वित्तपोषण करें?

ये सवाल मुझे मेरे आखिरी मुद्दे- जलवायु वित्त पर ले आते हैं।

जलवायु वित्त

क्योंकि यदि हमें पर्यावरण हितैषी होना है तो जलवायु वित्त महत्वपूर्ण होगा।

दूसरों को अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रेरित करने के साथ-साथ दुनिया भर में निम्न कार्बन विकास में सहायता के लिए ब्रिटेन अपने जलवायु वित्त को सक्रिय रूप से विनियोजित कर रहा है।

3.9 अरब पाउंड वाला ब्रिटेन का इंटरनेशनल क्लाइमेट फंड भारत जैसे विकासशील देशों को उत्सर्जन कम करने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निबटने में मदद कर रहा है। हमारा ज्यादातर काम बहुपक्षीय कोषों (फंड) के जरिए होता है। वास्तव में हम 2014 के अंत तक ग्रीन क्लाइमेट फंड के क्रियाशील होने की उम्मीद करते हैं।

और हम निजी जलवायु वित्त कोषों का विकास कर रहे हैं ताकि हम दसियों अरब उचित वैश्विक जलवायु सक्रिय जरूरतों को एकजुट कर सकें।

2020 तक 100 अरब पाउन्ड जुटाने के वायदे में अपनी भूमिका निभाने के प्रति ब्रिटेन पूरी तरह प्रतिबद्ध है और हमारे कथन के अनुरूप ही हमारा वित्तीय योगदान और हमारे प्रयास रहे हैं।

अंत में, देवियों और सज्जनों! जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। लेकिन परिवर्तन अर्थशास्त्र में भी हो रहे हैं। और जलवायु पर कार्रवायी के फायदों में भी।

मेरा दृढ़ विश्वास है कि जलवायु परिवर्तन से निबटने के प्रयास हमें और अधिक ऊर्जा सुरक्षित बनाएगा।

यह हमें अधिक स्वच्छ और स्वस्थ हवा प्रदान कर सकता है।

जलवायु पर कार्रवायी का अर्थ है सीमित सरकारी संसाधन और विदेशी मुद्रा को निवेश पर विनियोजित किया जाए न कि विदेशों से और अधिक ऊर्जा की खरीद पर।

इस तरह यह संवृद्धि और विकास का अनुप्रेरण हो सकता है।

दोस्तों, हम संवृद्धि के साथ-साथ उत्सर्जन में कटौती कर सकते हैं, और हम ऐसा जरूर करेंगे।

अगले साल पेरिस में हम एक युक्तिसंगत वैश्विक समझौते पर सहमत हो सकते हैं और हम जरूर होंगे।

और दोस्तों, चाहे आप शिक्षक हों या छात्र इसमें साहसपूर्वक अपनी भूमिका अवश्य निभाएं, आप निभा सकते हैं। इस वक्त भविष्य को आपकी जरूरत है।

प्रकाशित 4 August 2014