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आरसीयूके इंडिया: प्रेरक बदलाव

रिसर्च काउंसिल यूके (आरसीयूके) इंडिया ने ‘प्रेरक बदलाव: ब्रिटेन-भारत शोध सहभागिता का प्रभाव’ विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया।

RCUK

ब्रिटेन-भारत शोध सहभागिता ने किस प्रकार अपना प्रभाव डाला है इसे रेखांकित करने हेतु रिसर्च काउंसिल यूके (आरसीयूके) इंडिया ने आज ‘प्रेरक बदलाव: ब्रिटेन-भारत शोध सहभागिता का प्रभाव’ विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया।

प्रभाव से हमारा मतलब है कि उत्कृष्ट शोध (अनुसंधान) एवं नवीकरण ने ब्रिटेन और भारत दोनों देशों के समाज और अर्थव्यवस्था के निर्माण में योगदान दिया है।

आरसीयूके इंडिया ने ब्रिटेन और भारत के बीच एक ऐसी रणनीतिक, स्थिर शोध सहभागिता को संभव बनाया है जो बराबरी की साझेदारी पर निर्मित है। दोनों देशों के शोधकर्ता ऊर्जा की उपलब्धता, जलवायु परिवर्तन और जन स्वास्थ्य जैसी वैश्विक प्राथमिकताओं के समाधान में जुटे हैं।

इस कार्यक्रम ने ब्रिटेन और भारत के विज्ञान एवं नवप्रवर्तन क्षेत्र के वरिष्ठ प्रतिनिधियों को एक जुट किया, जिनमें शामिल थे आरसीयूके के इंटरनेशनल लीड एवं ईकोनॉमिक एंड सोशल रिसर्च काउंसिल (ईएसआरसी) की चीफ एक्जीक्यूटिव प्रो. जेन एलिऑट; भारत में ब्रिटिश उच्चायुक्त सर जेम्स बेवन केसीएमजी; भारत के जैवप्रैद्योगिकी विभाग के सचिव प्रो. विजय राघवन और भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रो. आशुतोष शर्मा और साथ ही मौजूद थे ब्रिटेन एवं भारत के अनेक शोधकर्ता तथा वरिष्ठ नीति निर्माता।

ईएसआरसी की चीफ एक्जीक्यूटिव (मुख्य कार्यपालक) प्रो. जेन एलिऑट ने कहा:

भारत और ब्रिटेन का विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दीर्घकालीन संबंध रहे हैं। हमारा मानना है कि संवृद्धि और समृद्धि को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के जरिए बेहतरीन रूप में हासिल किया जा सकता है। भारत के पास बहुत ही मजबूत और फलता-फूलता ज्ञान आधार है और यह ब्रिटेन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय साझेदार है।

यह कार्यक्रम दर्शाता है कि किस प्रकार आरसीयूके ब्रिटेन-भारत शोध कार्यक्रमों के जरिए श्रेष्ठ शोध के द्वारा प्रभाव उत्पन्न करने में हेतु कटिबद्ध है।

आरसीयूके इंडिया के निदेशक डॉ. नफीस मीह न कहा:

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के जरिए शोध एवं नवप्रवर्तन निरंतर विकसित एवं हस्तांतरित हो रहे हैं। भारत विश्व में सबसे बड़ी आबादी वाला उदार लोकतंत्र एवं सर्वाधिक तेज गति से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था है। शोध उत्कृष्टता के लिए अवसर मुहैया कराते हुए आरसीयूके इंडिया ब्रिटेन और भारत के बीच शोध एवं नवप्रवर्तन को विकसित कर रहा है।

आरसीयूके इंडिया ने एक लघु फिल्म भी रिलीज की है जो ब्रिटेन-भारत के कई शोध कार्यक्रमों के प्रभाव को दर्शाती है। यह फिल्म ब्रिटेन और भारत के शोध समुदायों के प्रयासों का पूरक है और इस सहयोग में आरसीयूके इंडिया द्वारा मूल्य संवर्धन किए जाने को रेखांकित करती है।

आरसीयूके इंडिया शोध की समझ को बढ़ाने के लिए रिसर्च काउंसिल यूके और प्रमुख भारतीय वित्त प्रदायन एजेंसियों के बीच इस सफल ब्रिटेन-भारत शोध सहभागिता का संवर्धन करना जारी रखेगा।

फिल्म के प्रमुख बिन्दु हैं:

  • बेहतर जन स्वास्थ्य के लिए सहयोग

इस कार्यक्रम का लक्ष्य है जन स्वास्थ्य को मजबूती प्रदान करना और साथ ही बीमारियों के प्रसार को निर्धारित करने वाली प्रवृत्तियों, व्यवहारों और जीवनशैलियों, उनकी प्रसार क्षमता और लोगों का उनके साथ सहयोग करने के बारे में गहरी समझ की पड़ताल करना। इसमें डायबिटीज, मोटापा, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे असंक्रामक रोगों से लेकर एचआईवी/एड्स, मलेरिया और टीबी जैसी बीमारियां शामिल हैं। इसमें संलग्न साझेदार हैं भारत का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, ब्रिटेन का एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी और जर्मनी का हीडेलबर्ग यूनिवर्सिटी और यह परियोजना वैश्विक एवं राष्ट्रीय संदर्भ में समाज विज्ञान के पहलुओं का विकास कर रही है।

