विषय अध्ययन

प्रथम विश्व युद्ध के विक्टोरिया क्रॉस के भारतीय विजेता गोबिंद सिंह

प्रथम विश्व युद्ध में विक्टोरिया क्रॉस प्राप्तकर्ता गोबिंद सिंह की कहानी।

Gobind Singh

Credit: © IWM (detail of Q 80659)

प्रथम विश्व युद्ध में भारत के छह योद्धाओं को ब्रिटेन में वीरता के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया गया । शताब्दी स्मरणोत्सव के तहत ब्रिटेन के लोगों ने उन साहसी पुरुषों की मातृभूमि को उनके नाम उत्कीर्ण की हुई कांस्य की स्मारक पट्टिका पेश करते हुए अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। इस पुरालेख में उनकी कहानी का उल्लेख है।

नाम: गोबिंद सिंह

जन्म की तारीख: 7 दिसम्बर 1887

जन्म का स्थान: दामोरई गांव, राजस्थान

युद्ध की तारीख: 1 दिसम्बर, 1917

युद्ध का स्थान: पेइजेइर्स, फ्रांस

श्रेणी: लांस दफादार

रेजिमेंट: लाइट कैवलरी, भारतीय सेना

गोबिंद सिंघ का जन्म 7 दिसम्बर 1887 में भारत के राजस्थान राज्य के दामोई गांव में हुआ था। वे 28 वें लाइट कैवलरी (घुड़सवार सेना), जो प्रथम विश्व युद्ध के दौरान दूसरे लांसर (गार्डनर्स का घोड़ा) का हिस्सा था, में लांस दफेदार (एक नायक के बराबर) थे।

लांस दफ़ेदार गोबिंद सिंह को 1, दिसम्बर, 1917 को हुए काम्ब्राई युद्ध में उनकी वीरता के लिए विक्टोरिया क्रॉस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस युद्ध के बीच में उनका सैन्य दल दुश्मनों से घिर चुका था। मुख्यालय में उनके सेनादल को उनकी स्थिति की जानकारी का संदेश भेजना आवश्यक था। खुले मैदान में लगातार गोलियों के बौछार के बीच संदेश भेजने के जोखिम के बावजूद उन्होंने तीन बार स्वेच्छा से प्रयास किया। उनका प्रशस्तिपत्र इस प्रकार उल्लेख करता है:

अपने रेजिमेंट और सैन्यदल के मुख्यालय, जो डेढ़ मील दूर था और लगातार दुश्मन के लगातार निगरानी और भारी गोलाबारी से घिरे हुए खुले मैदान से होते हुए जाना था, जिनके बीच तीन बार स्वेच्छा से संदेश भेजने की विशिष्ट बहादुरी और अपने कर्तव्य के प्रति समर्पण के लिए उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। वे हर बार संदेश भेजने में कामयाब हुए, भले ही हर बार उनके घोड़े को गोली लगी थी और वे पैदल ही अपनी यात्रा तय करने के लिए मजबूर हो गए थे।

गोबिंद सिंह युद्ध में बच गए थे। 1942 में उनकी मृत्यु हुई।

प्रकाशित 20 June 2016