भाषण

वहनीयता का अर्थशास्त्र

2 जुलाई 2013 को यूके (UK) के ऊर्जा एवं जलवायु परिवर्तन मन्त्री तथा भारत के साथ व्यापारिक संलग्नता मन्त्री माननीय सांसद श्री ग्रेगरी बार्कर द्वारा दिए गए भाषण का प्रतिलेख। मूलरूप से हैदराबाद, भारत में दिया गया था। यह भाषण का प्रतिलेख है, ठीक-ठीक वैसा ही जैसा दिया गया था।

यह 2010 to 2015 Conservative and Liberal Democrat coalition government के तहत प्रकाशित किया गया था
The Rt Hon Gregory Barker

दिए गए भाषण से जांच लें

हैदराबाद में आकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ।

मैं भारत कई बार आ चुका हूँ। पिछली बार फरवरी में प्रधान मन्त्री श्री कैमॅरॉन के साथ आया था…

वे अपने साथ इतना विशाल व्यापारिक प्रतिनिधि-मण्डल लेकर आए थे जो आज तक कोई भी ब्रिटिश प्रधानमन्त्री अपने साथ समुद्र-पार लेकर नहीं गया है। पर हैदराबाद में मैं पहली बार आया हूँ। यह बेहद ख़ूबसूरत शहर है, और इसकी संस्कृति बहुत समृद्ध है। यहाँ के निज़ाम और इस क्षेत्र के लम्बे गर्वपूर्ण इतिहास के बारे में काफ़ी कुछ सुनता आ रहा हूँ…

और यहाँ के शानदार खान-पान को कैसे भूल सकते हैं, आपकी हैदराबादी बिरयानी तो दुनियाभर में मशहूर है…

पर मैं यहाँ भविष्य की बात करने आया हूँ, अतीत की नहीं। आपके पास एक बेहद गतिशील और तेजी से बढ़ता हुआ व्यापारिक क्षेत्र है। यूके (UK) के साथ मजबूत संपर्क भी हैं। मैं इसी बात को आगे बढ़ाना चाहता हूँ।

इससे पहले कि मैं अपना भाषण शुरु करूं, मैं उत्तराखंड में आई विनाशकारी बाढ़ों पर अपना गहरा सदमा और दुःख व्यक्त करना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि अभी भी हजारों लोग लापता हैं। और मैं ब्रिटिश सरकार की गहन सहानुभूति उन लोगों के प्रति व्यक्त करना चाहता हूँ जिन्होंने इस त्रासदी में अपने प्रियजनों को खोया है। आज के मेरे इस भाषण में मैं एक मिथक के विषय में स्पष्टीकरण करना चाहूँगा।

जो कि, सीधे शब्दों में कहा जाए तो, यह धारणा है कि निम्न-कार्बन विकास अभी भी काफी महंगा है। और यह धारणा कि वहनीय विकास होना अच्छी बात है लेकिन इसके लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। और यह धारणा कि संसाधन कुशलता की लागत बहुत ज़्यादा है।

यह दृष्टिकोण अब पुराना हो चुका है। तथ्य यह है कि दुनिया बदल चुकी है…

वहनीयता का अर्थशास्त्र आगे बढ़ चुका है…

वास्तविक रूप से वहनीय विकास न केवल किफ़ायती हो सकता है बल्कि यदि इसके प्रति वास्तविक वित्तीय दृढ़ता के साथ व्यापार-वत् दृष्टिकोण रखा जाए तो यह पुराने अर्थव्यवस्था के विकल्प के साथ न केवल प्रतिस्पर्धा कर सकता है बल्कि उसे हरा भी सकता है।

तो आज, मैं वास्तव में बस दो मुख्य बिन्दुओं को विकसित करना चाहता हूँ।

पहला यह कि किसी भी सफल एवं वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था का आधार, संसाधन-कुशल निम्न-कार्बन विकास होना चाहिए।

और दूसरा यह कि चूंकि दुनिया और अधिक संसाधन-निरुद्ध हो रही है…

…बाजार फैल रहे हैं और सफल प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्थाएं और अधिक प्रत्यास्थ बन रही हैं और महंगे, अस्थिर, आयातित जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटा रही हैं…

….हम भारत के साथ अपनी साझेदारी को और गहरा करना चाहते हैं। हम साथ जुड़ना चाहते हैं…