  • अधिक दक्षता वाले सस्ते सौर सेल

ब्रुनेल यूनिवर्सिटी लंदन और राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला दिल्ली की अगुवाई में इस परियोजना ने सौर सेल्स की एक नई पीढ़ी का विकास किया है जो दक्षता और स्थिरता, पर्यावरण सुरक्षा और लागत दक्षता जैसी सभी प्रमुख आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती है। साथ ही इन नैनो-संरचना युक्त सेल्स की निर्माण लागत कम आती है और यह भारतीय पीवी बाजार में समुचित भागीदारी के लिहाज से यह उपयुक्त है।

  • ठंडे रिएक्टर

आज की दुनिया में जहां ऊर्जा के इतनी मांग है भाप का निर्माण कर और ‘निष्क्रिय’ रूप से रिएक्टरों को ठंडा करने के लिए सुरक्षित और भरोसेमंद तरीके से ताप बाहर निकालने वाले रिएक्टरों का डिजायन और निर्माण कर यह शोध भारत और ब्रिटेन को जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और द्वारा किए जाने वाले कार्बन उत्सर्जन की मात्रा कम करने में मदद करता है।

यह परियोजना इम्पीरियल कॉलेज लंदन और मुंबई के भाभा परमाणु शोध केंद्र (बार्क) की अगुवाई में चलाई जा रही है और यह विश्वास एवं सुरक्षा के साथ नाभिकीय ताप को बाहर निकालने की प्रक्रिया के विविध पहलुओं में सहायता प्रदान करती है।

  • गांवों का विद्युतीकरण

भारत और ब्रिटेन के कई ऊर्जा चुनौतियां एक जैसी हैं। एक सबसे महत्वपूर्ण चुनौती है किस प्रकार शहरी इलाकों को सजह ही प्राप्त विद्युत आपूर्ति की गुणवत्ता ग्रामीण समुदायों को उपलब्ध कराते हुए उनकी आर्थिक क्षमताओं को प्रस्फुटित करने की राह निकाली जाए। ईंधन निर्धनता का समाधान कर तथा स्थानीय स्तर पर राजस्व अर्जित कर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कई महत्वपूर्ण शर्तों की पूर्ति कर सकते हैं और साथ ही इनसे ग्रामीण उद्योगों के लिए रोजगार सृजन के नए अवसर प्राप्त होंगे और उनकी परिवहन लागत कम होगी। समाज, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण – तीनों उन ऊर्जा समाधानों के दोहन से लाभान्वित होंगे जो स्वच्छ, धारणीय स्थिर और किफायती हैं।

यह परियोजना ब्रिटेन के नॉटिंघम यूनिवर्सिटी और भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलौर के तत्वावधान में चलाई जा रही है जो ग्रामीण समुदायों की विशिष्ट जरूरतों की पूर्ति करती है।

  • मां गंगा को समझना

पिछली आधी शताब्दी में उत्तर भारत के मैदानों में भूमि उपयोग के स्वरूप में बदलाव आया है और इसके कारण भूगर्भीय जल का दोहन अभूतपूर्व स्तर तक बढ़ा। इन बड़े और तीव्र बदलावों के कारण वहां जल संसाधनों के सटीक आकलन और भविष्य में उनकी उपलब्धता में कठिनाई पैदा की है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो इस क्षेत्र के आर्थिक स्थिति और सामाजिक बेहतरी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इम्पीरियल कॉलेज लंदन और भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलौर की अगुवाई में बहु-विषयी विशेषज्ञता वाली टीम द्वारा अत्यधिक शहरीकृत, गहन कृषि और सर्वाधिक घनी जनसंख्या वाले गंगा बेसिन के लिए एक नए अत्याधुनिक मॉडल का विकास किया जा रहा है। यह पहली परियोजना है जो जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के साथ-साथ जल की उपलब्धता और उपयोग का आकलन करेगी।

  • जलवायु-परिवर्तन रोधी चावल

दो अरब से अधिक लोगों के लिए चावल मुख्य भोजन है लेकिन दुनिया भर में बढ़ती हुए जनसंख्या को खिलाने के लिए और अधिक चावल की आवश्यकता होगी। वैश्विक चावल उत्पादन का एक चौथाई भाग, जो भारत में 45 प्रतिशत तक है, वर्षा आधारित कृषि से उत्पन्न होता है, इसलिए अधिक चावल पैदा करने की चुनौती जलवायु परिवर्तन के कारण जटिल हुई है जहां भविष्य में अधिक सूखा पड़ने और बाढ़ आने के आसार हैं।

