विश्व की समाचार कथा

मानसून परिवर्तनशीलता के अध्ययन के लिए यूके-भारत का साझा अवलोकन अभियान

डॉ. हर्षवर्धन और डॉ. एलेक्जान्डर इवांस ने यूके के वायुमंडलीय अनुसंधान विमान में बैठकर लखनऊ की मानसून परिवर्तनशीलता का किया अध्ययन

Dr Harsh Vardhan, Dr Alexander Evans and UK & Indian scientists at FAAM to study monsoon variability

Dr Harsh Vardhan, Dr Alexander Evans and UK & Indian scientists at FAAM to study monsoon variability

उत्तर प्रदेश में लखनऊ की मानसून परिवर्तनशीलता का अध्ययन करने के लिए यूके-भारत के साझा अवलोकन अभियान में हिस्सा लेते हुए भारत के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और भू-विज्ञान मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने यूके-भारत के बीच अनुसंधान के क्षेत्र में बढ़ती साझेदारी की सराहना की।

डॉ. हर्षवर्धन ने लखनऊ हवाईअड्डे से यूके के वायुमंडलीय अनुसंधान विमान में बैठकर यह जानने की कोशिश कि कैसे यूके और भारत के वैज्ञानिक इस अत्याधुनिक विमान का उपयोग कर और भारत में विशाल स्तर पर अभियान चलाकर जानकारी एकत्रित कर रहे हैं जिससे और बेहतर ढंग से दक्षिण एशियाई मानसून की प्राकृतिक प्रक्रिया और मौसम एवं जलवायु मॉडल में उनके बेहतर प्रतिनिधित्व को समझा जा सकेगा।

यह अभियान ‘दक्षिण एशियाई मानसून की परिवर्तनशीलता के संचालक’ इस यूके-भारत के अनुसंधान कार्यक्रम का एक हिस्सा है, जो भारतीय भू-विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) के भू-प्रणाली विज्ञान संगठन (ईएसएसओ) और यूके के प्राकृतिक पर्यावरण अनुसंधान परिषद (एनईआरसी) और मौसम कार्यालय की साझेदारी का प्रमाण है।

इस विमान का प्रबंधन वायुवाहित वायुमंडलीय मापन (एफएएएम) द्वारा किया जाता है, यह एनईआरसी और मौसम कार्यालय के बीच का साझा प्रयास है।

यह सबसे महत्वाकांक्षी अभियान है जिसे मई 2016 में दो माह के लिए शुरु किया गया और पहली बार ऐसा हुआ कि इस अनुसंधान विमान ने भारत के विज्ञान की जिम्मेदारी संभाली। इस उड़ान अभियान के कुछ प्रारंभिक परिणामों में शामिल हैं:

  • उत्तरी भारत के मानसून पद्धति का मौसमी सर्वेक्षण
  • पश्चिमी घाट से जुड़ीं मानसूनी हवाओं और दक्षिणपूर्व भारत के ‘वृष्टि छाया’ का सर्वेक्षण
  • भारत के विभिन्न जलवायु क्षेत्रों के भूमि-वातावरण के पारस्परिक प्रभाव का विश्लेषण
  • बंगाल की खाड़ी में वायु-समुद्र के पारस्परिक प्रभाव का विश्लेषण
  • प्रदूषण का मानसून के साथ पारस्परिक प्रभाव
  • क्षेत्रीय मापदंडों पर हवा की गुणवत्ता का आकलन

इस परियोजना को साझा रूप से एनईअरसी (3.5 मिलियन पाउंड), न्यूटन कोष (1.5 मिलियन पाउंड) और यूके के मौसम कार्यालय (0.7 मिलियन पाउंड) और एमओईएस के समान संसाधनों द्वारा आर्थिक सहायता दी जाती है।

यह यूके-भारत अनुसंधान कार्यक्रम एमओईएस द्वारा 2012 में शुरू किए गए राष्ट्रीय मानसून मिशन कार्यक्रम का पूरक है, जिसका लक्ष्य था राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदायों के साझा प्रयासों से सभी अस्थायी और स्थानिक पटल पर मानसून संबंधित भविष्यवाणियों को सुधारना I

इस उड़ान में मंत्रीजी का साथ थे - भारत में ब्रिटिश उप उच्चायुक्त डॉ. एलेक्जान्डर इवांस, एमओईएस के के सचिव डॉ. माधवन नायर राजीवन, यूके-भारत के अनुसंधान परिषद के अधिकारी और यूके-भारत से शोधकर्ता।

