युवा होने का सर्वोत्तम दौर यही क्यों है
ब्रिटिश उच्चायुक्त सर जेम्स बेवन द्वारा नई दिल्ली स्थित जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में 22 अगस्त 2013 को दिए गए भाषण की लिखित प्रतिलिपि। यह मूलतः दिल्ली में दिए गए भाषण की समरूप लिखित प्रतिलिपि है।

परिचय
निराशावादी होना बेहद आसान है। आप कई उन समस्याओं की ओर इंगित कर सकते हैं, जो जीवन को कठिन बनाती हैं और भविष्य को अनिश्चित। और बुरी ख़बरों की वजह से मीडिया में सुर्खियां पाना तो और भी आसान है।
पर मैं इस दोपहर आपको यह भरोसा दिलाने का प्रयास करूंगा कि निराशावादी गलत मार्ग पर होते हैं। यह न केवल सचेत रहने के लिए अच्छा समय है, बल्कि सचेत रहने के लिए यह सभी दौरों में से बेहतरीन दौर है।
खासतौर से मैं आपको यह भरोसा दिलाना चाहता हूं कि युवा रहने के लिए और 21वीं सदी के आरंभ में भारतीय होने के लिए यह सभी दौरों में से सबसे अधिक उचित दौर है। मैं आपको यह भी दिखाना चाहता हूं कि चूंकि आप ब्रिटिश उच्चायुक्त से थोड़ा भी कम की अपेक्षा नहीं रखेंगे, इसलिए यह ब्रिटिश होने का भी एक बेहतरीन दौर है।
अभी सचेत होना क्यों उचित है
हॉलीवुड के महान डांसर फ्रेड ऐस्टैरे से एक बार पूछा गया कि बूढ़ा होने के बारे में उनका क्या ख़्याल है। उन्होंने जवाब दिया कि कोई विकल्प तलाशने की तुलना में यह बेहतर है।
निश्चित रूप से हर समय सचेत रहना किसी विकल्प तलाशने की तुलना में अधिक उचित होता है। बल्कि मेरा सुझाव होगा कि वर्ष 2013 में सचेत रहना पिछले किसी समय की तुलना में अधिक बेहतर है। आइए इनपर विचार करते हैं:
स्वास्थ्य
अच्छे जीवन की पहली शर्त होती है- अच्छी सेहत। और वर्ष 2013 में हम मानव समुदाय पहले की तुलना में कहीं अधिक स्वस्थ हुए हैं। हमें बेहतर भोजन उपलब्ध है, यानि 50 वर्ष पहले, जब मैं शिशु था, उस समय औसत लोगों को मिलने वाले पोषण की तुलना में आज एक तिहाई अधिक कैलोरी प्राप्त हो रही है; और दुनिया के कुपोषित लोगों की प्रतिशतता, जो कि 10 वर्ष पूर्व 20% थी, आज 10% है। अब शिशु जन्म के दौरान कम ही माताओं की मृत्यु होती है; वर्ष 1999 से अबतक वैश्विक मातृ-मृत्यु दर गिरकर आधी रह गई है। और शिशु जन्म के दौरान शिशुओं की मृत्यु में काफी कमी आई है: वर्ष 1960 से पांच साल के नीचे के बच्चे की मृत्यु दर घटकर आधी से भी कम रह गई है।
और अच्छे स्वास्थ्य का मतलब होता है लंबी ज़िंदगी। हम पहले की तुलना में अधिक लंबी आयु जी रहे है। हजारों साल पहले लोग औसतन 20 वर्ष जीते थे। तब से लेकर आज तक जीवन प्रत्याशा बढ़ती रही। आज विश्व की औसत जीवन प्रत्याशा 67 वर्ष है। भारत में जीवन प्रत्याशा वर्ष 1950 में जहां केवल 26 वर्ष हुआ करती थी, वर्ष 2010 में यह बढ़कर 72 वर्ष तक पहुंच गई। जापान में जन्म लिया एक बच्चा 100 वर्षों से ऊपर जीने की उम्मीद रख सकता है।
धन-दौलत
