विश्व की समाचार कथा

युद्ध के दौरान यौन हिंसा की डॉक्युमेंटिंग (विवरण जुटाने) और जांच करने के बारे में विलियम हेग और एंजेलीना जोली द्वारा शुरू किया गया अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकोल

विदेश सचिव विलियम हेग और संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत एंजेलिना जोली द्वारा आलेख ।

यह 2010 to 2015 Conservative and Liberal Democrat coalition government के तहत प्रकाशित किया गया था
William Hague and Angelina Jolie

कल्पना कीजिए कि हथियारबंद लोगों द्वारा आप अपने घर के किसी सदस्य के उठा लिए जाने और उसके साथ बलात्कार किए जाने या यौन दासता के अंधकूप में बेच दिए जाने अथवा बंदी बनाकर यौन यंत्रणा दिए जाने के हादसे के भुक्तभोगी हैं।

कल्पना कीजिए कि यही दसियों हजार दूसरी महिलाओं, पुरुषों और बच्चों के साथ आपके देश में वर्षों से हो रहा हो और आप ऐसे खतरनाक और यंत्रणापूर्ण माहौल में जीते हों।

और यह भी कल्पना कीजिए कि बलात्कारी ता-उम्र सड़कों पर आजादी से सिर उठाकर घूमते हों।

युद्धक्षेत्र में यौन हिंसा के लाखों भुक्तभोगियों का यही सच है और यही हमारे अभियान का मुद्दा है।

हम सब यहां साथ एकत्र हुए हैं जिसका कारण है एक खास देश, बोस्निया के साथ हमारा निकट संबंध। वहां, चार साल के युद्ध के दौरान लगभग 50,000 महिलाएं और अज्ञात संख्या में पुरुष बलात्कार के शिकार हुए। बोस्निया, दुनिया के सबसे स्थिर और शांत महादेश यूरोप के केन्द्र में बसता है। लेकिन 20 साल हो गए उन पीड़ितों में से अधिकांश को कोई न्याय नहीं मिला।

हमारे जीवनकाल में बारंबार, हर महादेश में और हर बड़े युद्ध में बलात्कार को युद्ध के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसका सेक्स के साथ कोई लेना-देना नहीं, इसका एकमात्र मकसद होता है शक्ति प्रदर्शन और बलात् जीतने और अपमानित करने की इच्छा।

इस कृत्य की प्रकृति ऐसी होती है कि इसके भुक्तभोगी, चाहे वे स्त्री हों या पुरुष, जीवन भर अकेलापन, बहिष्करण और भय के साए में जीते हैं।

कुछ देशों में बलात्कार पीड़ितों को वेश्या के रूप में देखा जाता है और उन्हें बहिष्कृत कर विवाह के लिए अनुपयुक्त घोषित कर दिया जाता है।

बिना सामाजिक स्वीकार्यता के बहुत से पीड़ित तो ऐसे होते हैं जो शर्म और मानसिक वेदना बर्दाश्त नहीं कर पाते और उन्हं शारीरिक आघात भी झेलना पड़ता है।

बिना वैध स्वीकार्यता के उन्हें प्रायः वित्तीय मदद, स्वास्थ्य सुविधा या अपने दुःखद अनुभवों से उबरने के लिए परामर्श सहायता नहीं मिल पाती।
पीड़ितों में बहुत से छोटे बच्चे होते हैं जिनका शरीर, मन और भविष्य चकनाचूर हो गया रहता है।

लांछन और कलंक का ऐसा क्षयकारी प्रभाव होता है जो अगली पीढ़ी को भी नहीं छोड़ता और बलात्कार के कारण पैदा हुए बच्चे और पीड़ित के परिवार दोनों को इसका दंश भुगतना पड़ता है।

युद्ध के इलाके में होने वाले बलात्कारों के इर्दगिर्द बना यह टैबू यह भी दर्शाता है कि क्यों इसकी व्यापकता और गंभीरता को ठीक तरह से समझा नहीं गया। लेकिन भुक्तभोगियों के खुद के अनुभवों को सुनकर कोई भी अपनी आत्मा को ऐसे अन्यायों के विरुद्ध विद्रोह करने से रोक नहीं पाएंगे।

दुनिया भर में ऐसे लोगों के स्मारक बने हैं जिन्होंने अपने जीवन संघर्ष में बलिदान किए। जरा कल्पना कीजिए, पिछले सौ वर्षों में युद्ध के दौरान बलात्कार के शिकार लोगों की पीड़ा व्यक्त करने के लिए कितने विशाल स्मारक की जरूरत पड़ेगी। हर दिन इसकी दीवारों नए नाम खोदने होंगे क्योंकि सीरिया, दक्षिणी सूडान, मध्य अफ्रीकी गणतंत्र और अन्य देशों में ये अपराध तब भी हो रहे हैं जब आप इन शब्दों को पढ़ रहे होंगे।

हमने ताकतों को एक जुट किया है क्योंकि हम अनेक दृढ़ प्रतिबद्धताएं साझा करते हैं।

पहला, हमने इस बात को समझ लिया है कि बलात्कार और यौन हिंसा अपरिहार्य नहीं होते बल्कि युद्ध की सोची-समझी नीति होते हैं जिन्हें प्रतिबंधित किया जा सकता है, रोका जा सकता है और जिनके लिए अपराधियों को दंडित किया जा सकता है।