यात्रा के तुरंत बाद अधिकारियों के साथ मंत्रीजी और डॉ. एलेक्जान्डर इवांस ने उड़ान के अपने अनुभवों और एकत्रित किए गए आंकड़ों को एक संयुक्त प्रेस सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रस्तुत किया। मंत्रीजी ने बताया कि यूके और भारत एक मजबूत अनुसंधान साझेदारी का हिस्सा है और दिन-प्रतिदिन मजबूती से विकसित हो रहा है। यह विशाल स्तर का अवलोकन अभियान, जिसमें शामिल है यूके का अनुसंधान विमान और भारत का सिंधु-साधना अनुसंधान जहाज, जो मानसून और उसके पूर्वानुमान को समझने में नए आयाम जोड़ रहे हैं।

भारत में ब्रिटिश उप उच्चायुक्त डॉ. एलेक्जान्डर इवांस ने कहा:

समूचे भारत और दक्षिण एशिया में मानसून अत्यंत महत्वपूर्ण है-और साथ ही जरूरी है उसके कार्यों और परिवर्तनशीलता को समझना। यह महत्वपूर्ण संयुक्त अनुसंधान बताता है कि भारत और यूके अपनी अनुसंधान साझेदारी के जरिए वैज्ञानिक समझ को बेहतर बनाने में जुटे हैं। मैं मंत्रीजी डॉ. हर्षवर्धन की प्रतिबद्धता और समर्थन के लिए अत्यंत आभारी हूं और नवम्बर 2016 में आयोजित होने वाले प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन के प्रति उत्सुक हूं जो यूके-भारत के रिश्तों को और प्रगाढ़ बनाएगा।

पिछले पांच वर्षों में आरसीयूके ने ईएसएसओ-एमओईएस और एनईआरसी के बीच एक मजबूत साझेदारी बनाने में सहयाता की है। इस संपन्न साझेदारी के तहत कई अन्य प्रमुख अनुसंधान कार्यक्रम आयोजित हुए हैं जैसे कि: बदलता जलचक्र, भारत के किसी प्रमुख शहर में वायुमंडलीय प्रदूषण एवं मानव स्वास्थ्य, खाद्य, ऊर्जा और पारिस्थितिकी तंत्र सेवा के लिए जल संसाधनों को बनाए रखना और जल सुरक्षा पर यूके-भारत का संयुक्त केंद्र।

अधिक जानकारी

  • प्राकृतिक पर्यावरण अनुसंधान परिषद (एनईआरसी): एनईआरसी अनुसंधान के वित्तीय पोषण और प्रबंधन, पर्यावरण विज्ञान में प्रशिक्षण और ज्ञान का आदान-प्रदान करने वाली यूके की प्रमुख एजेंसी है। हमारे कार्यों में शामिल हैं वायुमंडलीय, पृथ्वी, जैविक, स्थलीय और जलीय विज्ञान, गहरे महासागर से लेकर ऊपरी वायुमंडल और ध्रुव बिंदु से लेकर भूमध्य रेखा तक की संपूर्ण श्रृंखला। एनईआरसी विश्व के कुछ दिलचस्प अनुसंधान परियोजनाओं का संयोजन करता है जो कुछ प्रमुख मुद्दों से निपटते हैं जैसे जलवायु परिवर्तन, मानव स्वास्थ्य पर पर्यावरणीय प्रभाव, पृथ्वी पर जीवन की आनुवांशिक रचना इत्यादि। एनईआरसी एक गैर विभागीय सार्वजनिक निकाय है और इसे व्यापारिक, नवोन्मेष और कौशल विभाग (बीआइएस) से 370 मिलियन पाउंड का वार्षिक अनुदान प्राप्त होता है।

  • पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संगठन (ईएसएसओ) - पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस): ईएसएसओ- एमओईएस के लिए अनिवार्य है कि वह अच्छी तरह से एकीकृत कार्यक्रमों के जरिए राष्ट्र को मानसून का पूर्वानुमान और मौसमी/जलवायु मानदंड जैसे महासागर की स्थिति, भूकम्प, सूनामी और भू-प्रणालियों से जुड़ी घटनाओं जैसे क्षेत्र में अपनी बेहतरीन सेवाएं प्रदान करता है। यह मंत्रालय विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग कर अन्वेषण और सागर संसाधनों (जीवित और निर्जीव) का दोहन और एंटार्कटिक/ आर्कटिक और दक्षिण महासागर के अनुसंधान का कार्य करता है। मंत्रालय के लिए एक संयोजित तरीके से वायुमंडलीय विज्ञान, महासागर विज्ञान और प्रौद्योगिकी और भूकम्प विज्ञान की देख-रेख करना अनिवार्य है।