…और साथ मिलकर काम करना चाहते हैं - व्यापारी, नीति-नियंता, वैज्ञानिक…

…ताकि इस वैश्विक दौड़ में मिलकर जीता जा सके।

मिथक

चलिए सबसे पहले इस मिथक को जांचते हैं, और यहाँ भारत के सन्दर्भ पर नज़र डाल कर शुरुआत करते हैं।

2030 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा मध्यमवर्गीय उपभोक्ता बाजार बन जाएगा।

भारत भर में वस्तुओं की मांगें बढ़ेंगी - शहरों में, और ग्रामीण इलाकों में भी।

मानवीय सम्पन्नता की यह वृद्धि एक विराट उपलब्धि है।

करोड़ों लोगों को गरीबी से निकालना…एक पूरी पीढ़ी के हितों व जीवन के अवसरों को बेहतर बनाना…यह एक आश्चर्यजनक बात है और इस बात की सराहना की जानी चाहिए।

पर इस सफलता की, जिसका भारत अधिकारी है, एक कीमत भी है। यह दुर्लभ संसाधनों पर वृद्धिशील दबाव डालेगी।

भारत पहले से ही विश्व की मात्र 4% कृषि-योग्य भूमि एवं 3% ताजे जल के सहारे, पृथ्वी की 17% जनसंख्या का पेट भर रहा है। कल्पना करें कि 2030 में ये कठिनाईयाँ कितनी बढ़ जाएंगी…

…और मानव-निर्मित खतरनाक जलवायु परिवर्तनों ने मॉनसून के पैटर्न, भूमिगतजल के स्तर, तापमानों एवं समुद्रतल को प्रभावित करना शुरु कर दिया है।

मैं आर्थिक वृद्धि की सामाजिक व राजनीतिक अनिवार्यता को पूरी तरह से समझता हूँ और इसका समर्थन करता हूँ।

लेकिन, मैं यह भी जानता हूँ कि, अभी तक, कई लोगों को, ऐसी नीतियाँ जो एक उत्कृष्ट कारण की पूर्ति करने के साथ-साथ, जलवायु परिवर्तनों को काबू करती हों…

…और भारतीय जनसंख्या के प्रति व्यक्ति अत्यल्प उत्सर्जनों को देखते हुए…

…एक ऐसी दीर्घकालिक विलासिता मालूम दे सकती हैं जो विकासशील अर्थव्यवस्थाएं मुश्किल से ही वहन कर पाएंगी।

पिछली शताब्दी का पुराना आर्थिक विकास मॉडल आयातित जीवाश्म ईंधनों पर अत्यधिक निर्भर रहा है। आपको कारखानों, दुकानों और घरों को ऊर्जा देने के लिए बिजली चाहिए। आपको माल ढुलाई के लिए और लोगों को परिवहन देने के लिए ईंधन चाहिए।

इन सभी से कार्बन उत्सर्जन उत्पन्न होते हैं जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग होती है।

तो, यहीं वह बहस पैदा होती है, दो अनिवार्यताओं के बीच यहाँ एक सीधा टकराव होता है - अर्थव्यस्था को वृद्धि करने देना, और कार्बन उत्सर्जनों को सीमित करना। इससे पता चलता है कि इस बात पर इतना गहरा मिथक जड़ें कैसे जमाए हुए है।

…यह मिथक कि निम्न-कार्बन का अर्थ है आर्थिक वृद्धि में बाधा, यह मिथक कि पर्यावरण पर ध्यान देने का अर्थ है लाखों, करोड़ों लोगों को गरीबी में छोड़ देना।

…यह मिथक कि संसाधन-कुशलता का अर्थ है करोड़ों युवाओं की आकांक्षाओं पर तुषारापात कर देना।

…यह मिथक कि हरित अर्थव्यवस्था, भारत की समग्र प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए एक बाधा है।

मैं आज एक वैकल्पिक भविष्य के समर्थन में यहाँ आया हूँ।

संसाधन कुशलता का मतलब है विकास

मैं आपके सामने तीन तर्क रखना चाहूँगा, जो कि हमारे ब्रिटेन के अनुभव पर आंशिक रूप से आधारित हैं। क्योंकि यहाँ भारत में आपको जितने भी तर्क सुनाई देते हैं, उनमें से कई यूके (UK) में प्रतिध्वनित होते हैं।