दूसरा, हमारा मानना है कि मूल विषय न्याय है। हर बार जब ऐसे अपराध होते हैं और दुनिया इसपर कुछ नहीं करती तो एक उदाहरण सा कायम हो जाता है कि यौन हिंसा एक दंडमुक्त कृत्य है: चाहे यह नाइजीरिया की स्कूली छात्राओं पर किया गया हो या सीरिया के शरणार्थियों पर।

तीसरा, यह एक नैतिक दायित्व है। कोई भी देश यह नहीं कह सकता कि उसकी मानवाधिकारों में आस्था है और दूसरी तरफ वह युद्ध कालीन यौन हिंसा की ओर से आंख मूंदे रहे। यह तो विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जो अस्थिरता और संघर्ष को हवा देता है। इसे खत्म करना राष्ट्रीय सुरक्ष की एक अनिवार्यता है।

चौथा, जहां पुरुष और बच्चे भी इसके शिकार हैं, युद्ध कालीन यौन हिंसा ने महिलाओं के अधिकार को हर जगह छीन रखा है। हर दिन हम अपने आततायी पतियों के हाथों या क्रूर वैधानिक व्यवस्था के शिकार महिलाओं की यातना के बारे में पढ़ते हैं। यदि हम युद्ध कालीन यौन हिंसा की दंडमुक्ति को खत्म कर सकें तो हम दूसरी जगहों पर भी महिलाओं के प्रति होने वाले दुर्व्यवहार की स्थिति को बदलने की दिशा में गति ला सकते हैं।

पांचवां, हम दोनों यह मानने से इनकार करते हैं कि युद्ध कालीन यौन हिंसा इतनी विकट और जटिल समस्या है कि उससे निबटा नहीं जा सकता। यही बात गुलामों के व्यापार और अवैध हथियारों के व्यापार के बारे में कही जाती थी। लेकिन जब लोगों की राय बनती है और सरकारें ठान लेती हैं तो बदलाव तेजी से होता है।

इस बात के प्रमाण हैं कि ऐसा हो रहा है। दुनिया के तीन चौथाई से अधिक देशों ने पिछले वर्ष हमारे द्वारा लाए गए युद्ध के दौरान यौन हिंसा को खत्म करने की प्रतिबद्धता के घोषणापत्र (डेक्लेरेशन ऑफ कमिटमेंट टू एंड सेक्सुअल वायलेंस इन कॉनफ्लिक्ट) की पुष्टि की है। और अगले सप्ताह हमने 100 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों, 8 सं.रा. एजेंसियों के प्रमुखों और लगभग एक हजार की संख्या में विशेषज्ञों को यहां लंदन में आमंत्रित किया है।

युद्ध के दौरान यौन हिंसा की डॉक्युमेंटिंग (विवरण दर्ज करने) और जांच करने के बारे में हम पहली बार एक अंतर्राष्ट्रीय प्रोटोकोल (मसौदे) की शुरुआत करेंगे। सैकड़ों विशेषज्ञों के साल भर के परिश्रम और कार्य से तैयार हुआ यह प्रोटोकोल हमले के बाद जांचकर्ताओं को सूचना और साक्ष्य के संरक्षण में मदद करेगा, अभियोजन के सफल होने की संभावना बढ़ेगी और पीड़ितों को मानसिक आघात से बचाएगा।

हम देशों से अपील करेंगे कि वे बलात्कार और यौन हिंसा संबंधी अपने कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप बनाएं। हम सभी सैनिकों और शांतिरक्षकों के उचित प्रशिक्षण की मांग करेंगे ताकि वे युद्ध क्षेत्र में यौन हिंसा को समझ और रोक सकें। शरणार्थी कैंपों में रोशनी का प्रबंध करने से लेकर जलावन एकत्र करने बाहर जाने वाली महिलाओं के साथ रक्षाकर्मी के जाने जैसे साधारण उपायों के जरिए हमले की संख्या में भारी कमी लाई जा सकती है और हम चाहते हैं कि ये आधारभूत सुरक्षा उपाय सार्वभौम हों।

हम देशों से मांग करेंगे कि यौन हिंसा के अपराधी को क्षमादान न दिया जाए और जोसेफ कोनी जैसे अति कुख्यात लोगों को खोज कर उनपर कार्रवायी की जाए। और हम पीड़ितों और उनके लिए काम करने वालों समूहों— गुमनामी में अपना काम करने वाले वे नायकों के लिए नई निधि प्रदान किए जाने की मांग करेंगे।

पास किया जा सकने वाला ऐसा कोई कानून और लागू की जा सकने वाली ऐसी कोई संधि नहीं जो युद्ध क्षेत्र में होने वाली यौन हिंसा को रातों रात खत्म कर दे। यह हमारी पीढ़ी का अभियान है।

और सच यह है कि सरकारें केवल अपने बल पर यह सब नहीं सक सकतीं। युद्ध कालीन यौन हिंसा को खत्म करने के लिए हमें सांचे को तोड़ना होगा। सरकारों, नागरिकों और सिविल सोसाइटी को साथ मिलकर एक नए तरीके से काम करना होगा जैसे हम बड़े-बड़े वैश्विक मुद्दों से निबटते हैं।

संसार की क्रूरता के शस्त्रागार से बलात्कार जैसे युद्ध के हथियार को नष्ट करना हमारे वश में हैं। और यह भी हमारे वश में है कि पीड़ितों के साथ समाज बहिष्कृत जैसा बरताव न किया जाए बल्कि अत्याचार झेलकर निकले साहसी व्यक्तियों जैसा।

प्रकाशित 9 June 2014