हम न केवल अधिक स्वस्थ और दीर्घायु हुए हैं। हम पहले की तुलना में अधिक संपन्न हुए हैं। औसत मनुष्य आज 50 वर्ष पहले की तुलना में तीन गुना अधिक कमाई कर रहा है। चीन के निवासी दस गुना अधिक संपन्न हुए हैं।
संपन्नता के बढ़ने के साथ निर्धनता कम हुई है; यानि मेरे जीवन काल में दुनिया भर में घनघोर गरीबी में बसर करने वाले लोगों की तादाद घटकर आधी से भी कम रह गई है। दरअसल संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि पिछले 50 वर्षों में दुनिया भर में गरीबी में बसर करने वाले लोगों की संख्या पिछले 500 वर्षों की तुलना में सबसे अधिक तेजी से घटी है। भारत इस संघर्ष में सबसे अगले पायदान पर रहा है और आज यह विजेता बनकर उभरा है, यानि 40 के दशक में जहां लगभग 90% भारतीय घनघोर गरीबी में जीवन बसर कर रहे थे, वहीं आज यह आकड़ा गिरकर 30% पर आ टिका है।
लोकतंत्र, विकल्प तथा स्वतंत्रता
हम पहले की तुलना में कहीं अधिक आज़ाद हुए हैं। मानव इतिहास के अधिकांश हिस्से में ज्यादातर लोगों के पास अपने शासक चुनने का विकल्प नहीं था। लगभग एक सौ साल पहले की भी यही सच्चाई थी। पर आज विऔपनिवेशीकरण की जबरदस्त लहर और युरोप की सर्वसत्तावादी सरकारों के पतन के बाद, लोकतंत्र आज की पसंद बन गया है। आज स्थिति यह है कि जो देश लोकतांत्रिक नहीं है उसे अपने समुदाय से बाहर का देश माना जाता है।
बेशक हमारे पास पहले की तुलना में अधिक विकल्प हैं, और न केवल यह निर्णय लेने में कि कौन सी सरकार हम चाहते हैं, बल्कि हर चीज़ के विकल्प के रूप में यह उपलब्ध है। आज हममें से ज्यादातर लोग अपने पसंद के स्थान पर रहने, पढ़ाई करने, नौकरी करने, शॉपिंग करने, शादी करने, कपड़े पहनने और अपने पसंद से छुट्टियां बिताने के लिए स्वतंत्र हैं। कभी-कभी विकल्प विस्मयकारी होता है।
महिला
दुनिया आज अपनी 50% आबादी के लिए- यानि महिलाओं के लिए बेहतर जगह बनती जा रही है। यहां यह कहना गलत होगा कि हर कहीं महिलाओं को अब उतनी चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ता है, जो कि पुरुषों को करना ही नहीं पड़ता है। पर समूचे मानव इतिहास में पुरुषों के पास वह शक्ति थी जो महिलाओं के पास नहीं थी; और पुरुषों के अधिकारों को महिलाओं के अधिकारों की तुलता में वरीयता दी गई।
पर आज यह कम से कम दिखाई पड़ता है। पूरी दुनिया भर में महिलाएं उन अधिकारों को दृढ़तापूर्वक हासिल कर रही हैं, जिनपर पुरुषों का आधिपत्य था- जैसे कि काम करने, मत डालने, समान वेतन पाने, पब्लिक ऑफिस में पद ग्रहण करने, संपत्ति के स्वामित्व, शिक्षा प्राप्त करने, सेना में नौकरी करने, बैंक में खाता खुलवाने, कानूनी समझौते में हिस्सा लेने, अपने लिए विवाह करने और पसंद के जीवन साथी चुनने का निर्णय करने, बच्चा रखने और उसके समय के निर्णय लेने का अधिकार। दुनिया के अधिकतर हिस्सों में आज इन अधिकारों की कानूनी तौर से स्थापना हो चुकी है और वे व्यवहार में लागू भी हैं।
