भाषण

लॉन्गिट्यूड पुरस्कार: भारत को इसे जीतने के लिए क्यों भाग लेना चाहिए

भारत में ब्रिटिश उच्चायुक्त, सर जेम्स बेवन द्वारा सोमवार, 12 अक्टूबर 2015 को दिए गए अभिभाषण की प्रतिलिपि।

James Bevan

आपके साथ यहां आज की इस चर्चा के प्रारंभ के अवसर पर उपस्थित होना मेरे लिए बेहद प्रसन्नता का विषय है, जो हमारे वर्तमान विश्व के सामने उपस्थित एक बड़ी चुनौती पर केंद्रित है: हम प्रतिसूक्ष्मजीवी प्रतिरोध का सामना कैसे करते हैं।

यूनाइटेड किंगडम के उच्चायुक्त के तौर पर, मुझे खासतौर पर यहां उपस्थित होने की प्रसन्नता है, क्योंकि इस महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर ढूंढने में सहायता के लिए, मेरी सरकार ने लॉन्गिट्यूड पुरस्कार की शुरुआत की है- एक 10 मिलियन पाउंड की चुनौती, जो भारत और शेष विश्व के लिए खुली है, और जो भावी पीढ़ियों के लिए प्रभावी प्रतिजैविकों के संरक्षण के तरीके खोजने के लिए है।

आपमें से जो इतिहास के विशेषज्ञ हैं उन्हें पता होगा कि यह दरअसल द्वितीय देशांतर पुरस्कार है। तीन सौ वर्ष पूर्व, देशांतर की तथाकथित समस्या एक बड़ी पहेली थी, जिसका सामना वैज्ञानिक, खोजकर्ता, नाविक और सरकारें मिलकर कर रहे थे।

यह समस्या सरल रूप में यह थी कि: जबतक आपको यह पता न हो कि आप कहां पर हैं, आप यह अनुमान नहीं कर सकते कि आप कहां जा रहे हैं। शताब्दियों तक नाविकों को अपने अक्षांश का अनुमान लगाने का पता था- कि वे भूमध्यरेखा से कितने उत्तर या दक्षिण में हैं- जिसका अनुमान वे सूर्य या किसी निश्चित तारे से क्षितिज के बीच के अंतर के मापन द्वारा लगाया करते थे।

लेकिन 300 वर्ष पहले, किसी को भी यह निश्चित पता नहीं था कि आपका देशांतर कैसे तय किया जाए- कि एक निश्चित बिंदु से आप कितने पूरब या पश्चिम की दिशा में हैं।

और बिना अपना अक्षांश और देशांतर जाने, आपको यह पता नहीं था कि आप कहां हैं या कहां जाना है। 18 वीं सदी के पूर्वार्ध में गहरे समुद्रों में जाने के लिए, यह बेहद खतरनाक स्थिति थी।

इसलिए देशांतर की समस्या के समाधान के लिए, जो हर किसी से जुड़ी समस्या थी, और जो बेशक ब्रिटिश शाही नौसेना के लिए भी थी; और ब्रिटेनवासियों के व्यावहारिक तथा अनुभवजन्य तरीके से, यह तय पाया गया कि इस समस्या का समाधान ढूंढने के लिए सबसे अच्छी विधि यह है कि नकद पुरस्कार के साथ एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाए। 1714 में ब्रिटेन सरकार ने देशांतर अधिनियम पारित किया, जिसमें उस प्रथम व्यक्ति के लिए बड़े वित्तीय पुरस्कारों का प्रस्ताव किया गया था जो समुद्र में किसी जहाज की स्थिति तय करने की व्यावहारिक विधि को प्रमाणित कर सके।

यह आसान नहीं था। बहुतों ने प्रयास किया और असफल रहे, लेकिन 1773 में एक विजेता हुआ: जॉन हैरिसन, वह एक स्वयंशिक्षित अंग्रेज घड़ीसाज था। उसने मैरीन क्रोनोमीटर (समुद्री कालमापी घड़ी) का आविष्कार किया, जो समुद्र के आंतरिक भागों में भी बिल्कुल सही समय बताती थी, और जिससे देशांतर के निर्धारण की पहेली के सबसे महत्वपूर्ण अंश का समाधान हुआ।

अतः जॉन हैरिसन को देशांतर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। और इसे प्राप्त कर, उन्होंने न केवल लंबी दूरी की सुरक्षित समुद्र यात्राओं को संभव बना दिया, बल्कि उन्होंने एक वैज्ञानिक क्रांति का भी सूत्रपात किया जिससे संपूर्ण मानजाति लाभान्वित हुई।