पहला तर्क हमारे सीमित एवं महंगे होते हुए संसाधनों के विवेकी उपयोग के प्रति सावधान रहने के बारे में है।

वैश्विक जनसंख्या में हो रही विशाल वृद्धि को देखते हुए, संसाधन सम्बन्धी अवरोध एवं संसाधनों की दुर्लभता, दुनिया भर के कॉर्पोरेशनों की चिन्ता को बढ़ाते जा रहे हैं। इक्कीसवीं शताब्दी में, संसाधन-कुशलता किसी व्यापार के लिए वैकल्पिक व अतिरिक्त बात नहीं है, बल्कि यह तो वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी एवं आर्थिक रूप से प्रत्यास्थ बने रहने का एक अनिवार्य भाग है।

संसाधन-कुशलता से मेरा अर्थ है कम संसाधन प्रयोग करते हुए अधिक उत्पादन देना।

इसका अर्थ है पानी कम, कच्चा माल कम और ऊर्जा भी कम। और भारत में तो इसका एक लम्बा व गर्वपूर्ण इतिहास रहा है। यह आपकी ‘मितव्ययी विकास’ की परम्परा का सार है।

अभी कल ही मुझे गुजराती सीमेंट निर्माताओं के बारे में बताया गया था जो - क्योंकि उनके पास प्रचुर जलापूर्ति का अभाव है और पारम्परिक ऊर्जा लागतें बढ़ती जा रही हैं - दुनिया में सबसे अधिक संसाधन-कुशल निर्माताओं में से एक हैं।

और मैं देखता हूँ कि यहाँ हैदराबाद में डॉ. रेड्डीज़ लैबोरेट्रीज कार्यस्थल पर जल-संचयन एवं जल का पुनर्चक्रण करते हैं; उन्होंने अपने फार्मास्युटिकल निर्माण को सरल व कारगर बना दिया है; और स्वयं के ऊर्जा उपभोग को घटाया है। यह सबकुछ तब जबकि वे 2 बिलियन डॉलर से भी अधिक के अपने वैश्विक टर्नओवर पर अपनी लाभप्रदता को न केवल कायम रखे हुए हैं बल्कि उसमें और सुधार ला रहे हैं।

यूके (UK) में हम संसाधन-कुशलता पर पकड़ बना रहे हैं। और हम इस पर पूरी तरह से पकड़ बनाने में काफ़ी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हमारा निर्माण क्षेत्र इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

…हमारे प्रतिष्ठित ओलिम्पिक्स स्टेडियम में, आमतौर पर प्रयुक्त होने वाली स्टील की मात्रा का केवल आधा भाग ही लगा है, भले ही वह पुनर्चक्रित सामग्री का उपयोग करके लगा हो - और इसमें वह रूफ सपोर्ट भी शामिल है जिसे पुराने गैस पाइपों से बनाया गया है।

…ओलिम्पिक वेलोपार्क में भी कम स्टील इस्तेमाल हुआ क्योंकि उसे अधिकांशतः वहनीय इमारती लकड़ी से बनाया गया - और इसने अपनी नाटकीय रूप से ढालू छत से जलसंचयन करके जल उपभोग में भी तीन-चौथाई से भी अधिक की कटौती कर ली है।

…ब्रेडफोर्ड विश्वविद्यालय के नए छात्रावास ने हाल ही में अपने कार्बन फ़ुटप्रिण्ट एवं ऊर्जा उपभोग को न्यूनतम करने के लिए एक यूरोपीय पुरस्कार जीता है, और साथ ही, इसकी लागत किसी ‘सामान्य’ भवन की अपेक्षा पच्चीस प्रतिशत कम आई है। मैं इस बात पर अनावश्यक जोर नहीं देना चाहूँगा। लेकिन मैं एक निर्माण कम्पनी ऐटकिन्स द्वारा निष्पादित और यहाँ हमारे उच्चायोग द्वारा समर्थित एक हालिया अध्ययन के परिणामों पर आपका ध्यान खींचना चाहूँगा। इस अध्ययन के मुताबिक मात्र अधिक वहनीय शहरी नियोजन परिपाटियों का उपयोग करके, भारत में जो बचत की जा सकती है वह विराट है। वहनीय शहरी नियोजन से :

…भू-उपयोग में एक-तिहाई कमी आ सकती है…निर्माण के लिए मात्र आधे कोषों की आवश्यकता पड़ सकती है…और कार्बन उत्सर्जन में 30% की कमी लाई जा सकती है।