इसका मतलब यह नहीं है कि समान अधिकारों का संघर्ष समाप्त हो चुका है और हर कहीं महिलाएं अब संपन्न स्थिति में हैं। तीन लड़कियों के पिता की हैसियत से मुझे पता है कि महिलाओं को आज भी हर कहीं चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पर मैं जानता हूं कि मेरी बेटियों और दर्शकों में बैठी आप जैसी महिलाओं के लिए महिला होना पहले की तुलना में आज अधिक अच्छा है।
ज्ञान
आज हम पहले की तुलना में कहीं अधिक चाज़ों के बारे में जानते हैं, और अधिक से अधिक लोगों को उनकी जानकारी है। पहले की तुलना में आज कहीं अधिक लोग शिक्षित हो रहे हैं और वह भी ऊंचे दर्जे तक। तकनीकी हर किसी को सबल बना रही है। दस वर्ष पहले की तुलना में सरकारों को उपलब्ध सूचनाओं की तुलना में आपका मोबाइल फोन आज आपको अधिक जानकारी उपलब्ध करा रहा है।
मानव की बुद्धिमतता और इंटरनेट के जरिए साथ मिलकर काम करने की क्षमता के जरिए ज्ञान तथा तकनीकी का संयोजन अधिक रचनात्मक चिंतन तथा नवीनता पैदा कर रहा है, जो मानव इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ। आज हमारे सामने अधिक समस्याएं हैं, पर आज के ज्ञान तथा रचनात्मकता की मदद से हम उनका निदान निकाल सकते हैं।
पारंपरिक ज्ञान गलत है
यहां तक कि 21वीं सदी के लिए जिन चीज़ें को हम बुरा मानते हैं, वे भी अच्छी हैं।
शहरीकरण
आइए शहरीकरण पर चर्चा करते हैं। वर्ष 2007 में दुनिया ने एक अनजानी दहलीज़ पार की, यानि मानव इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि ग्रामीण परिवेशों की तुलना में अधिक से अधिक लोग अब शहरों में रहने लगे।
यह एक अच्छी बात है, क्योंकि शहर अधिक दक्ष होते हैं, यानि देहातों में रहने वाले लोगों की तुलना में शहरों में रहने वाले लोग कम स्थान घेरते हैं, कम ऊर्जा का उपयोग करते हैं और प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र पर कम प्रभाव डालते हैं। 21वीं सदी में हम जिन समस्याओं को झेलते हैं, शहर उनका हिस्सा नहीं होते, बल्कि वे समाधान का हिस्सा होते हैं।
जनसंख्या वृद्धि
एक दूसरा उदाहरण: जनसंख्या वृद्धि। मेरे जीवन काल में दुनिया की जनसंख्या दुगनी से भी अधिक हो गई है। इसकी अपनी चुनौतियां हैं। पर हमें यह याद रखना चाहिए कि जनसंख्या की वृद्धि सफलता की एक निशानी है, न कि असफलता की, यानि यह आर्थिक वृद्धि और तकनीकी की प्रगति, विकास तथा स्वास्थ्य सेवा के विकास का परिणाम होती है। ये सब मिलकर जीवन प्रत्याशा को बढ़ाते हैं।
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जनसंख्या वृद्धि का अर्थ अधिक निर्धनता नहीं होता, बल्कि इसकी बजाए वैश्विक जनसंख्या के बढ़ने से लोग गरीब न होकर समृद्ध ही हुए हैं। और हालांकि दुनिया की आबादी बढ़ती ही जा रही है, पर लगभग पिछले 50 सालों में इसकी वृद्धि दर कम हुई है। इसलिए सही नीतियों के साथ हम न केवल अपनी जनसंख्या को नियंत्रित कर सकते हैं, हम सभी लोगों को बेहतर ज़िंदगी भी मुहैय्या करा सकते हैं।
सरकार
