विश्व की समाचार कथा

मानसून की समस्याओं से निबटने के लिए भारत और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों की टीम

गृष्मकालीन मानसून भारत में लगभग एक अरब लोगों लिए पूरे साल होने वाली वर्षा का 80% मुहैया करता है।

यह 2010 to 2015 Conservative and Liberal Democrat coalition government के तहत प्रकाशित किया गया था
Edward Davey

ब्रिटेन के ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन मंत्री एडवर्ड डेवी ने आज नई शोध परियोजना की घोषणा की जो दक्षिण एशियायी मानसून के पूर्वानुमान की क्षमता में सुधार लाने हेतु भारत और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों को साथ मिलकर कर काम करने का अवसर देगा। श्री डेव उप-प्रधानमंत्री निक क्लेग के साथ भारत यात्रा पर हैं।

दक्षिण एशियायी मानसून में अस्थिरता के कारकों पर शोध कार्यक्रम को ब्रिटेन के नेचुरल एनवायरनमेंट रिसर्च काउंसिल (एनईआरसी), भारतीय भू-विज्ञान मंत्रालय (इंडियन मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज) और ब्रिटेन के मौसम कार्यालय के संयुक्त तत्वावधान में 80 लाख पाउंड की राशि उपलब्ध कराई जाएगी। यह ब्रिटेन और भारत के बीच एक विकासमान शोध सहभागिता का निर्माण करेगा जिसमें पहले से ही दोनों देशों के बीच शोध के मद में 15 करोड़ पाउंड का निवेश किया जा चुका है।

ग्रीष्मकालीन मानसून भारत में लगभग एक अरब लोगों के लिए पूरे साल होने वाली वर्षा का 80% मुहैया करता है। मानसून-वर्षा के प्रभावी होने के सही समय और स्थान का पूर्वानुमान इस संपूर्ण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण असर डालता है जहां मुख्य आजीविका कृषि है, और साथ ही यह क्षेत्र में लगातार सीमित हो रहे जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए भी अति महत्वपूर्ण है। पिछले साल, मानसून उत्तरी भारत में समय से पहले आ गया, जिस कारण व्यापक क्षति हुई। इसी तरह, 2009 में इसके लंबे अंतराल के कारण वर्षा में भारी कमी आई और फसल बहुत कमजोर हुई।

‘अस्थिरता के कारक कार्यक्रम’ में व्यापक पैमाने पर पर्यवेक्षण अभियान के जरिए मानसून की भौतिक प्रक्रियाओं पर अनुसंधान किया जाएगा। पहले की तुलना में क्षेत्र के ताजे आंकड़े अधिक विस्तृत रूप से एकत्र करने के लिए इसमें वायुंडलीय शोध हेतु उपयोगी ब्रिटेन के BAe-146 एयरक्राफ्ट, समुद्री ग्लाइडर्स और भारतीय रिसर्च शिप्स की मदद ली जाएगी। यह कार्यक्रम दक्षिण एशियायी मानसून की भौगोलिक प्रक्रियाओं को समझने में और मौसम एवं जलवायु मॉडलों के प्रस्तुतिकरण की स्थिति में सुधार लाएगी।

यह शोध 2015 में शुरू होगा और तीन से पांच सालों तक जारी रहेगा। प्रत्येक प्रॉजेक्ट का नेतृत्व एक ब्रिटिश और एक भारतीय शोधकर्ता द्वारा किया जाएगा। ब्रिटिश टीम के प्रमुख हैं प्रोफेसर ह्यू को (यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर), डॉ, ऐंडी टर्नर (यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग) और डॉ ऐड्रियन मैथ्यूज (यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट ऐंग्लिया)। उनके साथ भारतीय सहयोगी हैं डॉ. एस सुरेश बाबू (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन), प्रो. जी एस भट (भारतीय विज्ञान संस्थान) और पी एन विनयचंद्रन (भारतीय विज्ञान संस्थान)।

भारत के तीन दिवसीय यात्रा के अंग के रूप में मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में बोलते हुए माननीय मंत्री एडवर्ड डेवी ने कहा:

हमारे दोनों देशों के बीच विज्ञान और तकनीक के उच्चतम क्षेत्र में एक मजबूत और विकासमान संबंध है जिसका लक्ष्य है लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना। यहां भारत में मानसून लोगों के जीवन में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह विश्व की जलवायु प्रणाली के लिए भी बहुत ही अहम है। मानसून पर ब्रिटेन-भारत का यह नया शोध कार्यक्रम इस बात का एक बड़ा उदाहरण है कि किस प्रकार ब्रिटेन और भारत वैश्विक चुनौतियों से निबटने के लिए साथ मिलकर काम कर सकते हैं।

भारतीय भू-विज्ञान मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज) के सचिव डॉ. शैलेश नायक ने कहा:

मुझे इस बात की खुशी है कि दक्षिण एशियायी मानसून की भौगोलिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए भारत और ब्रिटेन के वैज्ञानिक आपस में एनईआरसी एयरक्राफ्ट और मॉडलिंग प्रयासों सहित पर्यवेक्षण अभियान पर सहयोग कर रहे हैं। मैं आश्वस्त हूं कि यह सहयोग मौसम और जलवायु के मॉडलों में मानसून की भौगोलिक प्रक्रियाओं के प्रस्तुतिकरण में सुधार लाएगा।

ब्रिटेन के नेचुरल एनवायरनमेंट रिसर्च काउंसिल के अंतरिम प्रमुख नेड गार्नेट ने कहा:

हमें प्रसन्नता है कि हम इस महत्वपूर्ण समस्या से निबटने के लिए भारत के मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज के अपने सहयोगियों के साथ मिलकर पुनः काम करने जा रहे हैं।

मानसून का अच्छा पूर्वानुमान करने में सफल होना दक्षिण एशिया के लोगों और इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत लाभकारी होगा जो वैश्विक अर्थव्यवस्था का भी एक महत्वपूर्ण अंग है। इन वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिए संयुक्त परियोजनाओं में यह कार्यक्रम ब्रिटेन और भारत के वैज्ञानिकों की पूरक दक्षताओं को साथ लाएगा।

आगे की जानकारी

  • नेचुरल एनवायरनमेंट रिसर्च काउंसिल

एनईआरसी पर्यावरण विज्ञानों में शोध, प्रशिक्षण और ज्ञान के विनिमय हेतु कोष प्रदायन एवं प्रबंधन के लिए ब्रिटेन की प्रमुख एजेंसी है। हमारे काम में शामिल हैं वायुमंडलीय, पृथ्वी, जीवविज्ञान संबंधी, धरातलीय और जलीय विज्ञानों, गहरे सागर से लेकर ऊपरी वायुमंडल तक और ध्रुवों से लेकर भूमध्यरेखा तक का संपूर्ण क्षेत्र। एनईआरसी एक गैर-विभागीय सार्वजनिक निकाय है और इसे डिपार्टमेंट फॉर बिजनस, इनोवेशन एंड स्किल्स (बीआईएस) द्वारा वार्षिक 37 करोड़ पाउंड का कोष मुहैया कराया जाता है।

  • अर्थ सिस्टम साइंस ऑर्गनाइजेशन (ईएसएसओ), मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज

ईएसएसओ-एमओईएस की जिम्मेदारी है सुगठित और समेकित कार्यक्रमों के जरिए देश को मानसून तथा अन्य मौसम/जलवायु संबंधी कारकों, महासागरीय दशाओं, भूकंप, सुनामी तथा अन्य पृथ्वी की व्यवस्थाओं से संबंधित अन्य परिघटनाओं के पूर्वानुमान की बेहतरीन संभव सेवाएं उपलब्ध कराना। यह मंत्रालय समुद्री संसाधनों (जैव एवं अजैव) के अन्वेषण और दोहन हेतु विज्ञान एवं तकनीक से भी संबंधित है तथा एंटार्कटिक/आर्कटिक और दक्षिणी महासागर शोध कार्यों में नोडल एजेंसी की भूमिका निभाता है। वायुमंडल विज्ञान, महासागर विज्ञान और तकनीक तथा सिस्मोलॉजी (भूकंपविज्ञान) संबंधी कार्यों का एकीकृत रूप से पर्यवेक्षण करना भी इस मंत्रालय का दायित्व है।

  • रिसर्च काउंसिल यूके(आरसीयूके) भारत

उच्च गुणवत्ता और उच्च प्रभाव वाली शोध सहभागिता के जरिए ब्रिटेन और भारत के बेहतरीन शोधकर्ताओं को एक साथ काम करने का अवसर मुहैया करने के उद्देश्य के साथ आरसीयूके इंडिया का शुभारंभ 2008 में हुआ। आरसीयूके इंडिया नई दिल्ली के ब्रिटिश उच्चायोग में स्थित है और इसने ब्रिटेन, भारत और तृतीय पक्षों के बीच ‘को-फंडेड’ (साझे कोष वाले) प्रयास की सुविधा उपलब्ध कराई है जो आज लगभग 15 करोड़ पाउंड के बराबर पहुंच चुका है। ये शोध सहभागिताएं प्रायः ब्रिटेन और भारत के औद्योगिक साझेदारों के साथ संबद्ध हैं जहां 90 से अधिक साझेदार इसमें शामिल हैं। ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, सामाजिक विज्ञानों, स्वास्थ्य सेवा और जीवन विज्ञानों के क्षेत्र में वैश्विक चुनौतियों से निबटने हेतु शोध योजनाओं की व्यापक श्रृंखला पर सात प्रमुख भारतीय कोष प्रदाताओं के साथ आरसीयूके इंडिया साझे कोष वाले शोध कार्यों में सक्रिय रूप से संलग्न है।

स्टुअर्ट ऐडम, डायरेक्टर,
प्रेस और संचार
ब्रिटिश उच्चायोग,
चाणक्यपुरी, नई दिल्ली- 110021
टेलीफोन: 44192100; फैक्स: 24192411

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प्रकाशित 26 अगस्त 2014