इससे यह साफ हो जाता है कि संसाधन-कुशल परिपाटियों में अच्छी-खासी व्यापारिक समझदारी मौजूद है।

नए बाजार खोलना

वृद्धि के हरित मॉडल के लिए मेरा दूसरा तर्क थोड़ा सा अलग किस्म का है। संसाधन-कुशलता को अकसर ‘पहले से ही की जा रही चीज़ों को बेहतर ढंग से करना’ समझा जाता है। यानि कि बस नींबू से ज्यादा-से-ज्यादा रस निचोड़ लेना। हाँ, यह वास्तव में एक अच्छी बात है।

लेकिन जो नया वहनीय अर्थशास्त्र है वह ‘नई चीज़ें करने’ के बारे में भी है। यह हरित अर्थव्यवस्था का रोमांचक और नवोन्मेषी पहलू है। दुनिया भर की कम्पनियाँ नए मॉडल और नए उत्पाद बनाकर, नए बाजार भी बना रही हैं। और अत्यावश्यक विकास में योगदान दे रही हैं। मैं आपको यूके (UK) से कुछ उदाहरण देता हूँ।

अर्टेमिस, जो कि एक छोटी सी कम्पनी है, उसका निर्माण यूके (UK) के कई विश्व-अग्रणी विश्वविद्यालयों में से एक में किया गया था। इसने हवा से चलने वाली टर्बाइनों में उपयोग के लिए एक नए हायड्रॉलिक सिस्टम का आविष्कार किया था।

इस सिस्टम की सफलता से आकर्षित हो कर इसे मित्सुबिशी ने खरीद लिया - जो कि संयोग से, विदेशी निवेश का स्वागत करने वाली मुक्त अर्थव्यवस्था के महत्व का एक अच्छा उदाहरण है।

इसी साल पहले मैंने रोमाग का दौरा किया था जो कि एक ब्रिटिश सौर पैनल निर्माता है। मैं जानता हूँ कि आन्ध्र प्रदेश में सौर ऊर्जा उत्पादन की विशाल संभावना उपस्थित है।

रोमाग ऐसे नवोन्मेषी सौर पैनलों का निर्माण कर रहा है जो खुद को अपने-आप ही साफ कर लेते हैं ताकि वे सउदी अरब जैसे धूल-भरे मरुस्थलीय वातावरण में भी काम कर पाएंगे और मुझे यकीन है कि गुजरात में भी।

इसी दौरान, यूके (UK) की एक और कम्पनी हाईव्यूव एक ऐसा ऊर्जा भण्डारण समाधान विकसित कर रही है जो अतिरिक्त ऊर्जा का उपयोग करके वायु को बेहद ठण्डा कर देती है और जब इस वायु को गर्म होने दिया जाता है तो उससे एक विण्ड टर्बाइन चलने लगती है।

इस प्रकार के नवोन्मेषों का शुद्ध परिणाम है - सौर ऊर्जा के लिए ऐसे स्तर पर और जो ऊर्जा मांगों के शिखरों के साथ भी काम करता हो - नए बाजारों का खुल जाना जो कि पहले विद्यमान ही नहीं था।

आप यहाँ पर तर्क दे सकते हैं कि यह तो केवल निजी क्षेत्र का काम है…सरकार की इसमें यहाँ कोई भूमिका नहीं है। पर मैं यह तर्क देना चाहूँगा कि सरकार की एक महत्वपूर्ण भूमिका है, वह है एक ऐसा ढांचा स्थापित करना जिसमें ऐसे नवोन्मेष हो सकें, और इन नए बाजारों का निर्माण किया जा सके।

इसी वजह से हमने वहाँ यूके में विलक्षण कदम उठाएं हैं :

हमने एक पूरी तरह से नए ऊर्जा कुशलता बाजार की शुरुआत की है जिसका नाम है ग्रीनडील…

…यह गृहस्वामियों को बिना कोई एकमुश्त रकम दिए, ऊर्जा की बचत करने वाले उपायों को अपनाने की सुविधा देता है, और उनका भुगतान वे अपने ऊर्जा बिलों में अपेक्षित बचत के माध्यम से कर सकते हैं।