ऐसे माहौल में, जहां लोगों का मानना है कि पहले के दौर की तुलना में खतरे अधिक हैं, आशावाद की जमीन भी उपलब्ध है।
हमें भूमंडलीय तापन, प्रदूषण तथा दुनिया के प्राकृतिक संसाधनों में कमी होने की चिंता जताने का हक है। ये हर किसी को प्रभावित करते हैं, पर अधिक गंभीर प्रभाव देहातों पर और ऐसे लोगों पर पड़ता है, जो इन्हें झेल नहीं सकते, यानि विकासशील देश तथा उसके गरीब लोग। पर हमें यह याद रखना चाहिए कि देहात ज्यों ही समृद्ध हो रहे हैं वहां प्रदूषण में कमी आ रही है और वे अपने संसाधनों का दक्षतापूर्वक उपयोग कर रहे हैं। कुछ हद तक यह तकनीकी,व्यवहारगत परिवर्तन तथा सरकारी नियमन के कारण संभव हुआ है। बल्कि यह इस कारण से भी संभव हुआ कि बाजार और निर्वाचक वर्ग फर्मों सरकारों पर पर्यावरण हितैषी होने और अधिक दक्ष बनने के लिए दबाव डाल रहे हैं।
अतीत की यादों को अधिक महत्व मिलता है
जब हम अपने जीवन की तुलना अपने से पहले के लोगों के जीवन से करते हैं, तो हमें कुछ और भी बातें याद रखनी चाहिए, यानि प्रायः अतीत की याद हमें गुमराह करती है। लोग जिसे अच्छे स्वर्णिम दौर कहते हैं, वे वास्तव में ऐसे नही थे। अतीत का अर्थ है प्रायः कुछ ऐसे चंद लोगों तक सीमित रहना जो तब शीर्ष पर हुआ करते थे, अर्थात अमीर और शक्तिशाली तबका। ऐसे लोग जो हमसे पहले आए उनमें से अधिकतर हमारी ज़िंदगियों की अपनी जिंदगियों से अदला-बदली करने की कामना करेंगे । निष्कर्ष यह कि वर्ष 2013 में लोगों का उत्तम जीवन है। हम अधिक समृद्ध, स्वस्थ, लंबे, बुद्धिमान, दीर्घायु, सुरक्षित तथा पहले से कहीं अधिक स्वतंत्र हुए हैं।
भारतीय आशावादी क्यों हो सकते हैं
आप इसलिए आशावादी हो सकते हैं क्योंकि आप 21वीं सदी के प्रारंभ में जी रहे हैं, अर्थात आपने इतिहास का लॉटरी जीत लिया है। और मैं यह मानता हूं कि आज युवा भारतीयों के रूप में आपने भूगोल का लॉटरी भी जीत लिया है। ऐसा कैसे? क्योंकि भारत के पास ऐसे अवसर हैं जो किसी दूसरे देशों के पास नहीं हैं। पैमाना: यानि यदि आप सचमुच कुछ बड़ा करना चाहते हैं, तो यह करने के लिए भारत के पास पैसा है, लोग और संसाधन हैं। जनांकिकी: भारत की युवा आबादी एक बड़ा आर्थिक अवसर है, बशर्ते कि इसके करोड़ों लोगों को सही शिक्षा और अच्छी नौकरियां दी जा सके। महत्वाकांक्षा, ऊर्जा, प्रतिभा: भारतीयों के पास अपनी औद्योगिक प्रचुरता है।
रचनात्मक विनाश- वह ताकत होती है, जो सफल प्रगति को बढ़ावा देती है, जो भारतीयों से अधिक आप और कहीं नहीं देखेंगे। इतिहास: भारत जैसा देश, जिसका एक लंबा इतिहास रहा है, चीज़ों को करना जानता है, क्योंकि इसने उनमें से कई सारी चीज़ें हजारों साल पहले ही कर डाली हैं। और भारत जैसा समृद्ध सभ्यता वाला देश किसी भी प्रकार की चुनौतियों से निपटने के प्रति आश्वस्त हो सकता है, क्योंकि पहले ही यह अतीत में सभी चुनौतियों का सामना कर चुका है।