और संपूर्ण मानवजाति को लाभान्वित करनेवाली ऐसी ही एक और क्रांति देखने की हमारी यह अभिलाषा ही है जिसने वर्तमान ब्रिटेन सरकार को एक अन्य प्रतियोगिता आयोजित करने की प्रेरणा दी है, जो तीन सौ वर्ष पूर्व के देशांतर पुरस्कार के आधार पर प्रारूपित है, और जो विश्व के समक्ष उपस्थित एक बड़ी चुनौती का सामना करने के उद्देश्य से आयोजित है: प्रति-सूक्ष्मजीवी प्रतिरोध या एएमआर।

इस नए पुरस्कार की घोषणा हमारे प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने 2012 में की थी। इसमें छः संभावित वैज्ञानिक चुनौतियों की एक संक्षिप्त सूची तैयार कर उसे लोगों के मत जानने के लिए जारी किया गया। और गत वर्ष यह घोषणा की गई कि उस समस्या के समाधान के लिए पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे जिसमें आपमें से कई विशेषज्ञ हैं: वैश्विक प्रतिजैविक प्रतिरोध की समस्या।

प्रतिजैविक का विकास हमारे समय की एक महान वैज्ञानिक प्रगति है। इससे हमारे जीवनकाल में औसतन 20 वर्ष और जुड़ गए हैं। लेकिन इसपर प्रतिसूक्ष्मजीवी प्रतिरोध का उभरना आज एक खतरा है जो इन प्रतिजैविकों को अप्रभावी बना देगा और सामान्य संक्रमण भी लाइलाज हो जाएंगे।

इसलिए चुनौती यह है: जीवाणु-संक्रमण के लिए लागत-प्रभावी, सटीक, त्वरित और उपयोग में आसान एक ऐसे जांच के आविष्कार की विधि ढूंढना, जिससे दुनियाभर के स्वास्थ्यकर्मियों को सही समय पर सही प्रतिजैविक का निर्धारण करने की सुविधा मिल सके।

इस महान देश में उच्चायुक्त के रूप में मेरे कार्यकाल- जो अब चार वर्षों से ज्यादा का है- से मुझे यह शिक्षा मिली है कि अगर आप किसी समस्या का एक प्रेरणायुक्त समाधान चाहते हैं- चाहे कोई भी समस्या हो- तो इसे पाने के लिए भारत एक उपयुक्त स्थान है। आपके पास विश्वस्तरीय प्रतिभा, अद्वितीय प्रेरणा और आकांक्षा है, और किसी समस्या पर एक नए तरीके तथा मौलिक रूप से विचार करने की क्षमता है, जो आपको सबसे विशिष्ट बनाता है।

इसलिए मुझे आशा है- और वस्तुतः यह मेरा विश्वास है- कि एएमआर की समस्या का समाधान न केवल खोज लिया जाएगा, बल्कि यह यहां भारत में भारतीयों द्वारा ही खोजा जाएगा। और आज आपसे यह मेरा आह्वान है कि; कृपया इस महान अभियान में सम्मिलित हों, और कृपया इस नई प्रतियोगिता में अवश्य हिस्सा लें।

अंतिम देशांतर पुरस्कार अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में एक ब्रिटेनवासी ने जीता था, उस समय, जब ब्रिटेन दुनिया की एक प्रमुख शक्ति बनने की प्रक्रिया में था। और वस्तुतः समुद्री कालमापी घड़ी के आविष्कार, और शाही नौसेना को इससे प्राप्त फायदों के कारण, संभवतः यह शक्ति इतनी जल्दी हासिल की जा सकी।

21वीं शताब्दी, भारत की शताब्दी है, और एक ऐसी शताब्दी है जिसमें हम भारत और ब्रिटेन के बीच एक नई और पहले से कहीं अधिक सुदृढ़ सहभागिता निर्मित करना चाहते हैं। इस सहभागिता की इससे अच्छी अभिव्यक्ति और कोई नहीं हो सकती कि ब्रिटेनवासियों द्वारा प्रस्तावित नया देशांतर पुरस्कार भारतीयों द्वारा जीता जाए।

देवियों और सज्जनों, मित्रों तथा सहयोगियों, मैं आपको इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता हूं। भारत को इसमें भाग लेना चाहिए। और भारत इसे जीत सकता है।

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स्टुअर्ट एडम, प्रमुख,
प्रेस तथा संचार
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मेल करें: दीप्ति सोनी

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प्रकाशित 12 October 2015