हमारे पास यूके में हरेक घर में स्मार्ट मीटर लगाने की महत्वाकांक्षी योजना है…

…इससे ऐसे उपकरणों और प्रौद्योगिकियों के एक पूरी तरह से नए बाजार को प्रोत्साहन मिलेगा जो नए, ‘स्मार्ट’ ग्रिड का लाभ उठाएंगे…

…और हम विद्युत के क्षेत्र में एक नए बाजार के निर्माण के लिए नियम-व्यवस्था बना रहे हैं : यह विशाल ऊर्जा कुशलता परियोजनाओं को, नई मांगों की पूर्ति करने के एक वैकल्पिक तरीके के रूप में, पहली बार नए ऊर्जा संयन्त्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की सुविधा देगा - विद्युत की आवश्यकता घटा कर, बजाए इसके कि केवल ऊर्जा आपूर्ति के नए स्रोत जोड़े जाएं।

वैश्विक दौड़ को जीतना - साथ मिलकर

पर किसी भी देश को न तो यह अकेले करना चाहिए और न ही कोई देश ऐसा अकेले कर सकता है।

इस यात्रा के दौरान ‘हरित’ नवोन्मेषों के कई उत्कृष्ट भारतीय उदाहरण मेरी जानकारी में आए हैं।

उदाहरण के लिए, नैक्स्टजैन ने एक ऐसी नई बायोगैस ईंधन प्रणाली विकसित की है जिसमें भारतभर के 4,00,000 टेलीकॉम टॉवरों द्वारा उत्पादित 60 लाख टन CO2 और लगभग 12 अरब लीटर डीजल के उपभोग में कुछ कटौती कर सकने का सामर्थ्य है। और लागतों में तो विशाल बचत होगी ही।

इससे हम, मेरे तीसरे बिन्दु पर आ जाते हैं। जो कि यह है कि हम - हम सभी - इस वैश्विक दौड़ में शामिल हैं, क्योंकि ‘विकसित’ और ‘विकासशील’ के पुराने निदर्शन अब टूटना शुरु कर चुके हैं।

और इस कार्यावली पर साथ मिलकर साझेदारी करने के लिए ब्रिटेन और भारत बेहद अनूठी स्थिति में हैं।

न केवल हमारे पास साझा मूल्य हैं, साझा भाषा है और नवोन्मेष के लिए प्रतिभा है…

बल्कि हमारे पास राजनीतिक इच्छाशक्ति भी है। मैं प्रधानमन्त्री कैमॅरॉन की पिछली फरवरी की भारत यात्रा का उल्लेख तो कर ही चुका हूँ…

…मैं जानता हूँ कि वे मजबूत ब्रिटेन-भारत सम्बन्ध के लिए प्रतिबद्ध हैं…

…साझेदारी और बराबरी का सम्बन्ध, एक ऐसा सम्बन्ध जो हमारी पारस्परिक शक्तियों के लिए लक्षित है और पारस्परिक लाभ प्रदान करता है।

हम व्यापारिक पक्ष में इसको पहले से ही होता हुआ देख सकते हैं।

उदाहरण के लिए, मार्क्स एण्ड स्पैन्सर ने एक नई ‘वहनीय कपास’ पहल का निर्माण करने के लिए यहाँ आन्ध्र प्रदेश के किसानों के साथ हाथ मिलाया है। इससे किसानों को उनकी कपास की उपज के लिए तीन गुना मूल्य मिलेगा, उपज भी दूनी हो जाएगी और उत्पादन लागत में 25% की कमी आएगी। और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि पानी का उपयोग घटेगा।

भारत और ब्रिटेन के बीच का यह सहयोग विज्ञान के क्षेत्र में भी रोमांचक विकासों तक फैला हुआ है।

ब्रिटिश एवं भारतीय विश्वविद्यालयों का एक संघ, जिसमें इम्पीरियल कॉलेज, न्यूकैसल यूनीवर्सिटी और दिल्ली व मुम्बई के आईआईटी (IITs) शामिल हैं, नए बैटरी भण्डारण एवं ईंधन सैलों के क्षेत्र में विश्व-अग्रणी शोध कर रहा है।

इन विकासों को आगे बढ़ाने में और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता को समझते हुए, प्रधानमन्त्री ने पिछले वर्ष मुझे सरकार में एक और महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी।