  • अनुसंधान परिषद यूके (आरसीयूके) - भारत: 2008 में शुरू हुआ आरसीयूके - भारत उच्चतम गुणवत्ता, अत्यंत प्रभावी साझेदारी के जरिए यूके और भारत के शोधकर्ताओं को एक साथ एकत्रित करता है। नई दिल्ली के ब्रिटिश उच्चायोग में स्थित आरसीयूके - भारत ने यूके, भारत और अन्य देशों के बीच पहल को सह-वित्तीय सहायता की सुविधा प्रदान की है जो अब बढ़कर 200 मिलियन पाउंड है। इसके शोध साझेदारियां अक्सर यूके और भारत के औद्योगिक साझेदारों से जुड़े हुए होते हैं, जिसमें से 90 प्रतिशत सहयोगी अनुसंधान में शामिल रहते हैं। आरसीयूके-भारत भारत के सात प्रमुख अनुसंधान वित्त प्रदाताओं के साथ अनुसंधान गतिविधियों के सह वित्त पोषण के कार्यों में संलग्न है जो ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, सामाजिक विज्ञान, स्वास्थ्य सेवा और जीवन विज्ञान जैसी वैश्विक चुनौतियों का सामना करते अनुसंधान के विस्तारित विषयों में कार्यरत है।

  • दक्षिण एशियाई मानसून की परिवर्तनशीलता के संचालक: यह संयुक्त प्रयास उस कार्यांवन करार का हिस्सा है जिस पर एमओईएस और यूके के प्राकृतिक पर्यावरण अनुसंधान परिषद (एनईआरसी) ने संयुक्त रूप से हस्ताक्षर किए हैं, और यह एमओईएस और यूके के बीच पृथ्वी प्रणाली विज्ञान में साझेदारी पर समझौता ज्ञापन के तहत ‘दक्षिण एशियाई मानसून की परिवर्तनशीलता की भविष्यवाणी’ पर कार्यरत है। भारत और यूके के वैज्ञानिकों को शामिल करने वाले तीन अनुसंधान परियोजनाएं मानसून को प्रभावित करने वाली प्राकृतिक प्रक्रियाओं के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करेंगी। ये परियोजनाएं हैं:

    • दक्षिण पश्चिम एशियाई एरोसोल मानसून सहभागिता: डॉ. एस. सुरेश बाबू (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) और प्रोफेसर ह्यूज कोए (मैन्चेस्टर विश्वविद्यालय)
    • मानसून की गतिशीलता और भूमि की सतह से ऊष्मा, संवहन से लेकर महाद्विपीय पैमाने के जरिए से: प्रोफेसर जी. एस. भट (भारतीय विज्ञान संस्थान) और डॉ. एंड्र्यू टर्नर (यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग)
    • बंगाल की खाड़ी में सागर वातावरण प्रक्रियाओं का दक्षिण एशियाई मानसून पर प्रभाव: प्रोफेसर पी. एन. विनायाचंद्रन (वायुमंडलीय महासागर विज्ञान केंद्र) और एड्रियन मैथ्यूज (यूनिवर्सिटी ऑफ़ ईस्ट अंगेलिा)
  • वायुवाहित वायुमंडलीय मापन (एफएएएम) के लिए सुविधाएं: एफएएएम मौसम कार्यालय और प्राकृतिक पर्यावरण अनुसंधान परिषद के बीच साझेदारी का नतीजा है और इसे राष्ट्रीय वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र (एनसईएएस) के एक भाग के रूप में स्थापित किया गया है ताकि यूके के सभी वायुमंडलीय अनुसंधान समुदायों द्वारा विश्व भर में अभियान के लिए वैमानिक मापन के मंच की सुविधा प्रदान की जाए।

  • न्युटन कोष: यूके और उभरती बुद्धिजीवी अर्थव्यवस्थाओं के बीच अनुसंधान और नवोन्मेष की साझेदारी को मजबूत बनाने हेतु न्युटन कोष की पहल की गई थी।

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अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:

जीनी जॉर्ज शाजु, संचार प्रबंधक
आरसीयूके इंडिया
ब्रिटिश उच्चायोग, नई दिल्ली
टेलीफोन: 011-2419 2637

ई-मल: जीनी जॉर्ज

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प्रकाशित 12 July 2016