ज्ञान: भारतीय सभ्यता ने हमेशा से ज्ञान के मूल्य को जितना महत्व दिया है, वह आज दिखाई पड़ता है। प्रत्येक स्तर पर हरेक भारतीय माता-पिता के लिए अपने बच्चों के लिए हरसंभव शिक्षा मुहैय्या कराने की प्रतिबद्धता भी ऐसा ही है, नतीजा- यह एक ऐसा समाज है जो अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए उनमें भारी निवेश करता है। भारत का विशाल और विकासशील मध्यम वर्ग: प्रगति तथा स्थिरता की एक ताकत है। विविधता में एकता: न केवल एक नारा है, पर एक सच्चाई है, जो मैं हर दिन अपनी यात्रा के दौरान देखता हूं, और यह रचानात्मकता तथा समृद्धि के लिए एक विशाल अनदेखी ताकत है।
आज अन्य कई स्थानों की तुलना में भारत के पास एक सुनिश्चित अवसर यह है कि यह स्वयं ही आशावादी है। यहां की मीडिया या दिल्ली में मौजूद राजनेता जो कुछ भी कहें, पर मैं असली भारत में जहां कहीं भी लोगों से मिलता हूं, वे मानते हैं कि वर्तमान तो अच्छा है ही, भविष्य भी बेहतर ही होगा। आशावादिता वृद्धि तथा प्रगति का जबर्दस्त वाहक होती है और भारत के पास यह भरपूर है।
इसलिए मुझे इस देश के भविष्य के बारे में पूरा भरोसा है। मैं आपको भी भरोसा रखने को प्रोत्साहित करता हूं, क्योंकि इस देश का भविष्य मैं नहीं बनाऊंगा, बल्कि आपको बनाना है।
ब्रिटेन के प्रति आशावादी होने के कारण: जिनकी वजह से GREAT है ब्रिटेन
अंततः, मैं आपको यह कहता हूं कि मुझे एक अन्य देश, यानि मेरे अपने देश के भविष्य पर भरोसा है।
हम ब्रिटेनवासियों को अपने अतीत पर नाज हैं। पर हमें अपने भविष्य पर भी भरोसा है। वास्तव में हमें लगता है कि ब्रिटेन के बेहतरीन दिन हमारे सामने हैं।
ऐसा क्यों? क्योंकि भारत की तरह ही यूके के पास भी बड़ी पूंजी है, जो 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए हमारे उपयुक्त हैं।
ब्रिटेन:
- दुनिया की एक बड़ी अर्थव्यवस्था है और आगे भी बनी रहेगी। आज हम दुनिया की सातवीं (भारत ग्यारहवीं है) सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, जिसकी जीडीपी $2.4 अरब से ऊपर है
- के पास अर्थव्यवस्था के उपयुक्त मूल तत्त्व मौजूद हैं : एक स्थायी लोकतंत्र, वैधानिक शासन, अत्यंत शिक्षित तथा लचीला कार्यबल, एक प्रबल बैंकिंग व्यवस्था, एक व्यवसाय हितैषी पर्यावरण तथा ऐसी नीतियां जो विकास को बढ़ावा दें।
- एक ऐसा स्थान है, यदि आप वैश्विक प्रतिभागी बनना चाहते हैं तो जिसकी आपको जरूरत पड़ेगी। लंदन वह स्थान है जहां दुनिया पूंजी बनाती है और अपने शेयरों का कारोबार करती है। वैश्विक रूप से परिचालन के लिए ब्रिटेन अभी सही काल खंड में है: आप सुबह एशिया से बात कर सकते हैं और रात में अमेरिका से। ब्रिटेन का पूरी दुनिया भर से शानदार जुड़ाव है: हीथ्रो हवाई अड्डा दुनिया के किसी अन्य हवाई अड्डे की तुलना में अधिक अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों का संचालन करता है। और हम दुनिया की भाषा बोलते हैं, जो आप भी बोलते हैं, यानि अंग्रेजी भाषा।