‘भारत के साथ व्यापारिक संलग्नता मन्त्री’ की भूमिका, जो कि ब्रिटिश सरकार में, किसी भी देश के लिए अभिहित इस प्रकार का पहला व एकमात्र मन्त्रीपद है। यह उस विशाल महत्ता का प्रतिबिम्ब है जो ब्रिटिश सरकार, भारत के साथ व्यापारिक सम्बन्धों को देती है।

लेकिन हमने इस सम्बन्ध के सामर्थ्य के मात्र एक छोटे से अंश का ही उपयोग करना शुरु किया है।

और मैं, यूके(UK)/भारत व्यापार सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए दृढ़-निश्चित हूँ…

…जिन उदाहरणों का उल्लेख मैं पहले कर चुका हूँ उनसे लेकर

…सहयोग के नए क्षेत्रों तक, जैसे कि यहाँ एपी (AP) की सौर फर्मों और ब्रिटेन में हमारे नए राष्ट्रीय सौर केन्द्र के बीच…

…आपके शहरों, हैदराबाद में शहरी योजनाकारों एवं लंदन में हाल ही में स्थापित हमारे भावी नगर नवोन्मेष केन्द्र तक

…विशाल, निम्न-कार्बन, संसाधन-कुशल, ढांचागत अवसरों तक, जैसे कि बंगलुरु मुम्बई आर्थिक गलियारा, जिसके विकास के लिए हम भारत सरकार के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, और जो दुनियाभर से अरबों रुपए के निवेश को भारत में आकर्षित करने के लिए एक संकेतदीप तथा भारत में अन्य जगहों पर इसी प्रकार के गलियारों के लिए मॉडल बन सकता है।

निष्कर्ष

देवियो और सज्जनो, तीव्र विकास के और हरित, संसाधन-कुशल विकास मॉडल के बीच में कोई अन्तर्विरोध नहीं है।

सही ढंग से किए जाने पर, इस तरह का विकास समावेशी आर्थिक वृद्धि को बाधित नहीं करेगा। यह तो उसे आगे बढ़ाएगा। और भारत जो रोमांचक विकास अवसर चाहता है और जिसके वह योग्य है ऐसे अवसरों की संख्या यह विकास बढ़ाएगा।

मैं आपके लिए एक विचार के साथ यह भाषण खत्म करता हूँ। यहाँ हैदराबाद में हमारा एक उप-उच्चायोग है जो कि थोड़ा नया है, और साथ में यूके सिस्टम एवं एक सक्रिय दल से भली-भांति जुड़े हुए एक उप-उच्चायुक्त हैं।

वे आपके व्यापार को और अधिक विकसित करने के लिए यूके में साझेदार खोजने में आपकी सहायता करने के लिए बेहद उत्सुक हैं।

यूके के पास देने के लिए बहुत कुछ है…

…विश्व-अग्रणी निर्माता एवं हरित अर्थव्यवस्था में विशेषज्ञता…

…वहनीय नगरीय नियोजन एवं नवीकरणीय ऊर्जा में आधुनिकतम व्यापार…

लंदन शहर की वित्तीय ताकत, जिसके साथ इसका विशाल पेशेवर सेवा उद्योग जुड़ा हुआ है

…और एक ऐसी सरकार जो भारत के साथ दोनों दिशाओं में व्यापार व निवेश के प्रवाह को सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध है।

मैं आपको - आप सभी को - इस बात के लिए प्रोत्साहित करूंगा कि आप हमारे उप-उच्चायोग के साथ नियमित संपर्क में रहें।

इसका पुरस्कार, जैसा कि मैंने अपने आज के भाषण में आपके सामने रख दिया है, बहुत बड़ा है।

बढ़ते हुए निम्न-कार्बन क्षेत्र वाला एक विश्व…

…जो आर्थिक वृद्धि एवं पर्यावरणीय वहनीयता के हमारे दोहरे लक्ष्यों की प्राप्ति में हमारा मददगार होगा…

…जो बाहरी मूल्य आघातों के प्रति प्रत्यास्थ होगा और महंगे, आयातित जीवाश्म ईंधनों पर कम निर्भर होगा…

…एक विश्व जो अधिक कुशल होगा, कम अपव्ययी होगा और अधिक प्रतिस्पर्धी होगा…

संक्षेप में, एक ऐसा विश्व जो हम पूरे गर्व के साथ अपनी भावी पीढ़ियों को सौंप सकेंगे।

धन्यवाद।

प्रकाशित 2 July 2013