ब्रिटेन के यॉर्क यूनिवर्सिटी, भारत के केन्द्रीय चावल अनुसंधान संस्थान और अमेरिका के कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधार्थी चावल की पुरातन जंगली प्रजातियों में विविधता के बारे में महत्वपूर्ण आनुवंशिक सूचनाएं हासिल करने पर काम कर रहे हैं ताकि सूखा झेलने में पौधे की मदद करने वाले जीनोम के लाभकारी खंडों की पहचान कर उन्हें आजमाया जाए।

आगे की जानकारी

रिसर्च काउंसिल यूके

रिसर्च काउंसिल यूके (आरसीयूके) ब्रिटेन के रिसर्च काउंसिल का रणनैतिक साझेदार है। हम सालाना लगभग 3 अरब पाउंड का निवेश शोधकार्यों पर करते हैं। हमारा ध्यान प्रभाव के साथ उत्कृष्टता पर केन्द्रित है। हम उच्चतम गुणवत्ता वाले शोधकार्यों को सहायता देते हैं जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय समकक्ष समीक्षा द्वारा तय किया जाता है जिससे ब्रिटेन को एक प्रतियोगी बढ़त हासिल होती है।

वैश्विक शोध के लिए जरूरी है कि हम एक विविधता पूर्ण फंडिंग दृष्टिकोण अपनाएं जो अंतर्र्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दे, सर्वोत्तम प्रकार की सुविधाओं और इनफ्रास्ट्रक्चर तक पहुंच बने और पर्यावरण को अनुप्रेरित करने में दक्ष शोधकर्ताओं को लगाया जाए। हमारे शोध प्रभावी हैं जो ज्ञान तथा दक्ष लोगों के द्वारा निर्मित समाज और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। प्रभाव उत्पन्न करने में सक्षम होने के लिए शोधकर्ताओं तथा कोष प्रदाताओं के लिए जरूरी है कि वे नागरिकों, व्यवसाय समुदायों, सरकार एवं चैरिटेबल संगठनों के साथ मिलकर काम करें।

सात यूके रिसर्च काउंसिल हैं:

  • आर्ट्स एंड ह्युमैनिटीज रिसर्च काउंसिल (एएचआरसी)

  • बायोटेक्नोलॉजी & बायोलॉजिकल साइंसेज रिसर्च काउंसिल (बीबीएसआरसी)

  • इकोनॉमिक & सोशल रिसर्च काउंसिल (ईएसआरसी)

  • इंजीनियरिंग & फिजिकल साइंसेज रिसर्च काउंसिल (ईपीएसआरसी)

  • मेडिकल रिसर्च काउंसिल (एमआरसी)

  • नेचुरल एनवायरनमेंट रिसर्च काउंसिल (एनईआरसी)

  • साइंस & टेक्नोलॉजी फैसिलीटीज काउंसिल (एसटीएफसी)

रिसर्च काउंसिल्स यूके इंडिया

उच्च गुणवत्ता और उच्च प्रभाव वाली शोध सहभागिता के जरिए ब्रिटेन और भारत के बेहतरीन शोधकर्ताओं को एक साथ काम करने का अवसर मुहैया करने के उद्देश्य के साथ आरसीयूके इंडिया का शुभारंभ 2008 में हुआ। आरसीयूके इंडिया नई दिल्ली के ब्रिटिश उच्चायोग में स्थित है और इसने ब्रिटेन, भारत और तृतीय पक्षों के बीच ‘को-फंडेड’ (साझे कोष वाले) प्रयास की सुविधा उपलब्ध कराई है जो आज लगभग 15 करोड़ पाउंड के बराबर पहुंच चुका है। ये शोध सहभागिताएं प्रायः ब्रिटेन और भारत के औद्योगिक साझेदारों के साथ संबद्ध हैं जहां 90 से अधिक साझेदार इसमें शामिल हैं। ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, सामाजिक विज्ञानों, स्वास्थ्य सेवा और जीवन विज्ञानों के क्षेत्र में वैश्विक चुनौतियों से निबटने हेतु शोध योजनाओं की व्यापक श्रृंखला पर प्रमुख भारतीय कोष प्रदाताओं के साथ आरसीयूके इंडिया साझे कोष वाले शोध कार्यों में सक्रिय रूप से संलग्न है। ये एजेंसियां हैं:

  • परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई)

  • जैवप्रौद्योगिकी विभाग(डीबीटी)

  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी)

  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)

  • भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (आईसीएचआर)

  • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (अईसीएमआर)

  • भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर)

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस)

कृपया यहां संपर्क करें:

जीनी जॉर्ज शाजू
कम्युनिकेशन मैनेजर
आरसीयूके इंडिया
फोन: 011-2419 2367

मेल करें: जीनी जॉर्ज

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प्रकाशित 21 May 2015