- विज्ञान, तकनीकी तथा नवीनता में दुनिया में अग्रणी है। उदाहरण- ब्रिटिश नागरिक द्वारा डिजाइन आइपॉड; इसके एक निवासी द्वारा इंटरनेट का आविष्कार; और हिग्स बोसॉन- तथाकथित गॉड पार्टिकल, जो बताता है कि भौतिक दुनिया कैसे काम करती है- ब्रिटिश नागरिक द्वारा प्रतिपादित और इस वर्ष स्थापित हुआ। मैं यहां यह बता दूं कि प्रख्यात भारतीय भौतिकशास्त्री-सत्येंद्रनाथ बोस के नाम पर ही इस सिद्धांत का नाम रखा गया। ब्रिटिश निवासियों ने जो अन्य चीज़ों की खोज की या आविष्कार किया, उनमें शामिल हैं- फुटबॉल, गोल्फ, क्रिकेट, टिड्लीविंक्स, क्रोकेट, रेलवे, भाप इंजन, होवरक्राफ्ट, पेंसिलिन, गुरुत्वाकर्षण, देशांतर रेखा, जेट इंजन, विकासवाद, डाक टिकट तथा चिपचिपा टॉफी पुडिंग। युरोप के तट से दूर एक छोटे धुंधले से द्वीप के लिए यह बुरा नहीं है।
- शिक्षा तथा अनुसंधान के क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी है। दुनिया के शीर्ष दस विश्वविद्यालयों में चार विश्वविद्यालय ब्रिटेन के हैं। हमने 100 से अधिक नोबल पुरस्कार विजेता हस्तियों को जन्म दिया है, जो अमेरिका के अलावा और कहीं नहीं है।
- कठिन चीज़ों को अच्छी तरह से कर सकता है- जैसे पिछले साल संपन्न हुआ लंदन ओलम्पिक, जो समय पर हुआ, बजट के भीतर, दोस्ताना व उल्लासपूर्ण माहौल में स्टाइल के साथ संपन्न हुआ। और हमारी दो महान प्रतिमूर्तियां- हमारी माननीया महारानी और जेम्स बॉन्ड हेलिकॉप्टर से साथ छलांग लगाती हुई।
- में एक सहनशील समाज है जो अपने आप में सहज है: विविध-मान्यताओं,विविध –जातियों वाले ब्रिटेन का नागरिक होना गर्व की बात है।
मुझे लगता है कि यह एक दमदार फ़ेहरिस्त है। मैं तो यही कहना चाहूंगा। ब्रिटेन के उच्चायुक्त की हैसियत से मुझे ब्रिटेन को बढ़ावा देने के लिए वेतन दिया जाता है। तो मेरी बातों से मत मान लीजिए कि ब्रिटेन आकर्षक है।
बल्कि अपने साथी भारतीयों से पूछिए। भारतीय ब्रिटेन में पढ़ना चाहते हैं; हर वर्ष 20,000 से अधिक विद्यार्थी ब्रिटिश विश्वविद्यालयों में दाखिला लेते हैं, जो चीनी छात्रों के बाद ब्रिटेन आने वाले विदेशी छात्रों का दूसरा सबसे बड़ा समूह है। भारतीय नागरिक ब्रिटेन जाना चाहते हैं: हर वर्ष 400,000 भारतीय ब्रिटेन आते हैं। साथ ही भारतीय ब्रिटेन के साथ व्यवसाय करना चाहते हैं: संपूर्ण यूरोपीय संघ की तुलना में भारतीय ब्रिटेन में सबसे अधिक निवेश करते हैं। हमें कुछ सही करना ही चाहिए।
निष्कर्ष
इसलिए मैं एक आशावादी व्यक्ति हूं। आशावादी बनने का एक कारण है कि यह आपके लिए अच्छी चीज़ होती है; अध्ययन से पता चलता है कि जिन लोगों का जीवन के बारे में सकारात्मक नजरिया होता है, वे दीर्घायु, अधिक स्वस्थ, अधिक समृद्ध तथा अधिक सफल होते हैं। पर आज मैंने आपको आशावादी होने का एक बेहतर कारण बताने का प्रयास किया- दुनिया के बारे में, भारत के बारे में और ब्रिटेन के बारे में जो कि तथ्यों से साबित होता है। दोनों ही स्थिति में मेरा सरल संदेश यही है- मुस्कराइए।